अगर पवन सिंह चुनाव लड़ गए तो उपेंद्र कुशवाहा की राजनीति ख़तम ?
पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा इस बार फंसते हुए नजर आ रहे हैं।
पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा, पवन सिंह |
एनडीए की तरफ से उन्हें विहार की काराकाट लोकसभा सीट से टिकट दिया गया है। कोईरी और कुर्मी जाति बाहुल्य लोकसभा सीट से उपेंद्र कुशवाहा दूसरी बार भाग्य आजमा रहे हैं। जबकि महागठबंधन की तरफ से यह सीट सीपीआईएमएल के खाते में आई है। सीपीआईएमएल ने राजा राम सिंह कुशवाहा को अपना उम्मीदवार बनाया है। जिन जाति के वोटरों को लेकर उपेंद्र कुशवाहा अपनी जीत पक्की मान कर चल रहे थे, उसी जाति के एक अन्य प्रत्याशी के आ जाने से इनकी परेशानी बढ़ सकती है। उधर जब से भोजपुरी स्टार और सिंगर पवन सिंह ने काराकाट से चुनाव लड़ने का एलान किया है, तब से उपेंद्र कुशवाहा की चिन्ताएं और भी बढ़ गईं होंगी।
हालांकि काराकाट में चुनाव एक जून को होना है। अभी चुनाव में बहुत वक्त है, लेकिन पवन सिंह अगर चुनाव मैदान में आ जाते हैं तो क्या होगा वहां का समीकरण। उपेंद्र कुशवाहा के साथ कौन सा खेला होने वाला है ! आगे बढ़ने से पहले यहाँ बता दें कि काराकाट लोकसभा सीट पर अब तक सिर्फ कुशवाहा बिरादरी के उम्मीदवार ही जीतते रहे हैं। यहां पहला चुनाव 2009 में हुआ था,जिसमें जदयू प्रत्याशी महाबली कुशवाहा की जीत हुई थी। 2014 में एनडीए की तरफ से राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के प्रत्याशी उपेंद्र कुशवाहा चुनाव जीते थे। जबकि 2019 में एक बार फिर जदयू से महाबली कुशवाहा चुनाव जीते थे। इस बार एनडीए की तरफ से उपेंद्र कुशवाहा चुनाव मैदान में हैं। जबकि राजा राम सिंह कुशवाहा सीपीआईएमएल की तरफ से मजबूती से डटे हुए हैं।
अब चर्चा करते हैं उस बिंदु पर जिसके लिए हमने इस वीडियो को बनाया है। यानी पवन सिंह ने आखिरकार काराकाट से ही चुनाव लड़ने का एलान क्यों किया है। एक बात हमारे दर्शकों को पता ही होगी कि पवन सिंह को बीजेपी ने वेस्ट बंगाल की आसनसोल सीट से टिकट दिया था, लेकिन पवन सिंह ने वहां से चुनाव लड़ने से मना कर दिया था। उसी सीट से बिहारी बाबू यानी शत्रुध्न सिन्हा टीएमसी की तरफ से चुनाव मैदान में हैं। पवन सिंह ने बिहार की आरा लोकसभा सीट से टिकट माँगा था, लेकिन बीजेपी ने उनको वहां से टिकट ना देकर आरा से केंद्रीय मंत्री आर के सिंह को टिकट दे दिया। यहां बता दें कि पवन सिंह ने बहुत पहले एक्स पर एक पोस्ट डाल कर यह कह दिया था कि उन्होंने धरती माता से वादा किया है कि इस बार चुनाव जरूर लड़ेंगे। ऐसे में यह तय माना जा रहा है कि पवन सिंह शायद अब पीछे नहीं हटने वाले हैं। खैर अब सवाल यह है कि अगर पवन सिंह काराकाट से निर्दलीय चुनाव लड़ जाते हैं तो क्या हो सकता है।
आगे बढ़ने से पहले यहां बता दें कि यहां कुर्मी और कोईरी वोटरों की संख्या लगभग ढाई लाख है, जबकि राजपूत बिरादरी के वोटर 2 लाख के आस पास हैं। ब्राह्मण लगभग 75 हजार जबकि भूमिहार 50 हजार। यानी एनडीए के उम्मीदवार उपेंद्र कुशवाहा और सीपीआईएमएल के उम्मीदवार राजा राम सिंह कुशवाहा दोनों को ही कोइरी जाति की वोटें मिलेंगीं। नीतिश कुमार की वजह से संभव है कि कुर्मी वोटर उपेंद्र कुशवाहा के साथ चले जाएँ क्योंकि नीतीश कुमार भी कुर्मी जाति से हैं। ऐसे में जो स्वर्ण वोटर हैं, वह कहां जाएंगे। सबसे बड़ा प्रश्न यहां यही है। तो इसका उत्तर है पवन सिंह। अगर पवन सिंह को स्वर्ण वोटरों का साथ मिल जाता है तो फिर उन्हें जीतने से शायद ही कोई रोक पाए। पवन सिंह का काराकाट से चुनाव लड़ने के पीछे एक और भी बड़ा कारण है। चूँकि पवन सिंह ने भाजपा की सदस्यता ले रखी है, ऐसे में अगर वो यहां से चुनाव लड़ते भी हैं तो बीजेपी का विरोध नहीं माना जाएगा क्यों यहाँ प्रत्याशी एनडीए का है ना कि बीजेपी का।
उधर उनके सम्बन्ध लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार से भी अच्छे हैं, लिहाजा उनके चुनाव लड़ने से लालू परिवार परिवार भी नाराज नहीं होगा क्यों कि यहां से राजद का उम्म्मीद्वार नहीं बल्कि महागठबंधन का प्रत्याशी चुनाव मैदान में है। अब सबसे अहम् बात यह है कि क्या उपेंद्र कुशवाहा की राजनीति अब ख़तम होने जा रही है। क्या वो यहां इस बार फंस गए हैं। क्या इस चुनाव के बाद उपेंद्र कुशवाहा आने वाले समय में चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। बीजेपी को अच्छी तरह से पता है कि अगर पवन सिंह चुनाव जीत जाते हैं तो वो निश्चित तौर पर भाजपा के समर्थन में आ जायेंगे। ऐसे में आशंका यही है कि अंदर खाने कहीं उपेंद्र कुशवाहा को ठिकाने लगाने की तयारी तो नहीं कर ली गई है। क्योंकि उपेंद्र कुशवाहा पहले कई बार बीजीपी और नीतीश कुमार का विरोध कर चुके हैं। अब काराकाट से उपेंद्र कुशवाहा जीते या पवन सिंह, बीजेपी का कोई नुकसान नहीं होने वाला है।
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