Ramlala Pran Pratishtha: प्रभु राम का काज स्वयं होता गया, हम तो माध्यम बने, बोले सत्यनारायण

Last Updated 21 Jan 2024 07:28:24 AM IST

Ramlala Pran Pratishtha: ढांचा विध्वंस के तुरंत बाद रामलला के अस्थाई मंदिर और मंदिर आंदोलन के दौरान दीवारों पर पेटिंग और नारे लिखने वाले बाबा सत्यनारायण मौर्य पूरी तरह से राम भक्ति में लीन हो चुके हैं।


प्रभु राम का काज स्वयं होता गया, हम तो माध्यम बने, बोले सत्यनारायण

वह कहते हैं कि गुंबद गिराने की कोई योजना नहीं थी, लेकिन जोशीले कार सेवकों ने नेताओं की इच्छा विरु द्ध गुंबद गिराया। उसके बाद किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए। कोई मूर्ति रख रहा था तो कोई उसे हटा रहा था। मेरे हाथ में गुलाबी रंग का कपड़े का थान था। मैंने उसे ही लपेटकर अस्थाई टेंट बना दिया था। वह कहते हैं कि यह सब राम जी की इच्छा से हुआ और अब मंदिर का निर्माण देखकर उनका जीवन सफल हो गया है।

बाबा सत्यनारायण ने ‘राष्ट्रीय सहारा’ से बातचीत में कहा कि भगवान राम ने उन्हें राम मंदिर के कार्य के लिए ही धरती पर भेजा है। आज उनका जीवन सफल हो गया है। वह अपने जीवन काल में ही भव्य राम मंदिर का निर्माण देख रहे हैं।

मध्य प्रदेश के सत्यनारायण मौर्य 1985 में जब राम मंदिर आंदोलन से जुड़े तो उन्होंने बजरंग दल की बैठक में सबसे पहले ‘रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’ यह नारा बहुत पॉपुलर हुआ। उसके बाद वह अयोध्या आ गए और जहां-जहां आंदोलन होता था, वहां दीवारों पर पेंटिंग करते और नारे लिखते। रचनात्मकता और दिल छूने वाले पेंटिंग और नारे लिखने के कारण वह तत्कालीन वि हिंदू परिषद के अध्यक्ष अशोक सिंगल और लालकृष्ण आडवाणी के करीब आ गए। इस दौरान उनकी नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात हुई और हुनर की वजह से वे उनके भी करीबी बन गए।

6 दिसम्बर, 1992 को कार सेवा के दिन वह अपने साथ पेंट का सामान और गुलाबी रंग का थान लेकर मंच की तरफ लालकृष्ण आडवाणी और अशोक सिंघल के साथ बैठे थे। थान वह उज्जैन से लेकर आए थे। कार सेवा के बाद उन्हें पेंटिंग का काम करना था, लेकिन कुछ कार सेवकों ने माहौल ही बदल दिया। उन्होंने सबसे पहले माइक की तारें काट दी, ताकि नेताओं की आवाज कार सेवकों तक न पहुंचे और गुंबद पर चढ़ गए। देखते ही देखते गुंबद जमींदोज हो गई। कार सेवकों ने मलबे के ऊपर चारदीवारी बनाकर अस्थायी मंदिर बना दिया। मेरे हाथ में कपड़े का थान था तो मैंने उसे दीवार के चारों ओर लपेटकर अस्थायी टेंट बना दिया। यह टेंट राम मंदिर के अस्थायी मंदिर का सूचक बन गया। बाबा सत्यनारायण मौर्य ने ‘राष्ट्रीय सहारा’ से बात करते हुए कहा कि राम मंदिर तो छह दिसम्बर को ही बन गया था। भव्य मंदिर बनना बाकी रह गया था, जो अब वह भी पूरा हो गया।

उस दौरान जो कुछ हुआ, वह प्रभु की इच्छा से होता चला गया। वहां जो कुछ भी हुआ, वह अप्रत्याशित था। उसकी किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती, अशोक सिंघल जैसे सभी बड़े नेता कार सेवकों को गुंबद से नीचे उतरने को कह रहे थे, लेकिन वे किसी के नहीं सुन रहे थे। कार सेवकों ने गुंबद को ढहा कर ही दम लिया।

मंदिर निर्माण की प्रक्रिया पूरा होने पर मौर्य खुशी जताते हैं और कहते हैं कि हिंदू समाज ने 500 वर्षो तक इस घड़ी का इंतजार किया। आज वह इंतजार खत्म हो गया है। 22 जनवरी को आराध्य प्रभु श्रीराम के मंदिर नवनिर्मित मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। यह हिंदुओं की एकता और स्वाभिमान का प्रतीक भी है।

अपनी पेंटिंग और वॉल राइटिंग की कला के बारे में वह कहते हैं कि प्रभु राम ने ही यह हुनर दिया था और बदले में मुझे भक्ति दे दी। छह दिसम्बर के बाद मैंने पेंटिंग के स्टेज शो किए और लोगों के सामने ही अनेक देवी-देवताओं की तस्वीरें मिनटों में बनाने की कला हासिल कर ली थी। मुझे देश-विदेश से बुलावा आने लगे, लेकिन अब मैं वापस राम भक्ति में लीन हो गया हूं।

समयलाइव डेस्क
नई दिल्ली


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