BRI की दसवीं वर्षगांठ पर भी चीन को भारत का नहीं मिला समर्थन, आधे दर्जन से ज्यादा देश कर्ज में डूबे
चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) परियोजना की दशवीं वर्षगांठ है। जी 20 सम्मेलन के दौरान भारत ने एक बार फिर से इसका समर्थन ना करने की घोषणा की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस महत्वाकांक्षी परियोजना को लेकर बीजिंग पर निशाना साधते हुए कहा कि संपर्क परियोजनाएं महत्वपूर्ण हैं, लेकिन अन्य देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना भी जरूरी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ( File Photo) |
शंघाई सहयोग संगठन( SCO) का भारत पहला देश है, जिसने बीआरआई का समर्थन नहीं किया है। हालांकि पीएम मोदी ने बहुत पहले यह भी कहा था कि किसी भी क्षेत्र की प्रगति के लिए मजबूत संपर्क महत्वपूर्ण हैं। बेहतर कनेक्टिविटी न केवल आपसी व्यापार को बढ़ाती हैं बल्कि आपसी विश्वास को भी बढ़ावा देती हैं। लेकिन इन प्रयासों में एससीओ चार्टर के बुनियादी सिद्धांतों को बनाए रखना जरूरी है। आज सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस परियोजना में शामिल आधे दर्जन से अधिक देश जिन पर चीन का कर्जा है, वो कर्जे से मुक्त कब होंगे ?पड़ोसी श्रीलंका में चीन प्रायोजित बुनियादी ढांचे का विकास किया। बुनियादी ढांचा परियोजनाओं ने श्रीलंका को चीन के लगभग 8 बिलियन डॉलर के कर्ज से दबा दिया। श्रीलंका अपने बकाये का भुगतान नहीं कर सकता, इसलिए उसने हंबनटोटा बंदरगाह परियोजना के लिए ऋण-फॉर-इक्विटी स्वैप पर बातचीत की है। सिर्फ श्रीलंका ही नहीं चीन ने 147 से ज्यादा देशों के साथ अपने वित्तीय और राजनीतिक प्रभाव का फायदा उठाने की पहल में लगभग एक ट्रिलियन डॉलर का निवेश किया है। कम आय वाले देशों की आर्थिक स्थिति गंभीर है और इस परियोजना के बाद बदतर होने के कगार पर हैं। कम आय वाले देशों पर 2022 में चीन के ऋण का 37% बकाया है, जबकि बाकी दुनिया के लिए यही ऋण 24% है। इस परीयोजना में शामिल 42 देशों पर चीन का कर्जा हो चुका है।
एडडेटा और बीआरआई के आंकड़ों के अनुसार, सड़क-रेल-बंदरगाह-भूमि बुनियादी ढांचे के वित्तपोषण के लिए चीनी वैश्विक परियोजनाएं इसमें शामिल सभी देशों के लिए ऋण का एक प्रमुख स्रोत रही हैं। इसमें पाकिस्तान 77.3 अरब डॉलर के ऋण के साथ सबसे आगे है। इसके बाद अंगोला (36.3 अरब डॉलर), इथियोपिया (7.9 अरब डॉलर), केन्या (7.4 अरब डॉलर) और श्रीलंका (7 अरब डॉलर) का कर्जदार है। मालदीव के वित्त मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2022 की पहली तिमाही के अंत तक मालदीव का कर्ज बढ़कर 6.39 अरब डॉलर हो गया। यह मालदीव के सकल घरेलू उत्पाद का 113% है। कर्ज की वजह चीन की परियोजना है। चीन ने मालदीव में सिनामाले पुल और एक नए हवाई अड्डे जैसी बुनियादी परियोजनाओं को वित्त पोषित किया गया था। बांग्लादेश पर बीजिंग के कुल विदेशी ऋण का 6% बकाया है, यानी लगभग 4 बिलियन डॉलर का कर्जा है। ढाका अब आईएमएफ से 4.5 अरब डॉलर के पैकेज की मांग कर रहा है। जिबूती और अंगोला पर पर भी बड़ा बोझ है क्योंकि ऋण सकल राष्ट्रीय आय (जीएनआई) के 40% से ज्यादा है. लाओस और मालदीव दोनों पर जीएनआई ( Gross National Income) का 30% ऋण बोझ है।
अफ्रीका पर बीजिंग का 150 बिलियन डॉलर से ज्यादा का बकाया है। जाम्बिया भी चीनी बैंकों के लगभग 6 बिलियन डॉलर के साथ ऋण चुका रहा है। दरअसल
बीआरआई में भूमि मार्ग और समुद्री मार्ग शामिल है। भूमि मार्ग चीन को दक्षिण पूर्व एशिया, दक्षिण एशिया, मध्य एशिया, रूस और यूरोप से जोड़ता है और बाद में चीन के तटीय क्षेत्रों को दक्षिण पूर्व और दक्षिण एशिया, दक्षिण प्रशांत, पश्चिम एशिया, पूर्वी अफ्रीका और यूरोप से जोड़ता है।
बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव को न्यू सिल्क रोड भी कहा जाता है। इसकी शुरुआत 2013 में चीन के शी जिनपिंग ने की थी। यह प्रोजेक्ट बुनियादी ढांचे के जरिए पूर्वी एशिया और यूरोप को जोड़ने के लिए तैयार की गई एक पहल है। ये परियोजना अफ्रीका, ओशिनिया और लैटिन अमेरिका में शुरू हुई है, इससे चीन के आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव में काफी विस्तार हुआ है. पहले इसे 'वन बेल्ट, वन रोड' पहल भी कहा जाता था, लेकिन अब इसे बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का नाम मिला है।एक विश्लेषण से पता चला है कि चीन ने इस पहल के लिए 210 अरब डॉलर से ज्यादा का निवेश किया है, जो एशिया में किसी भी परियोजना में निवेश की गई योजना में सबसे ज्यादा है।
बेल्ट एंड रोड का मतलब यह भी है कि चीनी कंपनियां दुनिया भर में निर्माण कार्य में लगी हुई हैं।
भारत का दृढ़ मत है कि यह परियोजना संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करती है। भारत इस बात को लेकर भी चिंतित है कि यह परियोजना क्षेत्र में चीन की रणनीतिक उपस्थिति को बढ़ाती है। उसे यह भी डर है कि इस तरह की पहल से देश बीजिंग के कर्जदार हो जाएंगे।भारत का दृढ़ मत है कि यह परियोजना संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करती है। भारत इस बात को लेकर भी चिंतित है कि यह परियोजना क्षेत्र में चीन की रणनीतिक उपस्थिति को बढ़ाती है। उसे यह भी डर है कि इस तरह की पहल से देश बीजिंग के कर्जदार हो जाएंगे।
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