गिलानी के ‘संन्यास’ से पसोपेश में पाकिस्तान

Last Updated 24 Aug 2020 01:56:05 AM IST

चरमपंथी नेता सैयद अली शाह गिलानी के अलगाववाद-राजनीति से ‘संन्यास’ लेने के ऐलान के बाद से पाकिस्तान में खलबली है।


चरमपंथी नेता सैयद अली शाह गिलानी (file photo)

सूत्रों के मुताबिक पाकिस्तानी हकूमत को विकल्प के तौर पर गिलानी की भांति घाटी में कोई जाना पहचाना वफादार चेहरा नहीं मिल रहा है, जो पाकिस्तान के हित में बेसुरा राग अलापता रहे।
जमायत-ए-इस्लामी से जुड़े काफी बुजुर्ग हो चुके पाकपरस्त गिलानी कईं दशकों से घाटी में अलगाववाद को बढ़ावा देते रहे हैं। लेकिन गत दिनों गिलानी ने अचानक इन सबसे निजात पाने का ऐलान किया। सूत्रों का कहना है, हालांकि कहा जा रहा है कि गिलानी ने पाकिस्तान व उसके कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर के मेडिकल कालेजों में कश्मीरी छात्रों के दाखिलों को लेकर हुए घोर भ्रष्टाचार से आजिज आ कर सन्यास लेने का फैसला लिया। लेकिन इसकी एक अहम वजह यह भी बताई गई है कि गिलानी के दो बेटे नईम गिलानी व नसीम गिलानी अपने पिता की अलगाववादी राजनीति के कारण खुद को असहज महसूस करते रहे हैं। बेटों के दवाब में आकर उन्होंने पाकिस्तान से दूरियां बनाने का फैसला लिया। हालांकि गिलानी की दो पोत्रियां पाकिस्तान में ही मेडिसिन की पढ़ाई कर रही हैं।

गिलानी को पाकिस्तान की इमरान सरकार ने अपने गत स्वतंत्रता दिवस पर पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक अवार्ड ‘निशान-ए-पाकिस्तान’ से नवाजने का ऐलान किया। गिलानी यहां एकमात्र ऐसे कश्मीरी अलगाववादी नेता हैं जिन्हें उक्त अवार्ड से नवाजने का ऐलान किया गया। घाटी में ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस से अलग होकर गिलानी ने तहरीक-ए-हुर्रियत नाम से एक नया अलगाववादी संगठन खड़ा किया।
जिसमें एक अन्य प्रमुख पाकपरस्त अलगाववादी नेता मुस्लिम लीग के मसरत आलम भी शामिल हुआ। लेकिन कालांतर में यानि स्न 2010 में जेकेएलएफ प्रमुख यासीन मलिक ने हुर्रियत के दोनों धड़ों को साथ लेकर एक नया संयुक्त विरोधी नेतृत्व यानि जेआरएल के नाम से मोर्चा बनाकर घाटी में अलगावाद की राजनीति को बढ़ावा देने की कोशिश की, परंतु जम्मू-कश्मीर की तत्कालीन नेंका-कांग्रेस की गठबंधन सरकार ने इस नए मोच्रे की नकेल कसने की भरपूर कोशिश की थी।
जुलाई सन् 2016 में जब हिजबुल मुजाहिदीन के पोस्टर ब्वाय बुराहन वानी को सुरक्षाबलों ने दक्षिण कश्मीर के कोकरनाग में मुठभेड़ में मार गिराया तो अलगाववादी नेताओं के उक्त नए मोर्चे ने जेआरएल ने घाटी में पत्थरबाजी से लेकर तमाम तरह की अराजकता को व्यापक तौर पर फैलाया। तब यहां महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार थी। जिसके बाद राज्यपाल शासन के दौरान सन् 2018 में घाटी में कईं अलगाववादी नेताओं को टेरर फंडिग आदि मामलों में गिरफ्तार किया गया। जिनमें जेआरएल  प्रमुख यासीन मलिक भी शामिल है।
जिनमें सैयद अली शाह गिलानी के अलावा ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेस के प्रमुख मीरवायज उमर फारूक भी हैं। जो अपने अपने घरों पर नजरबंद हैं।
पाकिस्तान, उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई तथा उसकी सेना को अब घाटी में गिलानी जैसे पाक परस्त अलगाववादी नेता की कमी खलने लगी है। जोकि पाकिस्तान की हिमायत में बेसुरा राग अलापता रहे।
हिजबुल मुजाहिदीन का सरगना सैयद सलाउदीन भी गिलानी का खासमखास है। चूंकि बीते साल 5 अगस्त को जम्मू कश्मीर के विशेष दज्रे यानि अनुच्छेद 370 व 35ए को खत्म किए जाने के साथ साथ इसे दो संघशासित प्रदेशों के रूप में पुनर्गठित किए जाने के बाद पाकिस्तान को यह उम्मीद थी कि घाटी में खासा बवाल शुरू होगा। जो यहां मौजूद सुरक्षाबलों की भारी मौजूदगी के कारण नहीं हो सका। जिसे लेकर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई को खासा धक्का लगा है।

सतीश वर्मा/सहारा न्यूज ब्यूरो
जम्मू


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