वर्चुअल सुनवाई कुछ वकीलों के लिए अनुकूल है मगर अधिकांश इससे पीड़ित हैं : सुप्रीम कोर्ट

Last Updated 07 Sep 2021 12:45:37 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए ) से उस याचिका पर जवाब मांगा है, जिसमें यह मांग कि गई थी कि वर्चुअल कोर्ट की सुनवाई को संविधान में मौलिक अधिकार घोषित किया जाए।


सुप्रीम कोर्ट

न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और बी. एन. नागरत्न ने नोट किया कि वर्चुअल यानी आभासी या ऑनलाइन अदालतें कुछ वरिष्ठ अधिवक्ताओं के अनुकूल होती हैं, जो अपने कार्यालय में बैठकर कई मामलों में बहस करते हैं, लेकिन अधिकांश वकील इससे पीड़ित भी होते हैं।

इसने यह घोषणा करते हुए कि अदालत शारीरिक सुनवाई फिर से शुरू करेगी और आभासी सुनवाई के किसी भी अनुरोध पर विचार नहीं किया जाएगा, उत्तराखंड उच्च न्यायालय के 16 अगस्त के आदेश पर रोक लगाने से इनकार करते हुए बार निकायों से चार सप्ताह में जवाब मांगा है।

याचिका 5,000 वकीलों के एक निकाय ऑल इंडिया ज्यूरिस्ट्स एसोसिएशन और अन्य द्वारा दायर की गई है।

याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने हाइब्रिड सुनवाई जारी रखने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि हाइब्रिड विकल्प को खत्म नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि वादी वकील आने जाने के खर्च से बचेंगे और कार्बन फुटप्रिंट भी कम करेंगे। यह वादियों के लिए भी राहत होगी।

इस पर पीठ ने पूछा, फिर युवा वकील कैसे सीखेंगे? अदालत में आमने-सामने (आखों से) संपर्क होता है और जिस मामले में आप बहस करते हैं यह उसे और भी प्रभावी बनाता है। अदालत ने यह भी कहा कि ऑनलाइन और ऑफलाइन अदालतों में अंतर होता है।

लूथरा ने कहा कि हाइब्रिड विकल्प जारी रहना चाहिए। इस पर, पीठ ने कहा कि कुछ देशों ने निर्णय लेने में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसी (कृत्रिम बुद्धिमता) के उपयोग का सहारा लिया है। लेकिन हमने स्पष्ट रूप से कहा है कि इसका उपयोग भारतीय अदालतों में नहीं किया जा सकता है।

शीर्ष अदालत ने यह भी बताया कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष ने शनिवार को एक समारोह के दौरान कहा कि आभासी सुनवाई के कारण वकीलों को नुकसान हो रहा है।

हालांकि, वकील ने जोर देकर कहा कि हाइब्रिड सुनवाई जारी रहनी चाहिए, क्योंकि न्याय तक पहुंच एक मौलिक अधिकार है।

दलीलें सुनने के बाद, पीठ ने कहा, हम बीसीआई और एससीबीए को नोटिस जारी करेंगे। देखते हैं कि उनकी प्रतिक्रिया क्या है।

उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने के पहलू पर, पीठ ने कहा, हमने आदेश देखा है लेकिन हम इस पर रोक लगाने वाले नहीं हैं।

याचिका में कहा गया है, वर्चुअल कोर्ट को यह निर्देश देकर प्रतिबंधित कर दिया गया है कि इस तरह के किसी भी अनुरोध पर विचार नहीं किया जाएगा। प्रासंगिक रूप से, उक्त पत्र की प्रति देश के अन्य उच्च न्यायालयों द्वारा इस तरह के आदेश जारी करने की प्रत्याशा के साथ सभी उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरलों को भेज दी गई है। इसके साथ ही दलील दी गई है कि उच्च न्यायालय का आदेश आभासी अदालतों के विचार के लिए एक मौत की घंटी है, जो देश में एक सुलभ, किफायती न्याय है और जिसे शीर्ष अदालत की ई-समिति द्वारा प्रचारित किया जा रहा है।
 

आईएएनएस
नई दिल्ली


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