उत्तरप्रदेश, एक और ‘रुचिका', कई ‘राठौर'
Last Updated 05 Feb 2010 01:46:24 PM IST
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समय एक्सक्ल्यूसिव: दस साल से इंसाफ की लड़ाई लड़ रही मोनिका
पंकज कुमार/खालिद वसीम/एसएनबी-स्पेशल
नयी दिल्ली। जरा सोचिए, ऊंची रसूखवाले ताकतवर और वर्दीवालों की दरिंदगी की शिकार रूचिका ने बदतर जिंदगी से छुटकारे के लिए अगर खुदकुशी नहीं की होती तो उसे अब तक क्या-क्या भुगतना पड़ा होता। नहीं सोच सकते तो इस मोनिका के हाल से जान लीजिए।
गाजियाबाद की इस लड़की के साथ भी रूचिका जैसे ही बेइंतहां जुल्म हुए। रूचिका की तरह मोनिका के भाई को बहन की सजा में लपेट दिया गया। झूठे मामले दर्ज किए गए। निर्दोष भाई-बहन की बर्बरता से पिटाई हु़ई। हडि्डयां तोड़ दी गईं और दोनों को जेल में ठूंस दिया गया।
बहन मायावती के राज वाले उत्तर प्रदेश में एक भाई-बहन के साथ जुल्म और ज्यादतियों का सिलसिला चलता रहा और पूरा सिस्टम मुंह बाए देखता रहा। रूचिका की ही तरह मोनिका की जिंदगी को नरक बनाने वाला एक ऊंचे रसूख का आदमी गाजियाबाद में मौजूद एक बड़े मेडिकल कॉलेज का मालिक है और इस शख्स की मदद करने वाला है यूपी पुलिस का एक इंस्पेक्टर। मोनिका का कसूर सिर्फ इतना था कि वह एक एनआरआई थी और डॉक्टर बनने का सपना लेकर इस मेडिकल कालेज में आ गई थी। एनआरआई कोटे से दाखिला लेने के बाद जो कुछ उसने इस मेडिकल कालेज में झेला, उससे बड़े-बड़े टूट जाते है, लेकिन दाद देनी पड़ेगी मोनिका के हौसले की। उसने जान नहीं दी, लड़ने का रास्ता चुना।
पिछले दस साल से वह इंसाफ के लिए लड़ रही है। मोनिका ने अपनी पूरी दास्तान का समय चैनल पर खुलासा किया। मोनिका ने बताया कि एनआरआई कोटे से दाखिला लेने के बाद संतोष मेडिकल कालेज के चेयरमैन पी.महालिंगम ने उसके पिता से मेलजोल बढ़ा लिया। पिता को अमीर एनआरआई मानकर महालिंगम ने उनसे 25 लाख रूपए कर्ज के नाम पर झटक लिए। यही कर्ज मोनिका के लिए जी का जंजाल बन गया। कर्ज वापसी की जब बात आई तब महालिंगम ने मोनिका पर हर किस्म का दबाव डालना शुरू कर दिया। पहले उसे एक परीक्षा में फेल कर दिया और बाद में दो बार बैठने ही नहीं दिया।
मोनिका इलाहाबाद हाईकोर्ट चली गई जहां उसकी कॉपी मंगाकर इलाहाबाद मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर से अदालत में ही जंचवाई गई। यहां मोनिका पास पाई गई। इससे झल्लाए महालिंगम ने उसे अगली बार प्रैक्टिकल में ही फेल करवा दिया। मोनिका फिर कोर्ट गई। इस बार उसका एग्जाम अदालत के आदेश पर आगरा मेडिकल कालेज में हुआ। इस बार 70 फीसदी अंकों के साथ मोनिका ने बाजी मार ली। दबाव में आकर महालिंगम ने कर्ज वापसी के लिए पांच लाख मू्ल्य वाले पांच चेक दिए। इनमें भी एक बाउंस कर गया। मोनिका के पिता ने इस बाबत गाजियाबाद पुलिस से शिकायत की। इससे चिढ़कर महालिंगम ने मोनिका को एमबीबीएस की डिग्री ही नहीं मिलने दी। फिर हाइकोर्ट बीच में आया और मोनिका को सर्टिफिकेट दिलवाया। इस बार भी संतोष मेडिकल कालेज प्रबंधन खेल कर गया। एक सर्टिफिकेट तो दिया लेकिन तीन जरूरी सर्टिफिकेट दबा लिए। महालिंगम को इतने पर भी चैन नहीं पड़ा। इस बार खाकी वर्दी का सहारा लिया गया और शुरू हो गया मोनिका पर यूपी पुलिस का कहर। जरिया बने विजयनगर थाने के इंचार्ज अनिल समानिया। यह महज संयोग नहीं था कि 2004 में समानिया ने दो बार मोनिका और उसके भाई मनीष दो बार पीटा। मोनिका और उसके भाई पर जुल्म ढहाने की एवज में समानिया को पुरस्कार भी मिला। समानिया की बेटी संतोष मेडिकल कालेज में मुफ्त दाखिला पा गई।
