बंगाल ने ममता के साथ ही कई अन्य बेटियों भी जिताया

Last Updated 04 May 2021 09:35:49 PM IST

हाल में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) द्वारा जब ‘बांग्ला निजेर मेय के चाय’ (बंगाल को अपनी बेटी चाहिए) लिखा एक बड़ा होर्डिंग लगवाया गया था तो संभवत: उसके ध्यान में राज्य में 49 प्रतिशत निर्णायक महिला मत रहा होगा, जिसे लुभाने की ममता बनर्जी और भाजपा कोशिश कर रहे थे और इसमें सत्ताधारी दल काफी हद तक सफल रहा।


बंगाल ने ममता के साथ ही कई अन्य बेटियों भी जिताया

राज्य में दो मई की दोपहर बाद यह स्पष्ट हो चुका था कि पश्चिम बंगाल की महिलाओं और पुरुषों ने न सिर्फ एक बेटी- ममता बनर्जी - बल्कि कई अन्य बेटियों को भी चुना है।
कई महिला उम्मीदवार भले ही वे किसी भी राजनीतिक दल से हों, चुनावी समर में विजेता बनकर उभरीं, जिनमें टीएमसी की रत्ना चटर्जी, शशि पांजा और चंद्रिमा भट्टाचार्य तथा भाजपा की अंगमित्रा पॉल, चंदना बौरी और तापसी मंडल शामिल हैं।
तृणमूल कांग्रेस ने इस बार 50 महिलाओं को उम्मीदवार बनाया था तो भारतीय जनता पार्टी ने भी करीब 37 महिलाओं को टिकट दिया था। दोनों ही मुख्य प्रतिद्वंद्वियों ने प्रचार के दौरान महिला केंद्रित मुद्दों को तरजीह दी थी।
दम दम उत्तर सीट से टीएमसी की विजयी प्रत्याशी भट्टाचार्य ने कहा कि उनकी पार्टी हमेशा महिलाओं की जरूरतों के प्रति संवेदनशील रही है और उन्हें सशक्त बनाना जारी रखेगी।
उन्होंने कहा कि हमारे चुनावी घोषणा पत्र में महिलाओं के लिये मासिक भत्ते समेत कई कार्यक्रम हैं। उन्होंने दावा किया कि महिलाओं और पुरुषों से समान व्यवहार हो इसके लिये हमारी सरकार ने काफी कुछ किया है।

अपनी करीबी प्रतिद्वंद्वी भाजपा की अर्जना मूजमदार को 28,499 मतों से हराने वाली भट्टाचार्य ने कहा कि आने वाले दिनों में टीएमसी उनके लिये काम करती रहेगी।
बेहला पूर्व सीट से चुनाव जीतने वाली चटर्जी भी भट्टाचार्य की बातों से इत्तेफाक रखती हैं और कहा कि टीएमसी सुप्रीमो खुद महिला हैं और राज्य की महिला मतदाताओं के सामने आने वाली समस्याओं का उन्हें पता है।
चटर्जी ने कहा कि उन्होंने (बनर्जी ने) खुद यह मुकाम हासिल किया है और चाहेंगी कि राज्य की हर महिला आत्मनिर्भर बने। उनके मुताबिक महिलाओं के जीवन स्तर में सुधार के उद्देश्य से टीएमसी ने कई योजनाएं शुरू की हैं जिनमें उनके स्वास्थ्य व शिक्षा को प्राथमिकता दी गई है। चटर्जी ने कहा कि एक विधायक के तौर पर मैं अपने क्षेत्र में महिलाओं के उत्थान के लिये प्रयास करूंगी।
चुनाव प्रचार के दौरान भी महिलाओं के लिये अपनी योजनाओं का दोनों दलों ने जोर शोर से प्रचार किया। ममता बनर्जी का खेमा जहां स्वास्थ्य साथी और कन्याश्री जैसी योजनाओं का जिक्र कर रहा था तो भगवा दल उज्ज्वला योजना की उपलब्धियां गिना रहा था।
दम दम उत्तर विधानसभा क्षेत्र की मतदाता सबिता हलदर कहती हैं कि अगर एक महिला अपने दम पर दिल्ली के शक्तिशाली नेताओं से मुकाबला करने का संकल्प दिखा सकती है तो महिला मतदाताओं को इससे प्रेरणा लेकर इस लड़ाई का हिस्सा क्यों नहीं बनना चाहिए? हलदर ने कहा कि उनकी (बनर्जी की) महिला उम्मीदवार बंगाल की माताओं, बेटियों और बहनों के हर एक वोट की हकदार हैं।
सोनारपुर दक्षिण विधानसभा क्षेत्र की मतदाता, शोधार्थी सीमा प्रमाणिक कहती हैं, ‘‘एक महिला के तौर पर दिलीप घोष (बंगाल भाजपा प्रमुख) द्वारा ममता के लिये की गई ‘बरमूडा’ टिप्पणी से मुझे शर्मिंदगी महसूस हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उनके लिये व्यंगात्मक लहजे में ‘दीदी ओ दीदी’ कहा जाना भी अवांछित था। मुझे उम्मीद है कि अन्य महिला मतदाताओं में भी ऐसे कथनों को लेकर रोष होगा।’’
घोष की एक वीडियो क्लिप वायरल हुई थी जिसमें वह संभवत: अपना चोटिल पैर दिखाने के लिये ममता बनर्जी को बरमूडा पहनने की सलाह दे रहे हैं, जिसे लेकर मार्च में विवाद हुआ था।
राजनीतिक विश्लेषक उदयन बनर्जी के मुताबिक भाजपा की आक्रामक मशीनरी ने कुछ हद तक काम किया और पार्टी ने राज्य में कुछ सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की।
उन्होंने कहा, हालांकि यह सवाल कि भगवा खेमे के खिलाफ क्या गया तो वह वो टिप्पणियां थीं जो उनके नेताओं ने बनर्जी को लक्षित करके कीं, जिनमें से कुछ सियासी लिहाज से अच्छी नहीं थीं।
बनर्जी ने कहा, ‘‘बरमूडा संबंधी टिप्पणी महिला मतदाताओं को पसंद नहीं आई जिन्होंने बड़ी संख्या में बनर्जी और उनकी पार्टी के लिये मतदान किया। मोदी द्वारा अपने चुनावी भाषणों में ‘दीदी ओ दीदी’ का इस्तेमाल भी लोगों को रास नहीं आया। यह कहा जा सकता है कि बंगाल ने उन तानों को लेकर नरमी नहीं दिखाई।’’
भाजपा ने एक बार में तीन तलाक को खत्म करने की पहल का जिक्र कर मुस्लिम महिलाओं को लुभाने की कोशिश की ।
भगवा दल के पश्चिम बंगाल में महिलाओं के असुरक्षित होने का जिक्र किये जाने के बारे में पूछने पर चटर्जी ने कहा, ‘‘बंगाल ने कभी हाथरस जैसे प्रकरण का अनुभव नहीं किया और उम्मीद है कभी करेगा भी नहीं।’’ चटर्जी ने भाजपा की पायल सरकार को 37428 मतों के अंतर से शिकस्त दी।
नाम न जाहिर करने की शर्त पर भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने दावा किया कि मुख्यमंत्री पद के लिये चेहरे का न होना या बनर्जी को टक्कर देने लायक आक्रामक महिला नेता की कमी भी पार्टी की हार की बड़ी वजह है।

भाषा
कोलकाता


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