तर्क सम्मत प्रस्ताव

Last Updated 06 Nov 2023 09:42:07 AM IST

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार देश में किशोरों द्वारा हो रहे अपराधों की संख्या में लगातार इजाफा होता जा रहा है। 2020 में 29708 के मुकाबले 2021 में 31170 अपराध किए गए।


उप्र के विधायक राजेर सिंह ने इस बाबत मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है। उन्होंने स्कूली छात्रों के लिए कानूनी शिक्षा को अनिवार्य करने के लिए कानून बनाने का प्रस्ताव रखा है। राजनीतिक सिद्धांत की मूल बातों, देश में न्याय पण्राली की व्यापक संरचना व कार्य पण्राली को केवल राजनीति विज्ञान व नैतिक शास्त्र में शामिल किया गया है। उनके अनुसार किशोर अपराध की उच्च दर के कारणों में कानूनी साक्षरता की कमी है। अपराधों के संबंध में बुनियादी ज्ञान देने से सकारात्मक परिणाम मिलेंगे व समाज में बदलाव आयेगा।

कहा जा सकता है कि कुछ हद तक यह विचार काम करता प्रतीत हो सकता है। मगर किशोरों में बढ़ रही आक्रामकता, हिंसा की प्रवृत्ति और बेकाबू होता क्रोध सामाजिक व पारिवारिक ज्यादा है। इनमें आर्थिक कारणों व अभावों को नहीं छोड़ा जा सकता। अभी भी अपने यहां जात-पात, ऊंच-नीच का कारक मूल में बना हुआ है। जो शिक्षित ही नहीं हैं या सामान्य शिक्षा से भी अछूते हैं, उनसे यह उम्मीद करना कि वे पढाई के दरम्यान इन गंभीर विषयों को अंगीकार कर सकेंगे, अतिसकारात्मक सोच कही जाएगी।

अपराधों के बढ़ने के मूल कारणों में न्याय पण्राली का ढुलमुल होना है। राजनीतिक सरपरस्ती या ऊंची पहुंच का फायदा उठाकर अपराधी बच निकलते हैं। पीड़ितों को न्याय की गुहार लगाते सालों-साल लग जाते हैं, जिसका लाभ अपराधियों को आसानी से मिलता है।

दूसरे, अपराधियों के प्रति समाज का नरम रवैया आपराधिक दुनिया में पांव रखने वालों को भयभीत नहीं करती। किशोरों में आपराधिक प्रवृत्ति को थामने का बेहतरीन तरीका है, उनके विकास के दौरान मनोवैज्ञानिक तरीके इस्तेमाल किये जाएं। किशोरवय सबसे भावनापूर्ण उम्र होती है।

जिसमें छोटी-से-छोटी बात भी दिल को चुभती है। किशोरों के साथ कैसा बर्ताव किया जाए, इसकी समझ शिक्षकों, कुटुंब और परिचितों को बेहतर ढंग से बताई जाए। यह उम्र बच्चे से वयस्क होने के दरम्यान का बेहद संवेदनशील वक्त है। इस पीढ़ी के किशोरों के साथ वैसा बर्ताव तनिक उचित नहीं ठहराया जा सकता, जैसा अब तलक होता आया है। बच्चों का जल्दी किशोर होना फिर वयस्क हो जाना इस पीढ़ी के लिए ही चुनौती नहीं है बल्कि अधेड़ों व बुजुगरे के लिए भी चुनौती ही है।



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