सनातन परंपरा के सबसे बड़े समागम महाकुंभ 2025 का आयोजन प्रयागराज में होने जा रहा है। सीएम योगी की दिव्य भव्य महाकुंभ की परिकल्पना ने महाकुंभ नगरी के रूप में आकार लेना प्रारंभ कर दिया है।
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इस दिशा में सबसे पहला कार्य सनातन संस्कृति के ध्वजवाहक साधु-संन्यासियों के अखाड़ों के लिए भूमि आवंटन की प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है।
प्रयागराज मेला प्राधिकरण, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद और सभी अखाड़ों के प्रतिनिधि पूज्य संतो से मिल कर परंपरा के अनुसार भूमि आवंटन का कार्य कर रहा है। प्राधिकरण की ओर से आश्वासन दिया गया है कि किसी भी सूरत में अखाड़ों को पिछले कुंभ से कम भूमि आवंटित नहीं की जाएगी। वहीं अखाड़ों को भूमि आवंटन पूरा होने के बाद अन्य संस्थानों को भूमि आवंटन की प्रक्रिया शुरू होगी। महाकुंभ 2025 के दिव्य भव्य आयोजन को लेकर प्रयागराज मेला प्राधिकरण पूरे जोर शोर से तैयारियों में जुटा है।
प्रयागराज शहर के सौंदर्यीकरण व सुदृढ़ीकरण के साथ महाकुंभ नगरी ने भी आकार लेना शुरू कर दिया है। संगम नोज, गंगा घाटों के साथ, पाटूंन पुलों, चेकर्ड प्लेट रोड का निर्माण कार्य प्रारंभ हो गया है। इस दिशा में महाकुंभ की पहचान साधु-संत, अखाड़ों के लिए भूमि आवंटन की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई है।
अपर मेला अधिकारी विवेक चतुर्वेदी ने बताया कि सीएम योगी के निर्देशों के मुताबिक किसी भी अखाड़े को पिछले कुंभ की तुलना में कम भूमि नहीं मिलेगी। भूमि आवंटन का कार्य सभी आखाड़ों की सहमति से 18 व 19 नवंबर को पूरा कर लिया जाएगा। इसके लिए प्राधिकरण के अधिकारी, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद तथा अन्य सभी अखाड़ों के प्रतिनिधियों से अलग-अलग वार्ता कर उनकी सहमति से भूमि आवंटन की प्रक्रिया को अंतिम रूप दे रहे हैं।
अपर मेला अधिकारी ने भूमि आवंटन के बारे में बताते हुए कहा कि परंपरा के अनुसार अखाड़ों को भूमि आवंटन के बाद ही अन्य संस्थाओं को भूमि आवंटन की प्रक्रिया शुरू होगी। चारों पीठों के शंकराचार्यों व दंडी स्वामियों को भी परंपरा के अनुसार उनके शिविर लगाने की भूमि आवंटित की जाएगी। साथ ही मेला प्राधिकरण अखाड़ों के शिविर के लिए भूमि, पानी और बिजली कनेक्शन के साथ शौचालय-नाली व साफ-सफाई की सुविधाएं उपलब्ध करवाता है।
इसके अलावा महाकुंभ मेले के दौरान मेला प्राधिकरण समय-समय पर साधु-संतों की जरूरत के मुताबिक जरूरी सुविधाएं उपलब्ध करवाएगा। ताकि साधु-संन्यासियों, आखाड़ों को महाकुंभ के दौरान सनातन संस्कृति की परंपराओं का पालन करने में असुविधा का सामना न करना पड़े।
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