नई दिल्ली में अफगानिस्तान का दूतावास बंद : भारत की दुविधा
नई दिल्ली में अफगानिस्तान का दूतावास पूरी तरह बंद कर दिया गया है। यह घोषणा अफगानिस्तान में अशरफ गनी की निर्वाचित सरकार को तालिबान द्वारा हिंसा के बल पर उखाड़ फेंकने के दो साल बाद आई है।
नई दिल्ली में अफगानिस्तान का दूतावास बंद |
भारत की ओर से अभी तक इस घटनाक्रम पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। भारत के लिए अफगानिस्तान में तालिबान का शासन एक दीर्घकालिक समस्या है।
काबुल में तालिबान का शासन कायम होने के बाद से ही यह आशंका जतायी जा रही थी कि देर-सबेर लश्कर-ए-तोयबा, जैश-ए-मोहम्मद, अल कायदा, इस्लामिक स्टेट और तालिबान कश्मीर का रुख कर सकते हैं, लेकिन पिछले दो वर्षों के दौरान अफगानिस्तान की भूमि से किसी तरह के आतंकवादी हमले और साजिश की रिपोर्ट नहीं आई है।
लेकिन भारत सहित अन्य क्षेत्रीय देश हमेशा से सतर्क हैं। नई दिल्ली में अफगानिस्तान के दूतावास बंद हो जाने से यह समस्या पैदा हो सकती है कि भारत मानवीय आधार पर काबुल की मदद आखिर कैसे पहुंचाएगा। भारत एकमात्र ऐसा देश है, जिसने तालिबान आतंकवादियों के खतरे को पहचान कर उसे किसी प्रकार की वैधानिकता प्रदान नहीं की है।
कहा जा सकता है कि इस पूरे घटनाक्रम में भारत एक दूरदृष्टि संपन्न नैतिक शक्ति के रूप में उभरा है। अगस्त 2021 में काबुल पर तालिबान का सत्ता स्थापित हुआ था। इसके कुछ ही समय बाद भारत के तालिबान प्रतिनिधियों के साथ संपर्क साधा था।
दरअसल, भारत ने अफगानिस्तान को स्कूल, अस्पताल, सड़क सहित आधारभूत ढांचा और स्थानीय शासन के सामुदायिक केंद्र प्रदान किए हैं। साथ ही अफगानिस्तान को मानवीय आधार पर खाद्यान्न सहित अन्य सहायता पहुंचा रहा है।
वर्तमान समय में भारत काबुल स्थित अपने दूतावास में एक तकनीकी स्तर की टीम भी तैनात की है। टीम मानवीय सहायता पहुंचाने के लिए तालिबान शासन से समन्वय करती है। अब तालिबान शासक नई दिल्ली में अपना प्रतिनिधि तैनात करना चाहते हैं। भारत ने अभी तक उसे मान्यता नहीं दी है।
नई दिल्ली में अफगानिस्तान का दूतावास बंद होने के बाद भारत के सामने यह दुविधा आई है कि तालिबान सरकार को मान्यता दिया जाए या नहीं। हालांकि रक्षा विशेषज्ञों के एक वर्ग का मानना है कि अफगानिस्तान में अपने राजनीतिक दखल कायम करने के लिए तालिबान सरकार को मान्यता देनी चाहिए। आगे देखना है कि भारत का राजनय इस दुविधा से कैसे निबटता है।
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