भाषा पर सियासत

Last Updated 27 Mar 2023 12:22:53 PM IST

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारतीय भाषाओं को समर्थन देने की पर्याप्त कोशिश नहीं करने और स्वार्थ के लिए उनके साथ ‘खेला’ करने का राजनीतिक दलों पर आरोप लगाया।


भाषा पर सियासत

उन्होंने कहा कि गांवों, पिछड़े वर्ग के लोगों और गरीबों को ये दल चिकित्सक या इंजीनियर बनते नहीं देखना चाहते। प्रधानमंत्री मोदी ने कर्नाटक के चिक्कबल्लापुर जिले में मुद्देनहल्ली के सत्य साई ग्राम में निशुल्क स्वास्थ्य सेवाओं के लिए स्थापित ‘श्री मधुसूदन साई इंस्टीटय़ूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च का शनिवार को उद्घाटन करते हुए कहा कि कन्नड़ समृद्ध भाषा है।

पहले की सरकारों ने कन्नड़ में मेडिकल, इंजीनियरिंग शिक्षा की दिशा में कदम नहीं उठाया, बल्कि राजनीतिक स्वार्थ के लिए, वोट बैंक की राजनीति के लिए भाषाओं का ‘खेल’ खेला। प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार ने कन्नड़ समेत भारतीय भाषाओं में मेडिकल शिक्षा का विकल्प दिया है। मेडिकल क्षेत्र को विशेष तवज्जो दिए जाने की बात कहते हुए उन्होंने बताया कि 2014 से पहले देश में 380 से कम मेडिकल कॉलेज थे जिनकी संख्या बढ़कर आज 650 हो गई है। बेशक, 2014 के बाद से सरकार ने चिकित्सा क्षेत्र पर खासा ध्यान केंद्रित किया है।

आधारभूत ढांचा तैयार करने की दिशा में तेजी से कार्य हुआ। यही कारण है कि सरकार दम भर रही है कि आने वाले दस सालों में जितने डॉक्टर तैयार होंगे उनकी संख्या बीते 75 साल के दौरान तैयार हुए चिकत्सकों की कुल संख्या से ज्यादा होगी। चिकित्सा और इंजीनियरिंग शिक्षण के लिए आधारभूत ढांचा जितना महत्त्वपूर्ण मुद्दा है, शिक्षण का भाषा का माध्यम भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। इस मामले में कोई पूर्वाग्रह या दुराग्रह नहीं होना चाहिए। जो छात्र प्रतिभाशाली हैं, उन्हें उस भाषा में पढ़ाई करने की सुविधा होनी चाहिए जिसमें वे पढ़ना चाहते हैं। इस दृष्टि से प्रधानमंत्री का कथन निश्चित ही वंचित तबकों के छात्रों के लिए सुखकारी है।

लेकिन तकनीकी शिक्षण में दरपेश व्यावहारिक पक्ष पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। देखा गया है तकनीकी विषयों से संबंधित पाठय़ पुस्तकें अंग्रेजी के अलावा अन्य भाषाओं में बनिस्बत कम ही होती हैं। रेफरेंस के लिए भी ज्यादातर पुस्तकें अंग्रेजी में हैं। छात्रों को मनचाहे माध्यम से पढ़ाई में निश्चित ही अड़चन का सामना होगा। शिक्षण के माध्यम में विकल्प होने से निश्चित ही लेवल प्लेइंग फील्ड जैसी आदर्श स्थिति होगी। अलबत्ता, सबसे बड़ी चुनौती छात्रों के चयनित विषय में पाठय़पुस्तकें मुहैया कराने के मामले में होगी।



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