मंत्रिमंडल विस्तार के मायने
काफी तकरार और मान-मनौव्वल के बाद बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ।
मंत्रिमंडल विस्तार के मायने |
सत्रह विधायकों को मंत्री पद की शपथ दिलाई गई जिनमें भाजपा कोटे से 9 और जनता दल यूनाइटेड (जद-यू) के 8 विधायकों को मंत्री बनाया गया। चूंकि इस बार भाजपा के 74 जबकि जद-यू के मात्र 43 विधायक ही जीतकर पहुंचे हैं, इसलिए इस बार बड़े भाई की भूमिका में स्वाभाविक तौर पर भाजपा है।
यह गणित मंत्रिमंडल में भी दिखता है। भाजपा के कोटे से मंत्री बने सदस्यों की संख्या जहां 16 है वहीं जद-यू के 12 मंत्री हैं। हालांकि अभी कैबिनेट विस्तार के बाद भी मंत्रियों की संख्या 30 हो रही है और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जोड़ दें तो यह संख्या 31 हो रही है। बिहार विधानसभा में 243 सदस्य हैं। संवैधानिक प्रावधान के अनुसार 15 फीसद सदस्य मंत्री बनाए जा सकते हैं।
इस लिहाज से मुख्यमंत्री सहित कुल 36 ही मंत्री बनाए जा सकते हैं। इस तरह से अभी पांच मंत्री के पद बचे हुए हैं। बात मंत्रिमंडल के सदस्यों की करें तो सबसे चौंकाने वाला नाम अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री रहे शाहनवाज हुसैन का है। उन्हें भारी-भरकम उद्योग मंत्रालय का जिम्मा दिया गया है। कयास लगाए जा रहे हैं कि आने वाले दिनों में हुसैन को मुख्यमंत्री के तौर पर आगे लाकर भाजपा अपनी कट्टर छवि को दुरुस्त करना चाहेगी। सीमांचल इलाके में जिस तरह से भाजपा कमजोर है, उसकी भरपाई के लिए हुसैन बड़ा चेहरा होंगे।
प. बंगाल में आसन्न चुनाव में भी हुसैन के कद को दिखाकर फायदा लेने की कोशिश भाजपा की रहेगी। बंगाल में कुल 100 सीटें मुस्लिम बहुल हैं। इनमें 70 सीटों पर मुस्लिम निर्णायक भूमिका में हैं। असम और केरल में भी पार्टी की उम्मीदों को पर देने के वास्ते हुसैन की उपयोगिता परखी जाएगी। संसदीय राजनीति में हाशिये पर पहुंचे हुसैन को विधानपरिषद में पहुंचाने के बाद मंत्री बनाना पार्टी का बड़ा दांव है। इससे भाजपा ने अल्पसंख्यक राजनीति करने वाले नीतीश पर दबाव बढ़ाया है। वैसे जद-यू से भी कोई मुस्लिम उम्मीदवार जीत नहीं सका, मगर बसपा विधायक को अपनी पार्टी में शामिल कर नीतीश ने यह कमी पूरी कर दी। देखना है, हुसैन के तौर पर भाजपा आगे क्या करती है?
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