'CM पद से हटाकर गलत किया, सभी विकल्प खुले', दिल्ली से चंपई ने रांची को दिया संदेश
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झामुमो के कद्दावर नेता चंपई सोरेन दिल्ली में हैं। लेकिन, इस बार उनका दिल्ली आगमन झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के लिए कठिन दौर के समान है। चंपई सोरेन के भाजपा में शामिल होने के कयास हैं। दूसरी तरफ चंपई सोरेन ने रविवार की शाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लंबा-चौड़ा पोस्ट करके सनसनी फैला दी।
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झामुमो के कद्दावर नेता चंपई सोरेन |
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झामुमो के कद्दावर नेता चंपई सोरेन ने अपनी पोस्ट में कई बातों का जिक्र किया और खास बात यह रही कि चंपई सोरेन ने सीएम पद से हटाए जाने के बाद पहली बार साफतौर पर कहा कि उन्हें सीएम पद से हटाकर गलत किया गया। इससे बड़ा अपमान उनके लिए कुछ भी नहीं होगा।
चंपई सोरेन ने पोस्ट में लिखा, "जोहार साथियों, आज समाचार देखने के बाद, आप सभी के मन में कई सवाल उमड़ रहे होंगे। आखिर ऐसा क्या हुआ, जिसने कोल्हान के एक छोटे से गांव में रहने वाले एक गरीब किसान के बेटे को इस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया। अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत में औद्योगिक घरानों के खिलाफ मजदूरों की आवाज उठाने से लेकर झारखंड आंदोलन तक, मैंने हमेशा जन-सरोकार की राजनीति की है। राज्य के आदिवासियों, मूलवासियों, गरीबों, मजदूरों, छात्रों एवं पिछड़े तबके के लोगों को उनका अधिकार दिलवाने का प्रयास करता रहा हूं। किसी भी पद पर रहा या नहीं, लेकिन हर पल जनता के लिए उपलब्ध रहा। उन लोगों के मुद्दे उठाता रहा, जिन्होंने प्रदेश के साथ-साथ अपने बेहतर भविष्य के सपने देखे थे।"
चंपई सोरेन ने लिखा, "इसी बीच, 31 जनवरी को इंडिया गठबंधन ने मुझे झारखंड के 12वें मुख्यमंत्री के तौर पर राज्य की सेवा करने के लिए चुना। अपने कार्यकाल के पहले दिन से लेकर आखिरी दिन (3 जुलाई) तक मैंने पूरी निष्ठा एवं समर्पण के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया। हमने जनहित में कई फैसले लिए और हमेशा की तरह, हर किसी के लिए उपलब्ध रहा। बड़े-बुजुर्गों, महिलाओं, युवाओं, छात्रों एवं समाज के हर तबके तथा राज्य के हर व्यक्ति को ध्यान में रखते हुए हमने जो निर्णय लिए, उसका मूल्यांकन राज्य की जनता करेगी।"
उन्होंने कहा, "जब सत्ता मिली, तब बाबा तिलका मांझी, भगवान बिरसा मुंडा और सिदो-कान्हू जैसे वीरों को नमन कर राज्य की सेवा करने का संकल्प लिया था। झारखंड का बच्चा-बच्चा जनता है कि अपने कार्यकाल के दौरान, मैंने कभी, किसी के साथ ना गलत किया, ना होने दिया। इसी बीच, हूल दिवस के अगले दिन, मुझे पता चला कि अगले दो दिनों के मेरे सभी कार्यक्रमों को पार्टी नेतृत्व ने स्थगित करा दिया। इसमें एक सार्वजनिक कार्यक्रम दुमका में था, जबकि दूसरा कार्यक्रम पीजीटी शिक्षकों को नियुक्ति पत्र वितरण करने का था। पूछने पर पता चला कि गठबंधन द्वारा 3 जुलाई को विधायक दल की एक बैठक बुलाई गई है। इस बैठक के होने तब आप बतौर मुख्यमंत्री किसी कार्यक्रम में नहीं जा सकते हैं।"
