51 शक्तिपीठों में है तारापीठ यानी नयन तारा माता मंदिर
तारापीठ में देवी सती के नेत्र गिरे थे, इसलिए इस स्थान को नयन तारा भी कहा जाता है. कहते हैं, देवी तारा की आराधना से हर रोग से मुक्ति मिलती है.
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हिंदू धर्म में 51शक्तिपीठों में सिद्ध तारापीठ का सबसे अधिक महत्व है. पश्चिम बंगाल के प्रमुख पर्यटन स्थलों में एक है यह तारापीठ. असम स्थित कामाख्या मंदिर की तरह यह स्थान भी तंत्र साधना में विश्वास रखने वालों के लिए परम पूज्य स्थल है. यहां भी साधु-संत अतिविास और श्रद्धा के साथ साधना करते हैं.
लोककथा-
दक्ष प्रजापति के यज्ञ की अग्निकुंड में कूद कर सती द्वारा आत्म बलिदान करने के बाद शिव विचलित हो उठे और सती के शव को अपने कंधे पर लेकर आकाश मार्ग से चल दिए. उनके क्रोध से सारे देवी-देवता डर गए. उन्होंने भगवान विष्णु से प्रार्थना किया. तब भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती के शव को खंडित कर दिया.
माना जाता है कि इस स्थान पर देवी सती के तीसरे नेत्र का तारा गिरा था. इसलिए यह स्थान तारापीठ के नाम से विख्यात है. प्राचीन काल में महर्षि वशिष्ठ ने इस स्थान पर देवी तारा की उपासना करके सिद्धियां प्राप्त की थीं.
तारा शक्तिपीठ की महिमा
उन्होंने इस स्थान पर एक मंदिर भी बनवाया था, जो अब धरती में समा गया है. वर्तमान में तारापीठ का निर्माण जयव्रत नामक व्यापारी ने करवाया था. एक बार इस व्यापारी ने व्यापार के सिलसिले में तारापीठ के पास स्थित गांव पहुंचा और वहीं रात गुजारी.
रात में देवी तारा माता उनके सपने में आई और उससे कहा कि पास ही एक शमशान घाट है. उस श्मशान घाट के बीच में एक शिला है. उसे उखाड़कर विधिवत स्थापना करो.
व्यापारी ने भी माता के आदेशानुसार उस स्थान की खुदाई करवाकर शिला को स्थापित किया. इसके बाद उस व्यापारी ने देवी तारा का मंदिर बनवाया, जिसमें देवी तारा की एक भव्य मूर्ति की स्थापना की गई. इस मूर्ति में देवी तारा की गोद में बाल रूप में भगवान शिव हैं, जिसे मां स्तनपान करा रही हैं.
चिता की आग नहीं बुझती
वैसे तारापीठ मंदिर का प्रांगण श्मशान घाट के पास है, इसे महश्मशान घाट कहते हैं. इस महाश्मशान घाट की चिता की आग बुझती नहीं है. यहां आने पर लोगों को किसी प्रकार का डर नहीं लगता है. इस मंदिर के चारों ओर द्वारका नदी बहती है.
इस मंदिर में वामाखेपा नामक एक साधक ने देवी तारा की साधना करके उनसे सिद्धियां हासिल की थी. यह भी रामकृष्ण परमहंस के समान देवी माता के परम भक्तों में से एक थे.
सती के नेत्र गिरे थे तारापीठ में
तारापीठ में देवी सती के नेत्र गिरे थे, इसलिए इस स्थान को नयन तारा भी कहा जाता है. कहते हैं, यहां तंत्र साधकों के अलावा जो भी लोग यहां मुराद मांगने आते हैं, वह पूर्ण होता है. देवी तारा के सेवा आराधना से हर रोग से मुक्ति मिलती है.
इस स्थान पर सकाम और निष्काम दोनों प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं. त्रिताप को जो नाश करती है, उसे तारा कहते हैं. ताप चाहे कोई सा भी हो, विष का ताप हो, दरिद्रता का ताप हो या भय का ताप, देवी तारा माता सभी तापों को दूर कर जीव को स्वतंत्र बनाती है.
यदि किसी का शरीर रोग से ग्रस्त हो गया है या कोई प्राणी पाप से कष्ट भोग रहा है, वह जैसे ही दिल से तारा-तारा पुकारता है, तो ममतामयी तारा माता अपने भक्तों को इस त्रिताप से मुक्त कर देती है.
तारा अपने शिव को अपने मस्तक पर विराजमान रखती हैं. वे जीव से कहती है चिंता मत करो, चिता भूमि में जब मृत्यु वरण करोगे तो मैं तुम्हारे साथ रहूंगी, तुम्हारे सारे पाप, दोष सभी बंधन से मैं मुक्त कर दूंगी.
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