ग्लेशियरों पर बनी समिति की सिफारिशें ठंडे बस्ते में

Last Updated 08 Feb 2021 06:20:51 AM IST

आखिर सरकारों खुद अपनी रिपोर्टों को ठंडे बस्ते में क्यों डाल देती हैं ? ऋषिगंगा बांध हादसे के बाद यह सवाल फिर मुंह बाये खड़ा है।


ग्लेशियरों पर बनी समिति की सिफारिशें ठंडे बस्ते में

भले ही इस आपदा के कारणों की तलाश अभी पूरी न हुई हो लेकिन प्रदेश सरकार द्वारा ग्लेशियरों को लेकर गठित विशेषज्ञ समिति ने सात दिसंबर 2006 को कई तात्कालिक व दीर्घकालिक सिफारिशें की थी। उस समय पूर्व मुख्य सचिव ने एनएस नपलच्याल ने भी प्रदेश सरकार के आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास विभाग से कहा था कि यह रिपोर्ट ग्लेशियरों से पैदा होने वाले खतरों को लेकर अद्वितीय रिपोर्ट है। सरकार इन सिफारिशों के आधार पर ठोस कदम उठाएगी। तात्कालिक सिफारिशों के तौर पर सबसे पहले प्रदेश के उन आबाद इलाकों का चिह्नीकरण किया जाना था जो ग्लेशियरों से पैदा होने वाले खतरे से प्रभावित हो सकते हैं। इसके साथ ग्लेशियरों के पीछे खिसकने के हाइड्रोलॉजिकल व क्लाइमेटोलॉजिकल आंकड़े जमा किए जाने थे। इन आंकड़ों के आधार पर आने वाली बाढ़ और ग्लेशियरों से पानी के बहाव की मॉनिटरिंग की जानी थी। यही नहीं सिफारिश यह भी थी कि प्रदेश में स्थापित होने वाले हर हाइड्रो प्रोजेक्ट के लिए नदियों के उद्गम क्षेत्र में मौसम केंद्र स्थापित करना और नदियों के प्रवाह की मॉनिटरिंग के लिए केंद्र स्थापित करना जरूरी हो और ये आंकड़े प्रदेश सरकार को नियमित मिलते रहें। भागीरथी घाटी की केदार गंगा और केदार बामक के आसपास की ग्लेशियल झीलों की लगातार मॉनिटरिंग हो और उससे आने वाले पानी की मॉनिटरिंग भी हो। यही नहीं सिफारिश की गई थी कि डीएमएमसी स्कूल व कालेज आदि में ग्लेशियरों से जुड़ी आपदाओं व दुर्घटनाओं के प्रति बच्चों और स्थानीय लोगों को सचेत करेगा। यही नहीं कक्षा नौ से लेकर 12 तक की पाठ्य पुस्तकों में ग्लेशियरों या अन्य कारणों से आने वाली आपदाओं के बारे में जानकारी दी जाए। यह भी कहा गया था कि गौमुख के गंगोत्री ग्लेशियर व सतोपंथ ग्लेशियरों में पर्यटकों पर कड़ा प्रतिबंध लगाया जाए। इसके लिए पर्यावरण संरक्षण कानून 1986 के प्रावधानों की मदद ली जा सकती है। इसके साथ नियमित ग्लेशियल वुलेटिन को ऑडियो या वीडियो मीडिया के जरिए जारी करने कोशिश की जाए।

बर्फ, ग्लेशियल झीलों, उनके बनने व संभावित विभीषका की मॉनिटरिंग नहीं : विशेषज्ञ समिति द्वारा दीर्घकालिक सिफारिशें भी की गई थी। इसमें कहा गया था कि ग्लेशियरों और ग्लेशियल झीलों के बड़े परिमाण यानी 1: 25000 के मानचित्रों के साथ की इनवेंट्री बनाई जाए। इसमें उनकी पहचान भी स्पष्ट की जाए। उनकी स्नोकवर मैपिंग की जाए और जाड़ों में स्नोकवर पैटर्न का आकलन किया जाए। मॉनिटरिंग सिस्टम को मजबूत करने के लिए एडब्ल्यूएस नेटवर्क के जरिए पर्यावरण और बर्फ, ग्लेशियल झीलों, उनके बनने और संभावित विभीषका की मॉनिटरिंग हो। बर्फ के गलने और उस पर अवसाद व मलबे के भार का आकलन हो। ग्लेशियरों के सिकुड़ने, उनके मास वॉल्यूम में हो रहे बदलाव और स्नोलाइन की मॉनिटरिंग हो ताकि पर्यावरण की बेहतर समझ पैदा हो सके। ग्लेशियरों की वजह से बांधों उनके जलाशयों और जल विद्युत परियोजनाओं की सुरक्षा को पैदा होने वाले खतरों का पहले से आकलन कर लिया जाए। यही नहीं प्रभावी योजना व व प्रबंधन के लिए सभी हिमालयी ग्लेशियरों की जानकारी को जियोग्राफिकल इनफॉरमेशन सिस्टम (जीआईएस) के जरिए संकलित व एकीकृत किया जाए।

सहारा न्यूज ब्यूरो/अरविंद शेखर
देहरादून


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