प्रधानमंत्री की खरी-खरी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आंदोलनकारी किसानों से आग्रह किया है कि आंदोलन खत्म करें। उनसे बातचीत के दरवाजे बंद नहीं हुए हैं, और मैं इस सदन के माध्यम से उन्हें बातचीत के लिए आमंतण्रदेता हूं।
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प्रधानमंत्री मोदी ने राज्य सभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर पेश धन्यवाद प्रस्ताव पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए यह बात कही। उन्होंने किसानों से कृषि सुधारों को एक अवसर देने का आग्रह करते हुए कहा कि यह समय खेती को ‘खुशहाल’ बनाने का है। प्रधानमंत्री के कथन से इतना तो स्पष्ट है कि सरकार तीन नये कृषि कानूनों पर अपने रुख पर कायम है। अलबत्ता, मंडियां और एमएसपी बने रहने को लेकर उन्होंने किसानों को आश्वस्त जरूर किया है।
उन्होंने कांग्रेस पार्टी के रुख पर हैरत जताते हुए कहा कि कृषि में बदलाव की बात कहने वाली इस पार्टी ने आज यूटर्न लेते हुए उन्हीं बातों को मुद्दा बना लिया है, जिन्हें वह चाहते हुए भी लागू करने का साहस नहीं कर सकी थी। प्रधानमंत्री मोदी ने देश में उभरी एक नई जमात का जिक्र करते हुए नया शब्द भी दिया-‘आंदोलनजीवी’। कहा कि देश श्रमजीवी और बुद्धिजीवी जैसी जमातों से वाकिफ है, लेकिन अब ‘आंदोलनजीवी’ नाम की एक नई जमात उभर आई है। वकीलों का आंदोलन हो या छात्रों का आंदोलन या फिर मजदूरों का। ये हर जगह नजर आएंगे। कभी परदे के पीछे, कभी परदे के आगे। यह पूरी टोली है जो आंदोलन के बिना जी नहीं सकती। हमें ऐसे लोगों को पहचानना होगा। ये सारे आंदोलनजीवी परजीवी होते हैं। उन्होंने नये उभरे शब्द ‘एफडीआई-फॉरेन डिस्ट्रिक्टिव आइडियोल्ॉजी’- का भी उल्लेख किया। उनका इशारा आंदोलनरत किसानों को खालिस्तानी बताए जाने की ओर था।
उन्होंने कहा कि देश को सिखों पर गर्व है। बहरहाल, प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह दोटूक कहा है कि उससे स्पष्ट है कि सरकार हर हाल में कोई बातचीत सिरे चढ़ाना चाहती है। चाहती है कि बेवजह समय को नहीं गंवाया जाए। इसलिए फैसले की घड़ी को जाया नहीं किया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस तरफ इशारा किया है। कह सकते हैं कि सरकार ने एक बार फिर से गेंद किसानों के पाले में डाल दी है। अब यह किसानों पर है कि इस अवसर का कैसे विवेकपूर्ण तरीके से इस्तेमाल करते हैं। वक्त गंवाने में बुद्धिमानी नहीं है। देश का हित इसी में है कि मसले का फैसलाकुन हल निकले।
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