अनुलोम-विलोम प्राणायाम
Last Updated 05 Feb 2009 12:49:01 PM IST
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अनुलोम-विलोम प्राणायाम को करने से 72 करोड़, 72 लाख, दस हजार दो सौ दस नाड़ियां परिशुद्ध हो जाती हैं। संपूर्ण नाड़ियों के शुद्ध होने से देह पूर्ण स्वस्थ, कान्तिमय एवं बलिष्ठ बनती है। समस्त वात रोग, मूष रोग, धातु रोग, शुक्र रोग, अम्लपित्त, शीतपित्त आदि समस्त पित्त रोग तथा सर्दी, जुकाम, पुराना नजला, साइनस, अस्थमा, खांसी, टॉन्सिल आदि कफ रोग दूर होते हैं।
हृदय की शिराओं में आए हुए अवरोध (ब्लोकेज) खुल जाते हैं। अनुलोम-विलोम प्राणायाम को बाईं नासिका से प्रारम्भ करते हैं। अंगूठे के माध्यम से दाहिनी नासिका को बंद करके बाईं नाक से श्वांस धीरे-धीरे भरना चाहिए। श्वांस पूरा अंदर भरने पर, अनामिका व मध्यमा से इड़ा नाड़ी (वाम स्वर) को बन्द करके दाहिनी नाक से पूरा श्वांस बाहर छोड़ें। धीरे-धीरे श्वांस-प्रश्वांस की गति मध्यम फिर तीव्र करनी चाहिए।
तीव्र गति से पूरी शक्ति के साथ श्वांस अंदर भरें व बाहर निकालें व अपनी शक्ति के अनुसार श्वांस-प्रश्वांस के साथ गति मंद मध्यम व तीव्र करें। तीव्र गति से पूरक, रेचक करने से प्राण की तेज ध्वनि होती है। श्वांस पूरा बाहर निकलने पर वाम स्वर को बंद रखते हुए ही दाएं नाक से श्वांस पूरा अंदर भरना चाहिए तथा पूरा अंदर भर जाने पर दाएं नाक को बंद करके बाईं नासिका से श्वांस बाहर छोड़ना चाहिए।
यह एक प्रक्रिया पूरी हुई। इस विधि को सतत करते रहना अर्थात बाईं नासिका से श्वांस लेकर दाएं से बाहर छोड़ देना, फिर दाएं से लेकर बाईं ओर से श्वांस को बाहर छोड़ देना। इसे करने पर थकान होने लगती है। अत: बीच में थोड़ा विश्राम करके दोहराएं। इस प्राणायाम को 3 से 10 मिनट तक किया जा सकता है। इस प्राणायाम को 10 मिनट से अधिक न करें। गर्मियों में यह प्राणायाम 3 से 5 मिनट तक का ही पर्याप्त होता है।
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