सुनियोजित साजिश थी सीएए को लेकर हुई हिंसा
राजधानी लखनऊ के 11 साल तक मेयर, लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अब उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री डा. दिनेश शर्मा मंगलवार को यहां ‘राष्ट्रीय सहारा’ कार्यालय आये। उन्होंने देश-प्रदेश की राजनीति, विकास व सीएए आदि मुद्दों पर खुलकर बातचीत की। प्रस्तुत है उनसे बातचीत के प्रमुख अंश।
उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री डा. दिनेश शर्मा |
सीएए को लेकर हुई हिंसा को भांपने में खुफिया एजेंसियों से कहां चूक हुई?
सरकारी खुफिया एजेंसियों से कोई चूक नहीं हुई। खुफिया एजेंसियों ने शान्तिपूर्ण आंदोलन की रिपोर्ट दी थी। पीएम मोदी पर मुसलमानों का भरोसा बढ़ रहा है। विपक्ष को यह बात अच्छी नहीं लगी। शहर के उलेमाओं ने भी वायदा किया था और पुलिस पर विश्वास जताया था, लेकिन जामिया से आये 15-20 लड़के व 4-6 लड़कियां नारे लगाने लगे। वह सभी प्रदर्शनों में कामन थे। उन्होंने ही आकर लखनऊ में माहौल बिगाड़ा। डा. शर्मा ने कहा कि यहां विरोध को दो राजनीतिक दलों की ओर से हवा दी गयी। कांग्रेस नेता यूपी में आकर नागरिकता कानून को लेकर भ्रम व भय पैदा करने की कोशिश में लगे हैं। उन्होंने कहा कि अगर कोई यह कहता है कि वह एनपीआर नहीं भरेगा तो वह संविधान का किस तरह समर्थन कर रहा है या फिर केन्द्र के कानून के विरोधियों को सम्मानित करने वालों को क्या कहा जाए। उन्होंने कहा कि कुछ दल राष्ट्र हित की बजाय वोट हित को साधने में लगे हैं। उनकी चिंता मुसलमानों को लेकर नहीं बल्कि 2022 (यानि आगामी विधानसभा चुनाव) की है। ऐसे दलों को जनता 2017 व 2019 में खारिज कर चुकी है। और हाल में ही 12 विस सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा को 9 सीटों पर मिली कामयाबी इसका प्रमाण है। उनके लिए यूपी में अब कोई स्कोप नहीं है तो मतभेद पैदा करके सहानुभूति हासिल करने में लगे हैं। इसमें सपा और कांग्रेस ने भी उत्तेजना भरने का काम किया। डा. शर्मा ने कहा कि लखनऊ ऐसा शहर नहीं था कि यहां हिंसा हो। अब धर्मगुरुओं ने भी सहयोग किया है। शहर का अमन-चैन बहाल है। सीसीटीवी फुटेज के आधार पर चिह्नित कर आरोपितों पर कार्रवाई की जा रही है।
जेएनयू में हुई हिंसा पर आपकी क्या राय है ?
हिंसा वहां के वामपंथी धड़ों से जुड़े शिक्षकों-छात्रों के एक गुट की देन है। इस विचारधारा के लोग जब से भाजपा की सरकार बनी अस्थिर करने में जुटे हुए हैं। यह लोग जेएनयू ही नहीं अन्य विश्वविद्यालयों में भी छात्रों के एक गुट को बरगलाकर हिंसा फैलाने की सुनियोजित साजिश में जुड़े हुए हैं। जेएनयू जैसे प्रतिष्ठित संस्थान को इन लोगों ने पहले राहुल बेमुला के नाम पर अराजकता फैलायी। फिर दूसरे विवि में भी सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए अराजकता फैलाने का प्रयास किया। लेकिन छात्रों का एक बड़ा वर्ग इन लोगों की साजिश को समझ चुका है। वैसे जेएनयू हिंसा मामले में जांच के आदेश हो गये हैं। जांच रिपोर्ट आते ही दोषियों पर कड़ी कार्रवाई होगी।
शिक्षा लगातार महंगी हो रही है। इसे नियंत्रित करने के लिए क्या सरकार कोई आयोग सक्रिय करेगी ?
