Emperor Mihir Bhoj Pratihar Yatra : मेरठ में सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार यात्रा को लेकर गुर्जर-राजपूत आमने-सामने, क्या है विवाद की असल वजह, जानिए

Last Updated 18 Sep 2023 01:15:03 PM IST

यूपी के सहारनपुर (Saharanpur) के बाद अब मेरठ (Meerut) में गुर्जर समाज के लोगों ने सोमवार को सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार गौरव यात्रा (Emperor Mihir Bhoj Pratihar Yatra) निकालने का एलान किया था।


मेरठ में सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार यात्रा को लेकर गुर्जर-राजपूत समाज आमने-सामने

यह यात्रा मेरठ के मवाना क्षेत्र के बड़ा महादेव शिव मंदिर से शुरू होनी थी जिसमें गुर्जर समाज के सैकड़ों लोग शामिल होने के लिए एकत्रित हुए। इसी मामले में सपा विधायक अतुल प्रधान सहित 100 से ज्यादा लोग हिरासत में लिए गए हैं, साथ ही पुलिस ने अन्य विपक्ष के गुर्जर नेताओं को घर में नजरबंद कर दिया है।

गुर्जर समाज की सम्राट मिहिर भोज यात्रा का राजपूत समाज के लोगों ने कड़ा विरोध किया। दोनों समाज में टकराव न हो, इसलिए जिला प्रशासन ने गुर्जर समाज की यात्रा की अनुमति को निरस्त कर दिया।

राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना का कहना है कि मामला कोर्ट में विचाराधीन है। गुर्जर समाज को बिना अनुमति के विवादित यात्रा का आयोजन नहीं करना चाहिए। अगर विवादित यात्रा निकाली गई तो कड़ा विरोध किया जाएगा।

राजपूत समाज के लोगों ने विरोध पत्र जिला प्रशासन को सौंपा।

अपर पुलिस अधीक्षक कमलेश बहादुर ने कहा कि असमाजिक तत्वों को चिन्हित कर सख्त कार्रवाई की जाएगी। जिले में जातिगत आधार पर कोई भी यात्रा नहीं निकाली जायेगी। इसका कई लोगों ने समर्थन किया।

इसके अलावा दूसरे समाज ने आपत्ति जताते हुए ज्ञापन दिया है। चूंकि प्रकरण बहुत संवेदनशील है, लेकिन अनुमति नहीं होने के बाद भी यात्रा निकालने की कोशिश की गई जो कि विधि विरूद्ध है और इस पर पुलिस कार्रवाई कर रही है।

सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार यात्रा को लेकर भले ही जिला प्रशासन सख्त हो, लेकिन गुर्जर समाज के लोग सड़कों पर उतर गए हैं।

माहौल बिगड़ने और शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिला प्रशासन ने सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार यात्रा निकालने की अनुमति को निरस्त कर दिया। वहीं सोमवार को पुलिस ने सपा विधायक अतुल प्रधान सहित गुर्जर समाज के 100 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया है।

यह यात्रा मवाना के बड़ा महादेव शिव मंदिर से शुरू होनी थी। वहीं इस दौरान बाजारों में सन्नाटा पसरा रहा और लोगों ने अपनी दुकानें बंद रखीं।

असल विवाद की जड़ क्या है ?

ग्वालियर नगर निगम की कार्य परिषद में 14 दिसंबर 2015 को एक ठहराव प्रस्ताव लाया गया था। इसमें सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा को स्थापित करने का उल्लेख है, लेकिन कहीं भी गुर्जर सम्राट शब्द का जिक्र नहीं है। 8 सितंबर 2021 को नगर निगम द्वारा शीतला माता रोड चिरवाई नाका चौराहा पर सम्राट मिहिर भोज महान की प्रतिमा का अनावरण किया था। यहां प्रतिमा की पटि्टका पर सम्राट मिहिर भोज के आगे गुर्जर शब्द जोड़कर उन्हें गुर्जर सम्राट मिहिर भोज नाम दिया गया। राजपूत क्षत्रिय समाज ने इसका विरोध किया। दोनों समुदाय एक-दूसरे के सामने आ गए। यहीं से सम्राट मिहिर भोज की जाति को लेकर विवाद शुरू हो गया।

क्या है गुर्जर समाज का कहना?

अखिल भारतीय वीर गुर्जर महासभा के प्रदेश उपाध्यक्ष अलबेल सिंह घुरैया ने इतिहासकार और आचार्य वीरेन्द्र विक्रम के माध्यम से दावा किया है। उन्होंने कहा कि सम्राट मिहिर भोज महान ने 53 साल अखंड भारत पर शासन किया। वे गुर्जर प्रतिहार वंश के प्रतापी शासक थे। उनको समकालीन शासक गुर्जर सम्राट नाम से ही जानते थे। उनके समकालीन शासकों राष्ट्रकूट और पालों ने अपने अभिलेखों में उनको गुर्जर कहकर ही संबोधित किया है। 851ईस्वी में भारत भ्रमण पर आए अरब यात्री सुलेमान ने उनको गुर्जर राजा और उनके देश को गुर्जर देश कहा है। सम्राट मिहिर भोज के पौत्र सम्राट महिपाल को कन्नड़ कवि पंप ने गुर्जर राजा लिखा है।

अलबेल सिंह ने बताया कि प्रतिहारों का कदवाहा, राजोर, देवली, राधनपुर, करहाड़, सज्जन, नीलगुंड, बड़ौदा के शिलालेखों में गुर्जर बताया गया है। भारत के इतिहास में 1300 ईस्वी से पहले राजपूत नाम की किसी भी जाति का कोई उल्लेख नहीं है। क्षत्रिय कोई जाति नहीं है। क्षत्रिय एक वर्ण है, जिसमें जाट, गुर्जर, राजपूत अहीर (यादव ), मराठा आदि सभी जातियां आती हैं।

क्या कहता है क्षत्रिय समाज ?

मिहिर भोज महान की प्रतिमा स्थापित करने के लिए अध्यक्ष नगर निगम ग्वालियर में पारित ठहराव में कहीं भी गुर्जर शब्द का उल्लेख नहीं है, जबकि गुपचुप तरीके से 8 सितंबर 2021 वर्चुअल उद्घाटन कर गुर्जर शब्द प्रतिमा पर अंकित कर दिया गया। क्षत्रिय महासभा ने कहा है कि राजपूत युग (शासन काल) भारत वर्ष के समस्त दस्तावेजों में 700 ईस्वी से 1200 ई तक रहा है।

बता दें कि इसी दौरान सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार राजवंश का शासन काल 836 से 885 ईस्वी तक रहा है। उस समय राजस्थान या राजपूताना नाम की कोई राजनीतिक इकाई नहीं थी। संपूर्ण प्रदेश 'गुर्जर प्रदेश' नाम से जाना जाता था। इस क्षेत्र का स्वामी होने पर वह कालांतर में गुर्जर-प्रतिहार (गुर्जराधिपति) कहलाए। इसके संबंध में उन्होंने भारत वर्ष में आए विदेशी नागरिक, इतिहास के पन्नों को रखा है, जिसमें गुर्जर प्रतिहार वंश में गुर्जर का मतलब स्थान है, न कि जाति।

 

आईएएनएस
मेरठ


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