मोटापा कंट्रोल नहीं किया तो 12 साल में 51% आबादी होगी मोटापे से ग्रस्त
मोटापा आज के समाज में बड़ी स्वास्थ्य चिंता है, क्योंकि इसका असर विभिन्न जीवनशैली संबंधी बीमारियों पर पड़ता है, जो व्यक्तियों के स्वास्थ्य और जीवन की समग्र गुणवत्ता को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है।
महामारी का रूप ले रहा मोटापा |
विशेषज्ञों के अनुसार, मोटापा मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, मेटाबोलिक सिंड्रोम, बांझपन, माइग्रेन, स्लिप डिस्क, घुटने के ऑस्टियोआर्थराइटिस सहित कई बीमारियों का कारण बन सकता है और इससे कैंसर का खतरा भी काफी बढ़ जाता है।
इन सबको एक साथ रखने पर, यह क्लास-1 और क्लास-3 के मोटापे से ग्रस्त व्यक्तियों में जीवन काल को काफी कम कर देता है।
2016-2021 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आंकड़ों के अनुसार, लगभग 20 प्रतिशत भारतीय आबादी मोटापे से ग्रस्त है, जिसमें 5 प्रतिशत रुग्ण रूप से मोटापे से ग्रस्त (गंभीर रूप से मोटापे से ग्रस्त) आबादी शामिल है।
गाजियाबाद के मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के मिनिमल एक्सेस, बेरिएट्रिक और रोबोटिक सर्जरी संस्थान के निदेशक और प्रमुख डॉ विवेक बिंदल ने बताया, "भारत में मोटापे के प्रमुख कारण सेडेंटरी लाइस्टाइल, आहार का पश्चिमीकरण (जंक और फास्ट फूड सहित), स्क्रीन पर अधिक समय बिताना और व्यायाम की कमी है। अब जीविकोपार्जन के लिए बहुत कम शारीरिक गतिविधि की आवश्यकता होती है, और भोजन तक पहुंच कई गुना बढ़ गई है।"
उन्होंने कहा, "चिप्स और कुकीज़ के बैग जैसे पैक किए गए भोजन दूरदराज के गांवों और गरीब सामाजिक-आर्थिक तबके के लिए भी बहुत कम कीमत पर उपलब्ध हैं, जिससे समाज के सभी वर्गों में इसकी खपत बढ़ रही है। स्मार्टफोन और डेटा तक पहुंच ने स्क्रीन समय में काफी वृद्धि की है, जिससे शारीरिक गतिविधि कम हो गई है।"
दिल्ली और चंडीगढ़ जैसे शहरी क्षेत्रों में, मोटापे का प्रसार लगभग 30 प्रतिशत है, लेकिन सबसे चिंताजनक आंकड़ा यह है कि एनएफएचएस डेटा के अनुसार, स्कूल जाने वाले एक तिहाई से अधिक बच्चे अधिक वजन वाले या मोटापे से ग्रस्त हैं।
विश्व मोटापा महासंघ (World Obesity Federation) ने 2023 की एक रिपोर्ट में भविष्यवाणी की है कि अगले 12 वर्षों में, दुनिया की 51 प्रतिशत से अधिक आबादी अधिक वजन वाली या मोटापे से ग्रस्त होगी।
एक राष्ट्रीय अध्ययन के अनुसार, भारत में लगभग 14.4 मिलियन मोटापे से ग्रस्त बच्चे हैं, और यह दुनिया में चीन के बाद मोटापे से ग्रस्त बच्चों की संख्या में दूसरे स्थान पर है।
गुरुग्राम के मारेंगो एशिया हॉस्पिटल के निदेशक और वरिष्ठ सलाहकार डॉ. राकेश दुर्खुरे ने आईएएनएस को बताया, "जब हम अधिक वजन होने के कारणों पर गौर करते हैं तो सूची में सबसे ऊपर उच्च कार्बोहाइड्रेट युक्त भोजन में वृद्धि की तुलना में अपर्याप्त गतिविधि यानी गतिहीन जीवन शैली है। शहरीकरण जिसमें हैंडहेल्ड तकनीकी उपकरण, भोजन वितरण और मोटर कार पर निर्भर गतिविधियां शामिल हैं, भारतीय आबादी में वजन बढ़ने के केंद्र में रही हैं।"
इसके अलावा, डॉ. दुरखुरे ने उल्लेख किया कि मोटापा एक ऐसी बीमारी है जो किसी व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है, साथ ही व्यक्ति के बढ़ते वजन के साथ डिप्रेशन और एंटी सोशल बिहेवियर आमतौर पर देखा जाता है।
आजकल, पुरुषों और महिलाओं दोनों में बांझपन आमतौर पर देखा जाता है और मोटे व्यक्तियों में अधिक देखा जाता है। पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिजीज (पीसीओडी) मोटापे से ग्रस्त किशोर लड़कियों में देखी जाती है, जिससे बाद के जीवन में वे बांझपन का शिकार हो जाती हैं।
नवीनतम सर्वेक्षण के अनुसार, 15-49 आयु वर्ग की लगभग 6.4 प्रतिशत महिलाएं और 4.0 प्रतिशत पुरुष वास्तव में मोटापे से ग्रस्त हैं और इसी आयु वर्ग की लगभग 17.6 प्रतिशत महिलाएं और 18.9 प्रतिशत पुरुष अधिक वजन वाले हैं, लेकिन उन्हें मोटापे का लेबल दिया गया है।
मोटापे से निपटने के लिए विशेषज्ञों का मानना है कि रोकथाम सबसे अच्छी रणनीति है और इसे कम उम्र में ही लागू किया जाना चाहिए।
स्क्रीन टाइम, जंक/फास्ट फूड की खपत को कम करके और व्यायाम, खेल और योग को प्रोत्साहित करके मोटापे से निपटा जा सकता है।
साबुत फलियां, अंडे की सफेदी, कम वसा वाली मछली और चिकन जैसे प्रोटीन को भोजन में शामिल किया जाना चाहिए, साथ ही चयापचय बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थ जैसे अदरक, नीबू, लहसुन और सलाद के साथ-साथ फल और सूखे मेवे भी परिवार की भोजन की थाली में शामिल होने चाहिए।
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