विधायिका को सुझाव

Last Updated 06 Nov 2023 09:44:10 AM IST

भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) ने कहा है कि विधायिका अदालत के किसी फैसले पर असहमत है, तो उसे सीधे खारिज नहीं कर सकती बल्कि फैसले में जो खामी उसे प्रतीत होती है, उसे दुरुस्त करने के लिए नया कानून बना कर लागू करा सकती है।


विधायिका को सुझाव

शनिवार को नई दिल्ली में एक मीडिया संस्थान के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सीजेआई कहा कि अदालत का फैसला आने पर विधायिका क्या कर सकती है, और क्या नहीं कर सकती है, इसमें एक विभाजन रेखा है।

सरकार के विभिन्न अंगों के विपरीत, न्यायाधीश जब फैसला करते हैं, तो यह नहीं सोचते कि इस फैसले पर समाज में कैसी प्रतिक्रिया होगी।

दरअसल, लोकतांत्रिक व्यवस्था के इन दोनों महत्त्वपूर्ण अंगों-विधायिका और न्यायपालिका-का गठन भिन्न तरीकों से होता है, और दोनों के साथ ही लोकतंत्र के तीसरे अंग-कार्यपालिका-को मिलकर अपने दायित्व का निवर्हन करना होता है। दायित्वों में भिन्नता के साथ ही लोकतांत्रिक व्यवस्था के इन तीनों अंगों से अपेक्षाएं और तकाजे भी सिरे से भिन्न होते हैं।

जाहिर है कि ऐसे में तीनों अंग एक ही दिशा में सोचें या एक ही सुर में बोलें, सिरे से जरूरी नहीं है, और तीनों अंगों के विन्यास के मद्देनजर इन्हें एक ही कोण से चीजों को देखना भी नहीं चाहिए। सीजेआई ने कहा भी है कि अदालत संवैधानिक तकाजों के आलोक में सांविधानिक नैतिकता की अनुपालना करती है।

उसके साथ उस तरह की जवाबदेही नत्थी है, जैसी कि विधायिका के साथ होती है। न्यायाधीश निर्वाचित नहीं होते जैसे कि विधायिका में निर्वाचित जनप्रतिनिधि शामिल होते हैं, जिन्हें अपने आचरण को लेकर हमेशा संजीदा रहना होता है कि लोक में उसके किए की कैसी प्रतिक्रिया होगी। एक तरह से ऐसी जवाबदेही न्यायपालिका के साथ नहीं होती और इसलिए उसके लिए सार्वजनिक नैतिकता का कोई मसला नहीं होता, लेकिन इससे यह मतलब नहीं लगाया जा सकता कि न्यायपालिका को लोक की परवाह ही नहीं होती।

सीजेआई ने इस तरफ संकेत भी किया है कि सुप्रीम कोर्ट जनता की अदालत है जिसका मकसद जनता की शिकायतों को समझना है। समाज के विकास के लिए कानूनी सिद्धांतों का दृढ़ता से अनुपालन करना है। जजों को सीधे जनता नहीं चुनती, लेकिन यह न्यायपालिका की कमजोरी नहीं, बल्कि ताकत है। उस पर दायित्व है कि दूसरों की अपेक्षा व आकांक्षाओं के अनुरूप नहीं, बल्कि उसके फैसलों में संविधान के प्रति जवाबदेही मुखर हो।



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