Diwali 2023: धनतेरस, दिवाली से भाई दूज… शुरू हुआ पंचपर्व त्योहार, छाया Diwali का सुरूर

Last Updated 10 Nov 2023 04:14:20 PM IST

धनतेरस में भगवान धनवन्तरि के पूजन के साथ पांच दिन तक चलने वाले अंधकार पर प्रकाश की विजय के प्रतीक दीपावली महापर्व की उमंग और मस्ती में सराबोर होने के लिए तैयार हैं।


मान्यताओं के अनुसार कार्तिक मास की त्रयोदशी को समुद्र मन्थन में स्वास्थ्य और आरोज्ञ के देवता भगवान धन्वन्तरि देव का पृथ्वी पर पदार्पण हुआ था। धनवन्तरि को धन और ऐर्य की देवी लक्ष्मी का बडा भाई माना गया है। धनवन्तरि का आगमन ‘स्वास्थ्य और जीवन रक्षा’ से जुड़ा हुआ माना जाता है।

नरक चतुर्दशी

धनतेरस के अगले दिन छोटी दीपावली यानी नरक चतुर्दशी के मनाये जाने के पीछे किवदंती है कि रन्तिदेव नामक एक धर्मात्मा राजा ने अपने जीवन में कभी कोई पाप नही किया था मगर जब उनकी मृत्यु का समय आया तो यमदूत उनके प्राण लेने पहुचें। उन्हें सामने देख राजा आश्चर्यचकित होकर बोले - हे दूत! मैंने कभी कोई पाप कर्म नहीं किया है फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हैं। राजा दूतों से बोले कि आपके यहां आने का तात्पर्य है कि मुझे नरक जाना होगा। अत: आप मुझ पर कृपा करके बताएं कि मुझसे क्या अपराध हुआ है। राजा की विनयपूर्ण वाणी सुनकर यमदूत ने कहा कि एक बार आपके द्वार से एक ब्राह्राण भूखा लौट गया था। यह उसी पाप का फल है।

राजा ने यमदूतों से निवेदन किया कि उन्हें अपनी भूल को सुधारने का एक मौका दिया जाए। यमदूत ने राजा की प्रार्थना पर उन्हें एक वर्ष की मोहलत दे दी। इसके बाद राजा  ब्राह्मणों के पास गए और उन्हें अपनी परेशानी से अवगत कराया।राजा के पूछने पर  ब्राह्मण बोले -हे राजन्! आपको कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करके ब्राह्मणों को भोजन कराना होगा

इसके बाद उनसे अपने अपराध की क्षमा याचना करनी होगी। राजा ने वैसा ही किया और वे अपने पाप कर्म से मुक्त होकर बैकुंठ को गए। उस दिन से पाप और नरक से मुक्ति के लिए मृत्युलोक में कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत प्रचलित है।

दीपावली

रविवार को रोशनी का त्योहार दीपावली सामाजिक और धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् ‘अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए’ यह उपनिषदों की आज्ञा है। इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं। जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं तथा सिख समुदाय इसे बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है।


मान्यता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा रामचंद्र अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीए जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक हर साल यह प्रकाश-पर्व हर्ष एवं उल्लास से मनाया जाता हैं।

गोवर्धन पूजा

दीपावली के अगले सुबह गोवर्धन पूजा की जाती है। लोग इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। इस त्यौहार का भारतीय लोकजीवन में काफी महत्व है। इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा सम्बन्ध दिखाई देता है। गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है।

शास्त्रों में गाय को गंगा के समान पवित्र और देवी लक्ष्मी का स्वरूप कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। इनका बछड़ा खेतों में अनाज उगाता है। इस तरह गौ सम्पूर्ण मानव जाती के लिए पूजनीय और आदरणीय है। गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय की पूजा अर्चना की जाती है।

भाई दूज

पांच दिन के त्योहार में सबसे अंत में भाई दूज का त्योहार आता है। भाई दूज कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाते हैं, इसे यम द्वितीया भी कहते हैं क्योंकि इस दिन यमराज अपनी बहन यमुना के घर भोजन करने गए थे। तब उन्होंने यमुना को वरदान दिया था कि इस दिन जो भी भाई अपनी बहन के घर जाएगा, उसे मृत्यु का भय नहीं सताएगा।

समय लाइव डेस्क
नई दिल्ली


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