सत्ता की सीढी नहीं है जातीय अस्मिता

Last Updated 23 Nov 2023 07:26:39 PM IST

भारत विश्व में अपनी खास सांस्कृतिक धरोहर के कारण विशिष्ट स्थान रखता है। कभी भी बहुलतावादी इस देश में न जातीय और न ही वर्ग संघर्ष हुआ। विभिन्न जातियों और धर्मों के बीच हमेशा से आपसी समझ बूझ समन्वय, भाईचारा और एकता की भावना बनी रही।


जय प्रकाश तोमर

उसी जज्बे के साथ आजादी का संघर्ष कर ब्रिटेन से हमने स्वतंत्रता पाई और पिछले 75 वर्षों में लोकतंत्र की हमारी यात्रा सफल रही। न तो 30 जून 1948 को जब महात्मा गांधी की हत्या हुई तब भी देश की अस्मिता पर कोई आंच नहीं आई और न ही तब जब 31 अक्टूबर 1984 को ताकतवर प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की उन्हीं के दो सुरक्षाकर्मी सरदार बेअंत सिंह सरदार सतवंत सिंह द्वारा हत्या की गई थी। लेकिन अब सत्ता प्राप्ति की खातिर नए बने विपक्षी गठबंधन में शामिल प्रमुख दल कांग्रेस और उनके कुछ साथी देश में जातीय संघर्ष पैदा करना चाहते हैं। वह इसे सत्ता की सीढ़ियां बनाने पर उतारू दिखते हैं, जबकि सच्चाई इसके ठीक विपरीत है। भारत के सत्ता प्रतिष्ठान में जातीय संतुलन और समन्वय बेजोड़ बना हुआ है। कहीं से भी जातीय असंतोष की भावना सामने नहीं आई है। लेकिन सत्ता के भूखे भेड़िए तरह-तरह से जातियों में और वर्गों में टकराव की स्थितियां पैदा करने में लगे हैं।

उन्हें लगता है कि इस तरकीब को अजमाकर वे लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके नेतृत्व वाली केंद्रीय सरकार के सामने गतिरोध पैदा कर सकते हैं। विपक्षी दलों का प्रयास है कि वे कोई भी हथकंड़ा अपनाकर 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा का रास्ता रोक सकते हैं। भारतीय जनता पार्टी या उसके पूर्व संस्करण जनसंघ ने हमेशा सभी जातियों और वर्गों को साथ लेकर राष्ट्रीयता की भावना को मजबूत करते हुए राजनीति की है। 1980 के बाद भाजपा राज्य और केंद्र में कांग्रेस के साथ सबसे राजनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित हुई है। भाजपा ने कल्याण सिंह, उमा भारती, बाबूलाल गौर, शिवराज सिंह चौहान, वाईएस येदियुरप्पा, केशुभाई पटेल और साहब सिंह को मुख्यमंत्री बनाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद पिछड़ा वर्ग से आते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत  सर्वोच्च पद (राष्ट्रपति) पर वैज्ञानिक अब्दुल कलाम आजाद, रामनाथ कोविंद और अब आदिवासी महिला द्रोपदी मुर्मू को बैठाने का काम किया है। मौजूदा उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ भी पिछड़ी जाट बिरादरी से आते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार में पिछड़े वर्ग के 27 मंत्री हैं।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे तब उन्होंने चुनाव में पिछड़े वर्ग के सबसे ज्यादा उम्मीदवार देने की शुरूआत की थी जिसको मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा आगे बढ़ाए हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देकर महिला सशक्तिकरण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार ने हाल ही में विश्वकर्मा योजना की शुरूआत की जिसका सबसे ज्यादा लाभ ओबीसी वर्ग को मिलेगा। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राजस्थान में जाटों को और उत्तर प्रदेश में रामप्रकाश गुप्ता ने जाटों और पिछड़ी जातियों को अतिरिक्त लाभ दिया था।  सबसे बड़े प्रांत उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जाट बिरादरी के लोकप्रिय नेता भूपेंद्र चौधरी आरक्षण भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और वहीं पर केशव प्रसाद मौर्य उपमुख्यमंत्री हैं। हरियाणा में पिछड़े वर्ग सैनी जाति के नायब सिंह सैनी को भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। दिल्ली विधानसभा में भाजपा के विपक्षी नेता रामबीर सिंह विधूड़ी पिछड़ी गुर्जर बिरादरी के हैं। खास बात यह है कि भाजपा के प्रधानमंत्री राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री एवं अन्य जनप्रतिनिधियों ने अभी भी अपने फैसलों, कार्यों और सोच से समाज में  वैमनस्य, जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद और संप्रदायवाद फैलाने का काम न किया है।

भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस उद्घोष सबका साथ सबका विकास और सबका प्रयास का निष्ठा और समर्पण के साथ अनुसरण कर रहे हैं। पूरी भाजपा पार्टी एक सूत्र में बंधी और पिरोई लगती और दिखती है। यही काम उसकी सरकारें निपुणता के साथ कर रही हैं। जबकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और उनके बेटे तेजप्रताप सिंह यादव, सपा प्रमुख अखिलेश यादव, कांग्रेस नेता राहुल गांधी और उनके शीर्ष नेता समाज में वैमनस्य, जातिवाद, अलगाववाद और ऊंच-नीच की भावना पैदा करने में जी-जान से लगे हुए हैं। उन्हें गंभीरतापूर्वक सोच-विचार करना चाहिए कि इस रास्ते पर जिस पर गैर भाजपाई चल रहे हैं वह उन्हें सत्ता की मंजिल पर नहीं बल्कि सत्ता बहुत दूर ले जाएगा। उससे न उनका भला होगा और न समाज का, ना ही देश का जबकि भाजपा महात्मा गांधी, डा. राममनोहर लोहिया, पंड़ित दीनदयाल उपाध्याय, सामा प्रसाद मुखर्जी और अटल बिहारी वाजपेयी के दिखाए मार्ग पर चल रही है। नरेंद्र मोदी कुशलता के साथ देश का नेतृत्व कर रहे हैं। उनकी कल्याणकारी नीतियों और योजनाओं से सभी वर्ग और समुदाय फलफूल रहा है। सभी का विश्वास नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बना हुआ है।

दिल्ली के मौजूदा उप राज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग के चेयरमैन रहने के दौरान कुम्हारों को इलेक्ट्रॉनिक चाक निःशुल्क तरित कराए थे। कताई करने वालों की मजदूरी 100 रूपए से बढ़ाकर 300 रूपए की थी। खादी का उत्पादन और बिक्री दोनों बढ़े थे। विनय कुमार सक्सेना ने खादी को ऐसा ब्रांड बनाया कि उसके सामने मल्टीनेशनल कंपनियों और भारत के बड़े उद्यमियों के ब्रांड फीके पड़ गए। फैब इंडिया से बेहतर मांग खादी ग्रामोउद्योग के उत्पादों की हो गई। ऐसे में जो राजनैतिक दल यह सोचते हैं कि जातीय जनगणना अथवा पिछड़ी जातियों को आरक्षण में और वृद्धि करके उन्हें लुभाया, बहलाया और फुसलाया जा सकता किसी भी दृष्टि से ठीक नहीं है। सभी जानते हैं कि इन वर्गों से आए नेताओं ने अपना खुद का और परिवार का ही हित साधा है। उन लोगों की सत्ता के दौरान सबसे ज्यादा नुकसान अति पिछड़े वर्ग, दलितों और मुस्लिम अल्पसंख्यकों का हुआ है। इसलिए जनता परखे हुए नेतृत्व के साथ एकजुटता से खड़ी हुई है। इसी की छाया 2024 के लोकसभा चुनाव पर भी पड़ेगी। इसमें किसी को संदेह नहीं होना चाहिए।

लेखक: दिल्ली भारतीय जनता पार्टी पिछड़ा वर्ग मोर्चा के प्रभारी एवं यूनिवर्सल एजूकेशन ट्रस्ट के सचिव है।

समयलाइव डेस्क/इंद्रपाल सिंह
नई दिल्ली


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