भूमि अधिग्रहण बिल को लेकर संसद में हंगामे के आसार
भूमि अधिग्रहण विधेयक पर सरकार पीछे हटने के मूड में नहीं है. विपक्षी पार्टियां इस विधेयक का विरोध कर रही हैं. इसके चलते संसद में बुधवार को भी हंगामे के आसार हैं.
संसद (फाइल फोटो) |
भूमि अधिग्रहण कानून को लेकर एनडीए सरकार के भीतर से ही विरोध के स्वर उठने लगे हैं जहां उसकी महत्वपूर्ण सहयोगी शिवसेना ने मौजूदा स्वरूप में विधेयक का विरोध किया है. हालांकि सरकार ने संकेत दिए हैं कि किसानों की चिंताओं पर गौर करते हुए विधेयक में संशोधन किए जा सकते हैं.
भारी विरोध के बीच मंगलवार को कृषि मंत्री बीरेन्द्र सिंह ने लोकसभा में लगभग समूचे विपक्ष के वाकआउट के बीच भूमि अधिग्रहण विधेयक को पेश कर दिया. विपक्षी पार्टियों के अलावा एनडीए में भी विधेयक को लेकर विरोध है.
मंगलवार को भूमि अधिग्रहण पर एनडीए सांसदों की बैठक बुलाई गई. भाजपा की सबसे पुरानी सहयोगी और लोकसभा में 18 सांसदों के साथ एनडीए की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी शिवसेना सार्वजनिक रूप से नए विधेयक के विरोध में उतर आई. राज्यसभा में उसके तीन सांसद हैं.
संसदीय मामलों के मंत्री एम वेंकैया नायडू द्वारा बुलायी गयी एनडीए सांसदों की बैठक का पहले शिवसेना ने बायकॉट कर दिया था फिर बाद में शिवसेना सांसद बैठक में पहुंचे. बैठक में शिवसेना के तीन सांसदों के शामिल होने के बीच पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे ने एक बयान में कहा, ‘‘शिवसेना द्वारा ऐसे किसी कानून का समर्थन करने का कोई सवाल ही नहीं उठता जो किसानों के हितों के खिलाफ हो.’’ इस बैठक में बीरेन्द्र सिंह भी मौजूद थे.
ठाकरे ने कहा कि शिवसेना किसानों का गला दबाने का ‘‘पाप’’ नहीं कर सकती. उन्होंने साथ ही भाजपा से कहा कि ये किसान ही थे जो उसे सत्ता में लेकर आए हैं.
वहीं दूसरी ओर अकाली दल का कहना है कि पंजाब में वे केंद्र के भूमि अधिग्रहण के नियमों को लागू नहीं करना चाहते. इस बारे में पंजाब का अपना कानून ही काफी है.
बैठक में नायडू ने एनडीए सांसदों को नए कानून के प्रावधानों के बारे में जानकारी दी और उनकी कुछ गलतफहमियों को दूर करते हुए कहा कि इस संबंध में विपक्ष द्वारा दुष्प्रचार अभियान चलाया जा रहा है. इस सारी कवायद का मकसद कानून को अधिक प्रभावी बनाने के लिए सांसदों से सुझाव और प्रतिक्रिया हासिल करना था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पार्टी सांसदों से कहा कि वे इस मुद्दे को लेकर विपक्षी दलों द्वारा फैलाए जा रहे झूठ को बेनकाब करें.
नायडू ने बाद में बताया कि एनडीए के कई सांसदों ने सुझाव दिया कि ऐसी जमीन जहां परियोजनाओं को मंजूरी दी गयी थी लेकिन अधिग्रहण के 20 साल बाद भी कुछ नहीं हुआ, उसे किसानों को लौटा दिया जाना चाहिए.
उन्होंने कहा कि भूमि अध्यादेश इसलिए लाया गया था क्योंकि 32 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने कानून में संशोधन की मांग की थी क्योंकि कई ढांचागत विकास परियोजनाएं इसके चलते अटकी पड़ी थीं.
नायडू ने सांसदों को यह भी बताया कि इस संबंध में राज्यों द्वारा लाया गया कोई कानून केंद्रीय कानून से निरस्त नहीं होगा.
अकाली दल के सांसद सुखदेव सिंह ढींढसा ने कहा कि कुछ गलतफहमियां थीं जिन्हें नायडू ने दूर कर दिया और वे पार्टी के भीतर विचार विमर्श करेंगे कि इसे समर्थन दिया जाए या नहीं.
इस बीच कांग्रेस पार्टी ने ऐलान किया कि भूमि अधिग्रहण विधेयक पर उसका विरोध जारी रहेगा और वह सरकार पर इसे वापस लिए जाने और यूपीए सरकार के शासनकाल में लाए गए मूल कानूनों के प्रावधानों को बहाल करने का दबाव बनाने के लिए किसी भी सीमा तक जा सकती है.
कांग्रेस मंगलवार को नए विधेयक के विरोध में जंतर-मंतर पर एक रैली भी आयोजित करेगी.
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