श्री राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास के निधन पर अयोध्या में शोक की लहर, साधु-संतों ने जताया दुख

Last Updated 12 Feb 2025 01:37:52 PM IST

अयोध्या के राम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास के निधन से अयोध्या के साधु-संतों में शोक की लहर दौड़ गई है।


श्री शंभू पंच अग्नि अखाड़े के राष्ट्रीय महामंत्री महंत सोमेश्वरानंद जी महाराज ने कहा, "क‍िसी के भी न‍िधन से दुख होता है, चाहे वह कोई महात्मा हो या आम आदमी। लेकिन सत्‍येंद्र दास तो विरले पुरुष थे, जो न‍िरंतर भगवान रामलला की सेवा में लगे रहे। उनका योगदान हमेशा याद किया जाएगा। संत समाज और सभी भक्त उनका सदैव स्मरण करेंगे। हम प्रार्थना करते हैं कि भगवान रामलला उन्हें अपने चरणों में स्थान दें। हम सब उन्हें आंसुओं के साथ भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। ओम शांति।"

श्री पंच निर्वाणी अनी अखाड़े के धर्मदाश जी महाराज ने कहा, "यह बहुत दुखद है, और दूसरों को इसकी सूचना देना भी उतना ही दुखद है। लेकिन हनुमान जी की कृपा से उनकी आत्मा को शांति मिले। गुरुवार दोपहर 12 बजे उनका दाह संस्कार होगा। हम सभी देशवासियों से अनुरोध है कि घर में रहकर शांति बनाए रखें, खासकर जो लोग राम जन्मभूमि से जुड़े हुए हैं। अयोध्या के पुजारि‍यों के दिल में बहुत दुख है। परमात्मा की गति कोई नहीं जानता, इसलिए हनुमान जी की कृपा से उनकी आत्मा को शांति मिले।"

अयोध्या के रहने वाले और आचार्य सत्येंद्र दास के रिश्तेदार कृष्ण कुमार ने कहा, "महाराज जी बहुत अच्छे संत और अध्यापक थे। जब हम सरयू नदी से स्नान करके लौटे तो हमें यह दुखद समाचार मिला कि महाराज जी अब इस संसार में नहीं रहे। यह सुनकर हमें बहुत कष्ट हुआ। महाराज जी ने न केवल अध्यापन किया, बल्कि अपना पूरा जीवन भगवान की सेवा में समर्पित किया। उनके जाने से हमें बहुत दुख हुआ है। हम उनके अच्‍छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना कर रहे थे, लेकिन भगवान ने उन्हें अपने पास बुला लिया।"

श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने कहा, "दो फरवरी से उनकी तबीयत खराब थी। तब से उनके स्वास्थ्य में उतार-चढ़ाव चल रहा था। उनके निधन से समाज में शोक की लहर है। भगवान उन्हें अपने चरणों में स्थान दे।"

संत रामदास महाराज ने कहा, "सत्‍येंद्र दास महाराज हमारी वैदिक सनातन परंपरा के एक अटूट स्तंभ थे। लंबे समय तक उन्होंने संस्कृत महाविद्यालय में अध्ययन और अध्यापन किया और निस्वार्थ भाव से संस्कृति के प्रति जागरूक रहकर अपने कर्तव्य का निर्वहन किया। उनकी ईमानदारी और सज्जनता को देखते हुए उन्हें राम जन्मभूमि का पुजारी नियुक्त किया गया, और लगभग 30-35 वर्षों से वे भगवान रामलला की सेवा करते रहे। उनका जीवन नि‍ष्‍कलंक था। वह रामानंद परंपरा के एक दीप्तिमान नक्षत्र थे। उनका हमें छोड़कर जाना बहुत दुखद है।"

एक अन्य संत ने कहा, "यह एक दुखद घटना है। विषम परिस्थितियों में भी भगवान श्री राम लला की सेवा में लगे रहे। उन्होंने लगभग 35 वर्षों तक पूरे मनोयोग से और प्रसन्नता के साथ सेवा की और इस सेवा का परिणाम था कि भगवान के मंदिर पर विजय प्राप्त हुई। मंदिर बन रहा है, जो बहुत अच्छी बात है। उनका चिंतन भगवान में था। हमारा विश्वास है कि भगवान उन्हें अवश्य सद्गति प्रदान करेंगे। इसमें कोई संशय नहीं है।"
 

आईएएनएस
अयोध्या


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