यूपी देश का पहला ऐसा राज्य है, जहां इस तरह के कानून बनाये गये हैं। इसके तहत कोई भी विद्यालय सीपीआई (वर्तमान महंगाई दर), पिछले वर्ष की फीस से अधिकतम 5 फीसदी से ज्यादा शुल्क नहीं बढ़ा सकता है। यदि कोई विद्यालय ऐसा करेगा तो उस पर जुर्माना लगाया जायेगा। इस मामले में लखनऊ के एक प्रतिष्ठित कालेज पर पांच लाख के जुर्माने की कार्रवाई चल रही है।
यूपी कामाध्यमिक शिक्षा बोर्ड देश का सबसे बदनाम बोर्ड था, इसकी छवि कैसे बदली।
श्री शर्मा ने कहा कि पूर्ववर्ती सरकारों में यूपी में नकल को व्यवसाय बना दिया गया था। विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान ही पीएम नरेन्द्र मोदी ने यूपी में नकल के ठेके होने का जिक्र गोण्डा की एक सभा में किया था, वह सरकार में उप मुख्यमंत्री बने तो उन्हें माध्यमिक व उच्च शिक्षा विभाग का भी जिम्मा मिला। तभी से मन में बदलाव लाने के लिए ठाना। यूपी में पहले अतौलिया बोर्ड, मथुरा बोर्ड, गाजीपुर बोर्ड के नाम से कुख्यात क्षेत्र थे, लेकिन तकनीक का इस्तेमाल कर निगरानी बढ़ायी। परीक्षा केन्द्रों के निर्धारण से लेकर परीक्षा होने तक पूरी प्रक्रिया ऑन लाइन की। सीसीटीवी,राउटर, साउंड रिकार्डर लगवाये। एसटीएफ की भी मदद ली गयी। यूपी बोर्ड में आधार से लिंक कराया गया, पहले तो पंजाब और सऊदी अरब में बैठकर ही लोग यूपी बोर्ड परीक्षा उत्तीर्ण कर लेते थे लेकिन अब इसको पूरी तरह रोक दिया गया है। शिक्षा का व्यवसाय करने वालों से यूपी पूरी तरह मुक्त हो चुका है। अब हमारे हाईस्कूल व इंटर के अंकपत्र व प्रमाणपत्र की अहमियत बढ़ी है। इसको रोजगार से जोड़कर दम लेंगे।
यूपी शिक्षा सेवा चयन आयोग में प्रस्तावित अधिनियम की धारा-18 विद्यालयों के प्रबंधकों को ’मालिक‘ जैसे अधिकार दे रही है, क्या शिक्षा के भविष्य लिए यह ठीक है?
शिक्षा सेवा चयन आयोग के प्रस्तावित अधिनियम की धारा-18 पहले से ज्यादा बेहतर है। इसके तहत यदि प्रबंधक किसी शिक्षक और कर्मचारी को नोटिस भी देना चाहेगा तो उसे पहले अनुमति लेनी होगी। इससे शिक्षकों के हित और मजबूत होने जा रहे हैं।
यूपी के सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर क्या किया जा रहा है?
डा. शर्मा ने कहा कि प्राइवेट स्कूलों से सरकारी स्कूलों की तुलना ठीक नहीं है। इसके बाद भी यूपी बोर्ड के कई कालेज निजी स्कूलों से कमतर नहीं है। राजकीय जूबिली कालेज, गर्ल्स कालेज, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस डिग्री कालेज बेहतर है और बदलाव को लेकर जो कदम उठाये जा रहे हैं, इनका प्रभाव आने वाले वर्ष में दिखेगा।
उच्च शिक्षा में शिक्षकों की कमी एक चुनौती है, इससे कैसे निपटेंगे।
वर्तमान भाजपा सरकार के कार्यकाल में डिग्री कालेजों में 3200 शिक्षकों की भर्ती की गयी है और यह प्रक्रिया नियमित चल रही है। आगामी वर्ष में भी दस हजार शिक्षकों की भर्ती उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के माध्यम से की जाएगी।
उन्होंने बताया कि एक अन्य विभाग आईटी व इलेक्ट्रानिक्स में भी काफी बेहतर काम हो रहा है। यूपी में निवेश के लिए आये डेढ़ लाख करोड़ के प्रस्ताव में 65 हजार करोड़ के निवेश के प्रस्ताव मिले हैं। इसके साथ ही सीएम हेल्पलाइन का काम भी आईटी विभाग कर रहा है। आन लाइन टेण्डरिंग का जिम्मा भी इसी महकमे को है।
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