पाकिस्तान के उच्चतम न्यायालय ने पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की दी गई मौत की सजा पर फिर से विचार करने के पूर्व राष्ट्रपति के अनुरोध के बाद मंगलवार को मामले की सुनवाई फिर से शुरू कर दी है।
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पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने दो अप्रैल 2011 को उच्चतम न्यायालय से मौत की सजा पर फिर से विचार करने का औपचारिक अनुरोध किया था।
मुख्य न्यायाधीश काजी फैज ईसा की अध्यक्षता में शीर्ष अदालत की नौ सदस्यीय पीठ ने मामले की सुनवाई की।
भुट्टो को हत्या के एक मामले में उकसाने का दोषी ठहराए जाने के बाद 1979 में फांसी दे दी गई थी।
उच्चतम न्यायालय की सात-सदस्यीय पीठ द्वारा दोषसिद्धि को बरकरार रखने के बाद फांसी की सजा दी गई थी।
कई लोगों का मानना है कि तत्कालीन सैन्य तानाशाह जनरल जियाउल हक के दबाव के कारण सात सदस्यीय पीठ ने यह फैसला बरकरार रखा था। हक ने 1977 में भुट्टो की सरकार का तख्तापलट कर दिया था।
इस मामले में इससेपहले सुनवाई जनवरी 2012 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश इफ्तिखार मोहम्मद चौधरी की अध्यक्षता वाले 11-न्यायाधीशों की पीठ ने की थी।
भुट्टो के नाती बिलावल भुट्टो जरदारी के अनुरोध पर मामले की कार्यवाही का सीधा प्रसारण किया जा रहा है।
भुट्टो को पाकिस्तान में अलोकतांत्रिक ताकतों के प्रतिरोध के प्रतीक और दलितों के शुभचिंतक के रूप में जाना जाता है।