युगांतकारी फैसला
सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक और विद्वतापूर्ण फैसले के बाद जम्मू-कश्मीर की भारतीय संविधान में खास हैसियत पर पूर्ण विराम लग गया है।
युगांतकारी फैसला |
न्यायालय ने विशिष्ट स्थिति बनाए रखने वाले अनुच्छेद 370 को केंद्र सरकार द्वारा संसद से रद़्द कराने और इसे खत्म करने की अधिसूचना के राष्ट्रपति के अधिकार को अंतिम माना है। न्यायालय ने भारतीय संविधान के अनुच्छेदों एवं जम्मू-कश्मीर के संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों से बिंदुवार मिलान कर निष्कर्ष निकाला कि भारत राष्ट्र में उसके विलय के बाद यह देश के अन्य राज्यों की तरह उसका अभिन्न अंग बन गया। वह आंतरिक रूप से संप्रभु नहीं रहा।
स्पष्ट है कि यह निर्णय ‘ऐसी तैसी डेमोक्रेसी’ वाले देश की न्यायपालिका का नहीं है, जहां उसका धर्म संसद से पारित प्रस्ताव पर विचार किए बिना बस मुहर लगाने का है। इस मसले पर पूरे 16 दिन संविधान पीठ ने सुनवाई की। केंद्र से भी कुछ बिंदुओं पर स्पष्टीकरण मांगा गया। विधिवत प्रक्रिया का पालन करते हुए बाकायदा पक्ष-प्रतिपक्ष ने अपनी दलीलें रखीं।
यह सब सीधी सुनवाई के तहत हुआ जिसका लाइव प्रसारण देश के नागरिकों से लेकर विदेश तक ने देखा। इन सबके के दौरान ही पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से माना कि अनुच्छेद 370 भारतीय संविधान में एक अस्थायी प्रावधान था। इसको रद्द करने का अधिकार संप्रभु भारत के पास था। अलबत्ता, उसने कहा कि जम्मू-कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश के तहत नहीं रखा जा सकता। इसलिए न्यायालय ने नौ महीने के भीतर उसे राज्य का दर्जा बहाल कर वहां चुनाव कराने का आदेश दिया।
पूरी संभावना है कि यहां चुनाव लोक सभा के साथ कराए जाएं। इस निर्णय के बाद से जम्मू-कश्मीर में हालात को और बेहतर करने के मौके मिलेंगे। सत्ताधारी दलीलों से इतर सामान्य नागरिकों को भी जम्मू-कश्मीर की खास हैसियत समाप्त करने से कोई बड़ा फर्क नहीं पड़ा है। इसके विपरीत, रोजगार, शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं का उपभोग बढ़ा है।
सबसे बड़ी बात, अलगाववादी व आतंकवादी गतिविधियों में उल्लेखनीय गिरावट आई है। इसे महसूस किया जाता रहा है। इनके बावजूद, यहां बलात यथास्थितिवादी बनाए रखने वाले राजनीतिकों को न्यायालय का निर्णय नागवार गुजरा है। पाकिस्तान की प्रतिक्रिया भी नैराश्यपूर्ण रही है, बल्कि एक तरह से भारत के आंतरिक मामलों में दखल है। इसके विपरीत, जम्मू-कश्मीर एक नये बदलाव के मुहाने पर है।
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