चाय और कॉफी पीने से हो सकते हैं गंभीर परीणाम, गुड़ और पेठा करें इस्तेमाल
हमारी प्राचीन चिकित्सा पद्धति जीवन का सरल तरीका बताती है। आयुर्वेद मर्ज को नहीं बल्कि मरीज न बनें इसकी सलाह देता है। हर मौसम के लिए अलग रेसिपी, खान-पान का सधा अंदाज सेहत के लिए राहत का सबब बन सकता है।
सुबह की चाय और कॉफी को कह दें न |
सावन अभी खत्म नहीं हुआ है। इसके बाद भादो में भी बादल बरसेंगे। ऐसे में चाय पकौड़े की तलब होना लाजिमी है। चिकित्सक कहते हैं पकौड़े खाएं, तला भुना खाएं लेकिन संभल कर। तेल से ज्यादा देसी घी का उपयोग शारीरिक दिक्कतों से आपका बचाव कर सकता है।
ऐसा ही कुछ चाय और कॉफी के साथ भी है। अक्सर सुबह उठ कर तलब होती है एक कप चाय या कॉफी की। लेकिन क्या आप जानते हैं आयुर्वेद इसे सेहत के लिहाज से सही नहीं मानता। वैद्य एसके राय (आयुर्वेदाचार्य) की सलाह है कि इसकी जगह प्रकृत्ति प्रदत्त चीजों का इस्तेमाल किया जाए। मसलन फल खाया जाए या फिर मीठे से शुरुआत की जाए।
मीठा भी बर्फी, लड्डू या गुलाब जामुन नहीं बल्कि शुद्ध देसी स्वाद वाला हो। वैद्य कहते हैं गुड़ और पेठा सही है। ये आपके शरीर में वात के संतुलन को बनाए रखता है। इससे आगे चलकर किसी भी तरह की शारीरिक परेशानी नहीं होती।
ऐसा इसलिए भी क्योंकि सुबह सबसे पहले चाय या कॉफी पीने से पेट में एसिड का उत्पादन बढ़ सकता है, डायजेशन यानि पाचन संबंधी परेशानी बढ़ सकती है, पोषक तत्वों के अवशोषण में बाधा उत्पन्न हो सकती है और ब्लड-शुगर लेवल बढ़ घट सकता है।
पेट संबंधी रोगों से ही नहीं न्यूरोलॉजिकल दिक्कतों से बचा जा सकता है। अक्सर इस मौसम में शरीर में दर्द या बादी की शिकायत होती है (जो नसों से जुड़ा होता है) और आयुर्वेद के मुताबिक कड़वे रस के गुण से परिपूर्ण चायपत्ती और कॉफी वात को बढ़ाने में मददगार साबित होती है।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल रिसर्च यानि आईसीएमआर ने भी हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की थी। जिसमें भारतीयों के लिए एक रिवाइस्ड डाइट गाइडलाइंस का जिक्र था। इसमें चाय कॉफी पीने को लेकर सलाह भी दी गई थी। गाइडलाइंस के मुताबिक खाने से एक घंटे पहले और बाद में भी चाय कॉफी से तौबा कर लेनी चाहिए। उनके मुताबिक यह आयरन को पचाने में परेशानी खड़ी करता है और एनीमिया होने का खतरा पैदा करता है।
सभी जानते हैं कि चाय और कॉफी में कैफीन होता है, ये एक उत्तेजक पदार्थ है। जो सेंट्रल नर्वस सिस्टम को प्रभावित करता है और मनोवैज्ञानिक निर्भरता को बढ़ाता भी है। हमारी प्राचीन चिकित्सा पद्धति भी तो यही कहती है। सेहत नेमत है इसलिए किसी भी तरह से आदी बनने की प्रवृत्ति का त्याग कर सुखी जीवन जिएं।
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