मानसिक रोगी को नहीं दी जा सकती फांसी

Last Updated 19 Apr 2019 06:25:48 AM IST

उच्चतम न्यायालय के एक ऐतिहासिक फैसले से मौत की सजा सुनाए गए उन कैदियों के लिए नई उम्मीदें पैदा हो गयी हैं जो दोषसिद्धि के बाद गंभीर मानसिक बीमारियों से ग्रसित हो गए।


उच्चतम न्यायालय

न्यायालय ने कहा है कि अपीलीय अदालतों के लिए कैदियों की मानसिक स्थिति फांसी की सजा नहीं सुनाने के लिए एक अहम पहलू होगी। आरोपी अभी तक आपराधिक अभियोजन से बचने के लिए भारतीय दंड संहिता के तहत कानूनी विक्षिप्तता की दलील दे सकते थे।

न्यायमूर्ति एन वी रमना की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने एक कैदी को फांसी की सजा से बख्श दिया जिसे उसकी मानसिक स्थिति के कारण फैसले में शामिल नहीं किया गया था। कैदी को 1999 में महाराष्ट्र में दो नाबालिग लड़कियों के साथ बर्बर दुष्कर्म और हत्या के मामले में मौत की सजा सुनायी गयी थी।

भाषा
नई दिल्ली


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