केन्द्र की आक्सीजन आवंटन नीति पर उत्तराखंड हाईकोर्ट ने उठाये सवाल
देश में ऑक्सीजन की भारी किल्लत के बीच उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार की ऑक्सीजन आवंटन नीति पर सवाल उठाते हुए राज्य को पुन: इस मामले में केन्द्र से बात करने की पेशकश करने को कहा है।
केन्द्र की आक्सीजन आवंटन नीति पर उत्तराखंड हाईकोर्ट ने उठाये सवाल |
दरअसल कोविड-19 महामारी को लेकर उच्च न्यायालय में लगभग छह विभिन्न जनहित याचिकायें दायर की गयी हैं। गुरुवार को इन्हीं याचिकाओं पर सुनवाई हुई। इसी दौरान प्रदेश में ऑक्सीजन की कमी का मामला उठा। प्रदेश सरकार की ओर से कहा गया कि राज्य में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाने के लिये विगत सात मई को केन्द्र सरकार को पत्र भेजा गया है लेकिन केन्द्र सरकार की ओर से उस पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी है।
राज्य सरकार की ओर से यह भी कहा गया कि प्रदेश में देहरादून, हरिद्वार व उधमसिंह नगर जनपद में मौजूद तीन आक्सीजन संयंत्रों से 358 टन ऑक्सीजन का उत्पादन किया जाता है। इसका आवंटन केन्द्र की निगरानी में किया जाता है। इसलिये प्रदेश को इसमें से मात्र 183 टन ऑक्सीजन ही उपलब्ध करायी जाती है। बाकी ऑक्सीजन को केन्द्र के निर्देश पर अन्य राज्यों को भेज दी जाती है।
प्रदेश सरकार की ओर से यह भी कहा गया कि इसके बदले उत्तराखंड में झारखंड के जमशेदपुर एवं पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर से ऑक्सीजन उपलब्ध करायी जाती है। जो कि सामयिक दृष्टि से अनुपयोगी है। साथ ही इसमें समय एवं धन अधिक बर्बाद होता है जो कि कोरोना महामारी के लिहाज से उपयुक्त नहीं है।
अदालत ने इसे गंभीरता से लिया और केन्द्र की ऑक्सीजन आवंटन नीति पर सवाल उठाते हुए कहा कि प्रदेश में उत्पादित ऑक्सीजन पर पहले उसी राज्य की जनता का हक होना चाहिए। अदालत ने इस पर भी सवाल खड़े किये कि प्रदेश की ऑक्सीजन को बाहरी राज्यों को भेज दी जा रही है और प्रदेश को झारखंड एवं बंगाल से आक्सीजन आपूर्ति की जा रही है।
केन्द्र सरकार के सॉलिसिटर जनरल राकेश थपलियाल की ओर से अदालत को बताया गया कि केन्द्र सरकार की ओर से सभी राज्यों के साथ संतुलन कायम किये जाने का प्रयास किया जा रहा है। हालांकि केन्द्र के जवाब से अदालत संतुष्ट नजर नहीं आयी। अदालत ने इस पर नाराजगी जतायी कि केन्द्र सरकार का कोई अधिकारी अदालत में पेश नहीं हुआ। अदालत ने इस पर भारी नाराजगी जताई और अपनी टिप्पणी में गैर जमानती वारंट जारी करने की बात भी कही।
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