उन्होंने सवाल करते हुए कहा, "क्या लोकतंत्र में इससे अपमानजनक कुछ हो सकता है क्या कि एक मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों को कोई अन्य व्यक्ति रद्द करवा दे? अपमान का यह कड़वा घूंट पीने के बावजूद मैंने कहा कि नियुक्ति पत्र वितरण सुबह है, जबकि दोपहर में विधायक दल की बैठक होगी, तो वहां से होते हुए मैं उसमें शामिल हो जाऊंगा। लेकिन, इंकार कर दिया गया।"
उन्होंने कहा कि पिछले चार दशकों के अपने बेदाग राजनीतिक सफर में, मैं पहली बार, भीतर से टूट गया। समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं। दो दिन तक, चुपचाप बैठ कर आत्म-मंथन करता रहा, पूरे घटनाक्रम में अपनी गलती तलाशता रहा। सत्ता का लोभ रत्ती भर भी नहीं था, लेकिन आत्मसम्मान पर लगी इस चोट को मैं किसे दिखाता? अपनों द्वारा दिए दर्द को कहां जाहिर करता? जब सालों से पार्टी के केंद्रीय कार्यकारिणी की बैठक नहीं हो रही है और एकतरफा आदेश पारित किए जाते हैं, तो फिर किसके पास जाकर अपनी तकलीफ बताता? पार्टी में मेरी गिनती वरिष्ठ सदस्यों में होती है, बाकी लोग जूनियर हैं, और मुझसे सीनियर सुप्रीमो जो हैं, वे अब स्वास्थ्य की वजह से राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, फिर मेरे पास क्या विकल्प था? अगर वे सक्रिय होते, तो शायद अलग हालात होते।"
उन्होंने कहा, "कहने को तो विधायक दल की बैठक बुलाने का अधिकार मुख्यमंत्री का होता है, लेकिन मुझे बैठक का एजेंडा तक नहीं बताया गया था। बैठक के दौरान मुझसे इस्तीफा मांगा गया। मैं आश्चर्यचकित था, लेकिन मुझे सत्ता का मोह नहीं था, इसलिए मैंने तुरंत इस्तीफा दे दिया, लेकिन आत्मसम्मान पर लगी चोट से दिल भावुक था। पिछले तीन दिनों से हो रहे अपमानजनक व्यवहार से भावुक होकर मैं आंसुओं को संभालने में लगा था, लेकिन उन्हें सिर्फ कुर्सी से मतलब था। मुझे ऐसा लगा, मानो उस पार्टी में मेरा कोई वजूद ही नहीं है, कोई अस्तित्व ही नहीं है, जिस पार्टी के लिए हमने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। इस बीच कई ऐसी अपमानजनक घटनाएं हुईं, जिसका जिक्र फिलहाल नहीं करना चाहता। इतने अपमान एवं तिरस्कार के बाद मैं वैकल्पिक राह तलाशने हेतु मजबूर हो गया।"
उन्होंने कहा कि मैंने भारी मन से विधायक दल की उसी बैठक में कहा कि "आज से मेरे जीवन का नया अध्याय शुरू होने जा रहा है।" इसमें मेरे पास तीन विकल्प थे। पहला, राजनीति से संन्यास लेना, दूसरा, अपना अलग संगठन खड़ा करना और तीसरा, इस राह में अगर कोई साथी मिले, तो उसके साथ आगे का सफर तय करना। उस दिन से लेकर आज तक, तथा आगामी झारखंड विधानसभा चुनावों तक, इस सफर में मेरे लिए सभी विकल्प खुले हुए हैं। एक बात और, यह मेरा निजी संघर्ष है इसलिए इसमें पार्टी के किसी सदस्य को शामिल करने अथवा संगठन को किसी प्रकार की क्षति पहुंचाने का मेरा कोई इरादा नहीं है। जिस पार्टी को हमने अपने खून-पसीने से सींचा है, उसका नुकसान करने के बारे में तो कभी सोच भी नहीं सकते। लेकिन, हालात ऐसे बना दिए गए हैं कि…"
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