पुलिस जुल्म के खिलाफ मोनिका फिर हाईकोर्ट चली गई। अक्टूबर 2005 में अदालत के आदेश पर महालिंगम और समानिया के खिलाफ एफआईआर करने का आदेश हुआ। लेकिन इसके दो दिन बाद ही दोनों भाई-बहन के खिलाफ भी कालेज के गार्ड को मारने की झूठी एफआईआर दर्ज हो गई। महालिंगम और समानिया तो अदालती एफआईआर के बावजूद बाहर घूम रहे थे। भाई-बहन तुरंत डासना जेल में ठूंस दिए गए। ढाई हफ्तों तक जेल में दोनों पर अमानवीय यंत्रणाएं ढाई गई। एक बार फिर मोनिका अपने खिलाफ दर्ज झूठे मुकदमों को खारिज करने की अपील करने 2006 में सुप्रीम कोर्ट पहुंची। दो साल बाद जाकर भाई-बहन के खिलाफ केस खारिज हुआ। इसके बाद मई-2009 में मोनिका ने सुप्रीम कोर्ट में रिट डालकर न्याय की मांग की। वह दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रही थी। लेकिन 28 मई 2009 को मोनिका अदालती आदेश लेकर नोएडा के सेक्टर-39 कोतवाली पहुंची। जहां उसका सामना फिर इंस्पेक्टर अनिल समानिया से हुआ। अदालती आदेश को फेंककर समानिया ने दोनों भाई-बहन को पकड़ा और फिर शुरू हो गई उनकी बर्बर पिटाई। इस पिटाई ने मोनिका का बायां हाथ टूट गया। हद तो तब हुई जब खाकी वर्दी के खौफ से नोएडा के किसी अस्पताल ने दोनों की एमएलसी (पीड़ित को चोट और घाव से हुए डाक्टरी जांच का दस्तावेज) नहीं की। मोनिका को इसके लिए दिल्ली आना पड़ा। जहां एलएनजेपी अस्पताल में एमएलसी हुई। वहीं उसकी जांच हुई और एक्सरे में पंजे की हड्डी टूटी पाई गई। अस्पताल की यह रिपोर्ट मोनिका के लिए अदालत में सबसे बड़ा सहारा थी। लेकिन दो महीने बाद अचानक सीन में एलएनजेपी का एक्सरे टैक्नीशियन वीरेन्द्र सिंह आया। वीरेन्द्र मोनिका के घर आया और उससे उसकी एक्सरे मांगी।
वीरेन्द्र का कहना था कि अस्पताल से उसकी एक्सरे रिपोर्ट गुम हो गई है। इसी सिलसिले में उसे मोनिका के एक्सरे की जरूरत है। मोनिका को संदेह हुआ और उसने रिपोर्ट नहीं दी। वीरेन्द्र बार-बार आता रहा और रिपोर्ट मांगता रहा। सतर्क मोनिका ने इस बार वीरेन्द्र की पूरी वीडियो रिकार्डिग करवा ली। बाद में खेल का पता चला। वीरेन्द्र का पिता भी संतोष मेडिकल कालेज में काम करता था। उसकी बेटी भी इसी मेडिकल कालेज में पढ़ती थी। महालिंगम ने अपनी साजिश में इसका भरपूर फायदा उठाया।
जाहिर है कि वह वीरेन्द्र के माध्यम से एक्सरे रिपोर्ट गायब करवाकर मोनिका का केस कमजोर करने की साजिश थी। दस साल से रसूख वाले ताकतवर लोगों और पुलिस की सांठगांठ का जुल्म झेल रही मोनिका आज लड़ते लड़ते जिंदा लाश बनकर रह गई है। लेकिन उसका जमीर और उसके भीतर का सच उसे हर बार अदालत ले गया जहां उसे न्याय मिला।
न्याय की एक ऐसी ही और शायद आखिरी सुनवाई कल सुप्रीम कोर्ट में होनी है। मोनिका को भरोसा है कि देश की सबसे बड़ी अदालत में इस बार दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। उसे इंसाफ मिलेगा और जुल्म ढहाने वालों को उनकी सजा। इस संबंध में अनिल समानिया और महालिंगम से बात करने के हमारे तमाम प्रयास सफल नहीं हो पाए।
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