रूसी सेना के लिए कल-पुर्जे बनाएगा भारत
भारत रूसी सैन्य उपकरणों के कल-पुर्जो (स्पेयर पार्ट्स) का विनिर्माण करेगा। दोनों देश अपने दशकों पुराने खरीद-बिक्री संबंध को एक सहयोग में बदलने का प्रयास कर रहे हैं।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच वार्ता के बाद यहां बुधवार को इस संबंध में एक समझौते पर हस्ताक्षर किया गया, जिसमें दोनों देशों के बीच विशेष संबंधों में नए आयाम जोड़ने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इस पहल को दोनों देशों के बीच संबंधों में एक महत्वपूर्ण विकास के तौर पर देखा जा रहा है, जहां दोनों देश अपने दशकों पुराने खरीद-बिक्री संबंध को एक सहयोग में बदलने का प्रयास कर रहे हैं।
दोनों पक्षों ने द्विपक्षीय सैन्य और प्रौद्योगिकी सहयोग समझौते को 2020 के बाद अतिरिक्त 10 वर्षो के लिए बढ़ा दिया है।
राष्ट्रपति पुतिन ने मोदी से वार्ता के बाद मीडिया के समक्ष दिए बयान में कहा कि रूस बीते 50 वर्षो से रक्षा के क्षेत्र में भारत का भरोसेमंद साथी है और भारत ने पोत सहित अधिकतर सैन्य उपकरण रूस से लिए हैं। उन्होंने खासकर विमान वाहक पोत विक्रमादित्य का उल्लेख किया, जिसे एक दशक पहले भारत ने रूस से खरीदा था।
इस संदर्भ में, उन्होंने यहां मोदी के ज्वेज्दा पोत निर्माण परिसर के दौरे का उल्लेख किया।
रूसी राष्ट्रपति ने एक सहयोग परियोजना का भी संदर्भ दिया, जिसके अंतर्गत भारत में एके-203 राइफल्स का निर्माण किया जा रहा है। उन्होंने कहा, "हम इस क्षेत्र में संबंध को और मजबूत करने के लिए तैयार हैं।"
बाद में पत्रकारों को संबोधित करते हुए, विदेश सचिव विजय गोखले ने कहा कि रूसी सैन्य उपकरणों के लिए कल-पुर्जो के विनिर्माण का समझौता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारत-रूस के बीच क्रेता-विक्रेता संबंध को बदलकर एक सहयोगपूर्ण संबंध में तब्दील करने का प्रयास है।
उन्होंने कहा कि कल-पूर्जो का निर्माण अंतर-सरकारी समझौते के तहत किया जाएगा।
मोदी-पुतिन वार्ता की एक और उपलब्धि ऊर्जा के क्षेत्र में लिया गया निर्णय है, जिसके अंतर्गत जॉइंट स्टॉक कंपनी नोवाटेक और पेट्रोनेट एलएनजी लिमिटेड के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया गया।
तेल व गैस के क्षेत्र में सहयोग में विस्तार के लिए भारतीय पट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्रालय और रूसी ऊर्जा मंत्रालय के बीच एक कार्यक्रम पर हस्ताक्षर किया गया। इसके साथ ही प्राकृतिक गैस के परिवहन के लिए एक एमओयू पर हस्ताक्षर किया गया।
इन समझौतों को एक बड़ी सफलता बताते हुए, गोखले ने कहा कि भारत-रूस के बीच संबंधों में ऊर्जा एक 'उभरता हुआ स्तंभ' बनने जा रहा है, जबकि इससे पहले दोनों देशों के बीच संबंध रक्षा और असैन्य परमाणु सहयोग पर ही केंद्रित था।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति पुतिन ने वादा किया है कि उनके देश से भारत में ऊर्जा की आपूर्ति सुरक्षित और कम लागत की होगी।
एक सवाल के जवाब में विदेश सचिव ने कहा कि रूस के साथ ऊर्जा के क्षेत्र में विस्तार का ईरान के साथ तेल व एलएनजी आयात करने में हो रही कठिनाइयों से कुछ लेना-देना नहीं है।
उन्होंने कहा कि ईरान ऊर्जा के क्षेत्र में भारत का एक भरोसेमंद व बड़ा आपूर्तिकर्ता है, लेकिन भारत अपनी बढ़ती जरूरतों को देखते हुए अन्य श्रोतों की तलाश कर रहा है।
रूस में भारत के राजदूत वेंकटेश वर्मा ने कहा कि भारत पहले से ही रूस से तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) मंगा रहा है, लेकिन अब प्रयास इसका विस्तार करने का है।
एक अन्य महत्वपूर्ण निर्णय के तहत चेन्नई बंदरगाह और व्लादिवोस्तोक बंदरगाह के बीच समुद्री संचार के विकास के लिए भारतीय जहाजरानी मंत्रालय और रूसी यातायात विभाग के बीच एक आशय-पत्र (मेमोरेंडम ऑफ इंटेंट) पर निर्णय लिया गया है।
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