राज्यसभा में DMK सांसद ने कहा- परिसीमन लागू करने का मतलब जनसंख्या काबू करने वाले राज्यों को सज़ा देना होगा

Last Updated 19 Mar 2025 03:16:29 PM IST

द्रविड़ मुनेत्र कषगम (DMK) के सदस्य पी विल्सन ने बुधवार को राज्यसभा में कहा कि इस समय संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन को लागू करने का अर्थ जनसंख्या पर सफलतापूर्वक काबू करने वाले राज्यों को अनुचित तरीके से दंडित करना तथा इसमें विफल रहे राज्यों को पुरस्कृत करना होगा।


राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान इस मुद्दे को उठाते हुए विल्सन ने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के प्रति समग्र दृष्टिकोण अपनाने की भी मांग की।

उन्होंने कहा कि सभी राज्यों का उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए 1952, 1962 और 1972 में प्रत्येक जनगणना के बाद परिसीमन किया गया था।


विल्सन ने कहा कि कुछ राज्यों ने परिवार नियोजन नीतियों को अपनाया, जबकि अन्य ने इस मुद्दे को नजरअंदाज कर दिया, जिसके कारण उनकी आबादी अनियंत्रित हो गई।

उन्होंने कहा कि इसलिए इस असमानता को दूर करने के लिए 42 वें संवैधानिक संशोधन ने 1971 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर 25 वर्षों के लिए परिसीमन को टाल दिया, जिससे उन राज्यों की रक्षा हुई।

वरिष्ठ द्रमुक सदस्य ने कहा कि वर्ष 2000 में लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं में सीटों के पुनर्निर्धारण पर अगले 25 वर्षो (वर्ष 2026 तक) तक के लिये प्रतिबंध बढ़ा दिया गया क्योंकि इसका उद्देश्य जनसंख्या को सीमित करने के उपायों को प्रोत्साहित करना था।

विल्सन ने कहा कि आंकड़ों से पता चलता है कि तमिलनाडु जैसे राज्यों में कुल प्रजनन दर 1.7 और केरल में 1.8 पर सीमित रही।

उन्होंने कहा कि यह दर्शाता है कि इन राज्यों ने अपनी जनसंख्या को सफलतापूर्वक स्थिर कर लिया है। इसके विपरीत, उत्तर प्रदेश में यह दर 2.4 और बिहार में 3.0 है।

उन्होंने कहा कि इसका अर्थ है कि इन राज्यों में जनसंख्या वृद्धि में तेजी जारी है।

विल्सन ने कहा, ‘‘इससे पता चलता है कि 2026 में रोक हटाने का मूल तर्क अब मान्य नहीं है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘इस तर्क पर परिसीमन को लागू करने से उन राज्यों को अनुचित तरीके से दंडित किया जाएगा जिन्होंने जनसंख्या को सीमित करने के उपायों को सफलतापूर्वक लागू किया। जबकि उन लोगों को पुरस्कृत किया जाएगा जो इसे असफल रहे।’’

उन्होंने कहा कि इसका परिणाम तमिलनाडु जैसे उन राज्यों के लिए ‘आपदा’ साबित हो सकते हैं, जिन्होंने अपनी आबादी को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया है।

द्रमुक सदस्य ने कहा कि अगर 2026 की जनगणना के आधार पर संसदीय सीटों की संख्या बढ़ाई जाती है, तो राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों को सामूहिक रूप से 150 से अधिक अतिरिक्त सीटें मिल सकेंगी।

विल्सन ने कहा कि इसके विपरीत दक्षिणी राज्य - तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना - सामूहिक रूप से केवल 35 सीटें ही हासिल कर सकेंगे।

उन्होंने कहा कि अगर लोकसभा की मौजूदा 543 सीटों को बरकरार रखा जाता है और 2026 की जनगणना के आधार पर पुनर्वितरित किया जाता है, तो तमिलनाडु को आठ सीटों का नुकसान होगा, जबकि उत्तर प्रदेश और बिहार को 21 सीटों का फायदा होगा।

उनके अनुसार, जिन राज्यों ने राष्ट्रीय परिवार नियोजन नीति को प्रभावी ढंग से लागू किया है, उन्हें दंड का सामना करना पड़ेगा।

विल्सन ने कहा कि इसके परिणामस्वरूप इन राज्यों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व कम होगा और उनकी ताकत भी घटेगी।

उन्होंने कहा, ‘‘यह बदलाव उन राज्यों के पक्ष में होगा जिन्होंने राष्ट्रीय परिवार नीति नियोजन का पालन नहीं किया है। क्यों? हमें अपना सही प्रतिनिधित्व और राजनीतिक लाभ क्यों गंवाना चाहिए? परिवार नियोजन की उपेक्षा करने वाले राज्यों को बढ़े हुए प्रतिनिधित्व के साथ पुरस्कृत क्यों किया जा रहा है?’’

विल्सन ने कहा, ‘‘यह उन राज्यों के खिलाफ राजनीतिक तख्तापलट से कम नहीं है जो हमारी राष्ट्रीय सोच के लिए प्रतिबद्ध हैं।’’

उन्होंने प्रधानमंत्री से इस मुद्दे का समाधान करने का आग्रह किया।
 

भाषा
नई दिल्ली


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