सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका, बूथवार डाटा देना व्यावहारिक नहीं

Last Updated 25 May 2024 08:39:59 AM IST

उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) की वह याचिका खारिज कर दी, जिसमें निर्वाचन आयोग को मतदान केंद्र-वार मतदान प्रतिशत के आंकड़े अपनी वेबसाइट पर अपलोड करने के निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।


उच्चतम न्यायालय

न्यायालय ने कहा कि चुनाव के दौरान ‘व्यावहारिक दृष्टिकोण’ अपनाया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि वह इस वक्त ऐसा कोई निर्देश जारी नहीं कर सकती, क्योंकि चुनाव के पांच चरण संपन्न हो चुके हैं और दो चरण बाकी हैं तथा ऐसे में निर्वाचन आयोग के लिए लोगों को काम पर लगाना मुश्किल होगा।

शीर्ष अदालत ने गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ (एडीआर) की ओर से दाखिल वादकालीन याचिका (आईए) यह कहते हुए स्थगित कर दी कि इसे चुनाव बाद नियमित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाएगा।

पीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि अर्जी में किए गए अनुरोध इसी मुद्दे पर 2019 से लंबित मुख्य याचिका के समान हैं।  पीठ ने कहा, ‘इसे (आईए) लंबित रिट याचिका के साथ लिया जाना चाहिए, क्योंकि चुनावों के दौरान व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना होगा।’ साथ ही पीठ ने कहा कि निर्वाचन आयोग के लिए अपनी वेबसाइट पर मतदान प्रतिशत के आंकड़ें अपलोड करने के लिए लोगों को काम पर लगाना मुश्किल होगा।  

पीठ ने कहा, ‘आईए में कोई भी राहत देना मुख्य याचिका में राहत देने के समान होगा, जो पहले से ही लंबित है।’ पीठ ने कहा कि हकीकत को समझे जाने की जरूरत है, न कि बीच में प्रक्रिया में बदलाव करके निर्वाचन आयोग पर बोझ डालने की।

उच्चतम न्यायालय ने 17 मई को एनजीओ की याचिका पर निर्वाचन आयोग से एक हफ्ते के अंदर जवाब मांगा था, जिसमें लोकसभा चुनाव के प्रत्येक चरण का मतदान संपन्न होने के 48 घंटे के अंदर मतदान केंद्र-वार मत प्रतिशत के आंकड़े आयोग की वेबसाइट पर अपलोड करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। 

एडीआर ने 2019 की अपनी जनहित याचिका में एक वादकालीन याचिका दायर की। मूल जनहित याचिका में एडीआर ने निर्वाचन आयोग को यह निर्देश देने का न्यायालय से अनुरोध किया है कि सभी मतदान केंद्रों के ‘फॉर्म 17 सी भाग-प्रथम (रिकॉर्ड किए गए मत) की स्कैन की गई सुपाठ्य प्रतियां’ मतदान के तुरंत बाद अपलोड की जाएं। निर्वाचन आयोग ने हलफनामा दाखिल कर एनजीओ की मांग का विरोध किया और कहा कि इससे चुनावी माहौल ‘खराब’ होगा और आम चुनावों के बीच चुनावी तंत्र में ‘अराजकता’ पैदा होगी।

ईवीएम ‘लॉग’ दो-तीन साल तक सुरक्षित रखने का आग्रह

राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय से आग्रह किया कि निर्वाचन आयोग को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) के ‘लॉग’ को कम से कम दो से तीन साल तक सुरक्षित रखने और मतगणना से पहले प्रत्येक चरण के मतदान के रिकॉर्ड की घोषणा करने का निर्देश दिया जाए ताकि कोई भी सदस्य ‘गैरकानूनी ढंग से’ न चुना जा सके।

सिब्बल ने यह भी कहा कि यदि चुनाव आयोग फॉर्म 17सी अपलोड नहीं कर सकता है, तो राज्य निर्वाचन अधिकारी डेटा अपलोड कर सकता है। फॉर्म 17सी में हर बूथ पर कुल मतदान का आंकड़ा दर्ज होता है। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने संवाददाताओं से कहा, ‘हर मशीन में एक ऑपरेटिंग सिस्टम होता है जो इलेक्ट्रॉनिक वोंिटग मशीन (ईवीएम) में भी है। ईवीएम के इस लॉग को सुरक्षित रखा जाना चाहिए। यह हमें बताएगा कि मतदान किस समय समाप्त हुआ और कितने वोट अवैध थे। यह हमें बताएगा कि किस समय मतदान हुआ, वोट डाले गए। इसलिए, यह सबूत है जिसे सुरक्षित रखा जाना चाहिए।’

सिब्ब्ल का कहना था कि निर्वाचन आयोग आयोग आम तौर पर इस डेटा को 30 दिनों तक रखता है, लेकिन यह ‘महत्वपूर्ण’ डेटा है जिसे लंबे समय के लिए चुनाव आयोग द्वारा संरक्षित किया जाना चाहिए। वरिष्ठ अधिवक्ता ने निर्वाचन आयोग से आग्रह किया कि चुनाव आयोग को इन लॉग को सुरक्षित रखने का निर्देश दिया जाए और मतगणना से पहले सभी चरणों का रिकॉर्ड सार्वजनिक किया जाए ताकि कोई भी सांसद ‘गैरकानूनी तरीके से’ न चुना जाए।

समय लाइव डेस्क
नई दिल्ली


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