उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के बयान पर सियासी घमासान, कांग्रेस और DMK ने बोला हमला
राष्ट्रपति के लिए राज्य विधेयकों को मंजूरी देने की समयसीमा तय करने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश को लेकर न्यायपालिका पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की ओर से की गई टिप्पणी को लेकर कांग्रेस और डीएमके ने हमला बोला।
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राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने कहा कि यह ‘‘असंवैधानिक’’ है और राज्यसभा के किसी सभापति को कभी भी इस तरह का ‘‘राजनीतिक बयान’’ देते नहीं देखा गया था।
सिब्बल ने यह भी कहा कि लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा सभापति विपक्ष और सत्तारूढ दल के बीच समान दूरी बनाए रखते हैं और वे ‘‘पार्टी प्रवक्ता’’ नहीं हो सकते।
उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘‘हर कोई जानता है कि लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी बीच में होती है। वह सदन के अध्यक्ष होते हैं, किसी एक पार्टी के अध्यक्ष नहीं। वे भी वोट नहीं करते हैं, वे केवल तब वोट करते हैं जब बराबरी होती है। उच्च सदन के साथ भी यही बात है। आप विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच समान दूरी पर हैं।’’
उधर कांग्रेस महासचिव रणदीप सुरजेवाला ने न्यायपालिका को लेकर उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा की गई टिप्पणी से शुक्रवार को असहमति जताई और कहा कि न्यायिक स्वतंत्रता सत्ता में बैठे लोगों के मनमाने कार्यों और निर्णयों के खिलाफ लोगों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए वास्तव में एक ‘परमाणु मिसाइल’ है।
उन्होंने यह भी कहा कि भारत के लोकतंत्र में कोई संवैधानिक पद नहीं, बल्कि संविधान सर्वोच्च है।
उपराष्ट्रपति की टिप्पणी अनैतिक
द्रमुक के उप महासचिव तिरुचि शिवा ने कहा, ‘‘संविधान के अनुसार शक्तियों के बंटवारे के तहत, कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के पास अलग-अलग शक्तियां हैं। जब तीनों अपने-अपने क्षेत्रों में काम करते हैं तो किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि संविधान सर्वोच्च है।
उपराष्ट्रपति की उच्चतम न्यायालय के इस फैसले पर टिप्पणियां अनैतिक हैं।
जानिए आखिर क्या कहा सुप्रीम कोर्ट को लेकर उपराष्ट्रपति ने
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, “हम ऐसी स्थिति नहीं ला सकते, जहां राष्ट्रपति को निर्देश दिया जाए। संविधान के तहत सुप्रीम कोर्ट का अधिकार केवल अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या करना है।'' उन्होंने कहा कि जब यह अनुच्छेद बनाया गया था, तब सुप्रीम कोर्ट में केवल आठ जज थे और अब 30 से अधिक हैं। हालांकि, आज भी पांच जजों की पीठ ही संविधान की व्याख्या करती है। उपराष्ट्रपति ने पूछा कि क्या यह न्यायसंगत है।
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा, “मैंने कभी नहीं सोचा था कि राष्ट्रपति को कोर्ट द्वारा निर्देशित किया जाएगा। राष्ट्रपति भारत की सेना की सर्वोच्च कमांडर हैं और केवल वही संविधान की रक्षा, संरक्षण और सुरक्षा की शपथ लेते हैं। फिर उन्हें एक निश्चित समय में निर्णय लेने का आदेश कैसे दिया जा सकता है।”
उन्होंने कहा, “हाल ही में जजों ने राष्ट्रपति को लगभग आदेश दे दिया और उसे कानून की तरह माना गया, जबकि वे संविधान की ताकत को भूल गए। अनुच्छेद 142 अब लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ एक ‘न्यूक्लियर मिसाइल’ बन गया है, जो चौबीसों घंटे न्यायपालिका के पास उपलब्ध है।”
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