अधूरा रह गया सपना
भारत की आईसीसी ट्रॉफियों से पिछले 12 साल से चली आ रही दूरी इस बार भी खत्म नहीं हो सकी।
अधूरा रह गया सपना |
भारत ने आखिरी बार आईसीसी ट्रॉफी के तौर पर 2013 में चैंपियंस ट्रॉफी जीती थी और उस समय कप्तानी की जिम्मेदारी महेंद्र सिंह धोनी के पास थी, जो इससे पहले 2007 में टी-20 विश्व कप और 2011 में वनडे विश्व कप भी जीत चुके थे, लेकिन इसके बाद विराट कोहली ने अपनी कप्तानी में सफलता के झंडे तो बहुत गाड़े पर वह किसी आईसीसी ट्रॉफी जीतने का गौरव हासिल नहीं कर सके। अब लगता है कि रोहित शर्मा के भाग्य में भी आईसीसी ट्रॉफी जीतना लिखा नहीं है।
वह इस साल की शुरुआत में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ही वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप का फाइनल हार चुके थे और अब वनडे विश्व कप को खोना उनके लिए तगड़ा झटका है। इस विश्व कप में भारतीय टीम जिस अंदाज में खेली, उससे सभी क्रिकेटप्रेमियों को इस बार विश्व कप जीतने का भरोसा हो गया था।
भारतीय टीम पहली बार अजेय रहकर फाइनल में पहुंची थी और फाइनल की अपनी प्रतिद्वंद्वी को लीग में धूल चटा चुकी थी। पर शायद शिखर पर पहुंचने के लिए अंत में जिस बेस्ट को देनी की जरूरत होती है, वह हमारी टीम नहीं दे पाई। वहीं दो हार से अभियान शुरू करने वाली ऑस्ट्रेलिया के लिए एक समय नाकऑउट चरण में स्थान बनाने को लेकर भी संदेह जताया जा रहा था, लेकिन जिस तरह से उन्होंने मुश्किल हालात में अफगानिस्तान को हराकर आगे बढ़ने की राह बनाई, उसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
सही मायनों में सच्चे चैंपियन की यही पहचान भी होती है। यह सही है कि रोहित शर्मा और राहुल द्रविड़ की जोड़ी भारत को आईसीसी खिताब नहीं दिला सकी है; पर उससे पहले टीम ने जिस तरह का प्रदर्शन किया, वह गर्वित करने के लिए काफी है।
अलबत्ता, अब हार पर आंसू बहाने से बेहतर होगा कि टीम अगले साल वेस्ट इंडीज और अमेरिका में जून माह में होने वाले टी-20 विश्व कप की तैयारियों पर फोकस करे। यह जरूर है कि अगले आईसीसी क्रिकेट विश्व कप के लिए यदि किसी युवा को कमान सौंपनी हो तो यह फैसला भी जल्दी कर लेना चाहिए।
भारत भले खिताब नहीं जीत सका मगर द्रविड़ के कोच रहते टीम ने जिस तरह का प्रदर्शन किया है, उसे देखते हुए उन्हें अभी एक कार्यकाल और देने की जरूरत है। पर इस फैसले में द्रविड़ क्या चाहते हैं, यह भी अहम होगा। पर इन मामलों को जितना जल्दी निपटा लिया जाए, उतना ही अच्छा है।
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