Defamation case: मानहानि मामले में नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता और कार्यकर्ता मेधा पाटकर दोषी करार, जानिए क्या है मामला

Last Updated 25 May 2024 07:03:38 AM IST

Defamation case: दिल्ली की एक अदालत ने 20 साल पुराने एक आपराधिक अवमानना मामले में नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता और कार्यकर्ता मेधा पाटकर को दोषी ठहराया है।


नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता और कार्यकर्ता मेधा पाटकर

साकेत कोर्ट के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने पाटकर को आईपीसी की धारा 500 के तहत दोषी ठहराया है और सजा के बिंदु पर सुनवाई 30 मई के लिए स्थगित कर दी है। पाटकर के खिलाफ दिल्ली के वर्तमान उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने वर्ष 2001 में आपराधिक मानहानि की शिकायत की थी। उस समय वे अहमदाबाद स्थित एनजीओ नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज के प्रमुख थे।

क्या है मामला

सक्सेना ने पाटकर के खिलाफ 25 नवंबर, 2000 को अहमदाबाद की एक अदालत में मानहानि की शिकायत किया था और उसमें पाटकर की एक प्रेस नोट का हवाला दिया था। प्रेस नोट ‘देशभक्त का असली चेहरा’ शीषर्क से था और उसमें कहा गया था कि हवाला लेन-देन से दुखी वीके सक्सेना खुद मालेगांव आए। एनबीए की तारीफ की और 40 हजार रुपए का चेक दिया। लेकिन चेक भुनाया नहीं जा सका और बाउंस हो गया। जांच करने पर बैंक ने बताया कि खाता मौजूद ही नहीं है। पाटकर ने यह भी कहा था कि सक्सेना कायर है, देशभक्त नहीं। अदालत ने इस मामले में वर्ष 2001 में संज्ञान ले लिया था और पाटकर को नोटिस जारी किया था। बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश से इस मुकदमे को दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया था।

पाटकर ने खुद को बताया निर्दोष

पाटकर ने खुद को निर्दोष बताया और आरोप साबित करने की बात कही थी। मजिस्ट्रेट ने अपने फैसले में कहा है कि पाटकर की हरकतें जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण थीं, जिसका उद्देश्य सक्सेना की अच्छी छवि को धूमिल करना था। इससे उनकी छवि और साख को काफी नुकसान पहुंचा है। उनके लगाए गए आरोप भी न केवल मानहानिकारक हैं, बल्कि नकारात्मक धारणाओं को भड़काने के लिए भी गढ़े हुए हैं।

इसके अलावा यह आरोप कि शिकायतकर्ता गुजरात के लोगों और उनके संसाधनों को विदेशी हितों के लिए गिरवी रख रहा है, यह उनकी ईमानदारी और सार्वजनिक सेवा पर सीधा हमला है। शिकायतकर्ता को ‘कायर व देशभक्त नहीं’ के रूप में लेबल करने का पाटकर का बयान उनके व्यक्तिगत चरित्र और राष्ट्र के प्रति वफादारी पर सीधा हमला था। इस तरह के आरोप सार्वजनिक क्षेत्र में विशेष रूप से गंभीर हैं, जहां देशभक्ति को बहुत महत्व दिया जाता है। किसी के साहस और देश के प्रति निष्ठा पर सवाल उठाने से उनकी सार्वजनिक छवि और सामाजिक प्रतिष्ठा को अपूरणीय क्षति हो सकती है। ये शब्द न केवल भड़काऊ थे, बल्कि सार्वजनिक जीवन में उन्हें नीचा दिखाना व उनके सम्मान को कम करने के इरादे से था।

समय लाइव डेस्क
नई दिल्ली


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