वासंतिक नवरात्र : द्वितीय ब्रह्मचारिणी

Last Updated 31 Mar 2025 07:27:00 AM IST

दधानां करपद्माभ्यामक्ष मालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।


मां दुर्गा की नव शक्तियों का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। यहां ‘ब्रह्म’ शब्द का अर्थ तपस्या है। ब्रह्मचारिणी अर्थात तप की चारिणी-तप का आचरण करने वाली। कहा भी है-वेदस्तत्वं तपो ब्रह्म-वेद, तत्व और तप ‘ब्रह्म’ शब्द के अर्थ हैं।

ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यन्त भव्य है। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बायें हाथ में कमण्डल रहता है।

अपने पूर्व जन्म में जब ये हिमालय के घर पुत्री-रूप में उत्पन्न हुई थीं तब नारद के उपदेश से इन्होंने भगवान शंकर जी को पति-रूप में प्राप्त करने के लिए अत्यन्त कठिन तपस्या की थी।

इसी दुष्कर तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। मां दुर्गा जी का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्त फल देने वाला है।

इसकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। दुर्गापूजन के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती है।

इस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान’ चक्र में स्थित होता है। इस चक्र में अवस्थित मन वाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।

समयलाइव डेस्क


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