वकालत के पेशे की पवित्रता
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले अधिवक्ताओं के वकालत करने पर चिंता व्यक्त की है। ऐसे लोग समाज को विशेषकर कानून बिरादरी को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
![]() वकालत के पेशे की पवित्रता |
एक याचिका पर पीठ ने राज्य सरकार व उप्र राज्य विधिज्ञ परिषद को तत्काल प्रभाव से निर्देश जारी कर लाइसेंस के सभी लंबित व नये आवेदनों के संबंध में पुलिस थानों से सत्यापन सुनिश्चित करने को कहा। याचिकाकर्ता ऐसे मामले को अदालत के समक्ष लाए, जिसमें एक वकील पर 14 आपराधिक मामले लंबित थे, इनमें चार में वह दोषी करार किया जा चुका था। उसने वकालत का लाइसेंस यह हकीकत छिपा कर प्राप्त कर लिया था।
अदालत के अनुसार, अधिवक्ता अधिनियम ऐसे व्यक्तियों को वकालत के पेशे में आने से रोकता है। पूर्व में देखा गया है कि लंबे समय से आपराधिक मामलों में लिप्त लोग खराब मंशा से वकालत के पेशे में अपनी पकड़ बनाते रहे हैं।
याचिकाकर्ता ने ऐसे मामले में अदालत का ध्यान आकृष्ट कर मुस्तैदी का काम किया है। यह गंभीर मसला है, इस पर कानून मंत्रालय को पहल करनी चाहिए और देश भर के वकीलों के लिए यह नियम तय करना चाहिए। वकील, अध्यापक, चिकित्सक आदि पेशों को आपराधिक पृष्ठभूमि वालों से मुक्त कराना सरकार की जिम्मेदारी है।
उच्च न्यायालय के निर्देश को लागू करने के साथ ही यह भी सुनिश्चित हो कि पुलिस जांच में किसी तरह की कोई कोताही न हो। यह भी स्पष्ट किए जाना जरूरी है कि दोषी करार देने के बाद या अपना मुकदमा स्वयं लड़ने को इच्छुक शख्स को वकालत की पढ़ाई से कैसे रोका जा सकता है।
अपने यहां यदि अपराधी मुक्त घूम रहे हैं तो ढेरों बेगुनाह भी जेलों में बंद हैं, जिनका केस कोई वकील लेने को राजी ही नहीं होता। अभी कुछ दिन पहले ही बागपत के अमित चौधरी के दो साल जेल में रहने के बाद वकालत की पढ़ाई करने और अपना केस लड़ने की खबर आई। बारह साल बाद अदालत ने उसे बेगुनाह करार दिया। इस तरह के अन्य मामलों का ख्याल रखना जरूरी है। अपराधियों पर अंकुश रखना जितना जरूरी है, उतना ही बेगुनाहों को किसी भी तरह की ज्यादती से बचाना भी जरूरी है।
Tweet![]() |