अविवाहित बेटी पिता से गुजारा-भत्ता हासिल करने की हकदार : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी भी उम्र की अविवाहित बेटी अपने पिता से भरण-पोषण हासिल कर सकती है। यदि उसकी आमदनी का कोई जरिया नहीं है तो वह अपने पिता से मेंटनेंस के रूप में निश्चित धनराशि प्राप्त कर सकती है।
सुप्रीम कोर्ट |
जस्टिस अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी और मुकेश कुमार शाह की बेंच ने हिंदू एडोप्शन एंड मेंटनेंस एक्ट, 1956 की धारा 20(3) तथा सीआरपीसी की धारा 125 के तहत मिलने वाले गुजारे-भत्ते में फर्क को रेखांकित करते हुए कहा कि धारा 125 के तहत सिर्फ नाबालिग बेटे-बेटी को पिता से भरण-पोषण पाने का हक है जबकि हिंदू एडोप्शन एंड मेंटनेंस एक्ट किसी भी उम्र की अविवाहित बेटी को पिता से गुजारा-भत्ता वसूलने का हक देता है। धारा 125 के तहत उसी महिला को बालिग होने पर धनराशि मिल सकती है, यदि वह विकलांग है और उसकी आजीविका का कोई साधन नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर यह निर्णय दिया।
विवाहित मां ने खुद तथा अपने दो नाबालिग बेटे और एक अवयस्क बेटी के भरण-पोषण के लिए रेवाड़ी की अदालत में धारा 125 के तहत याचिका दायर की थी। मजिस्ट्रेट ने याचिका खारिज कर दी लेकिन अपील में सत्र अदालत ने बेटी को 18 वर्ष तक की आयु तक गुजारा-भत्ता देने का आदेश दिया। बेटी ने अप्रैल 2005 में 18 वर्ष की आयु प्राप्त कर ली। लिहाजा उसके बाद उसे गुजारा-भत्ता नहीं दिया गया। मां और बेटों ने हाई कोर्ट के फैसले को स्वीकार कर लिया लेकिन बेटी मामले को सुप्रीम कोर्ट ले गई। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में बेटी ने कहा कि वह अभी तक शादी-शुदा नहीं है, लिहाजा उसे भरण-पोषण के लिए एक निश्चित धनराशि दी जाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अविवाहित बेटी को गुजारा-भत्ता मिल सकता है लेकिन इसके लिए उसे हिंदू एडोप्शन एंड मेंटनेंस एक्ट, 1956 की धारा 20(3) के तहत अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत में सूट दायर करना होगा। मजिस्ट्रेट धारा 125 के तहत उसे राहत नहीं दे सकता।
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