लोभ
काम क्रोध और लोभ..इन तीनों में लोभ ही है जो मानव का सबसे ज्यादा अनिष्ट करता है।
![]() आचार्य रजनीश ओशो |
काम, क्रोध या किसी चीज का मोह..ये सभी लोभ-लालच के सामने कमजोर पड़ जाते हैं। मनुष्य में काम भावना एक उम्र के बाद आती है, क्रोध परिस्थितियों अर निर्भर करता है और मोह किसी वस्तु या मनुष्य पर.. लेकिन लोभ वह जन्म के साथ लेकर आता है।’
ओशो के अनुसार लोभ और क्रोध एक दूसरे से जुड़े है..जब मनुष्य का लोभ पूर्ण नहीं होता तो वह क्रोधित हो जाता है। अगर लालच नहीं होगा तो क्रोध भी नहीं आएगा, क्योंकि जब परिस्थितियां आपके प्रतिकूल हो जाती हैं, जो मनुष्य के भीतर क्रोध का जन्म होने लगता है। मनुष्य का लालच उसके अंत की कहानी भी तय करता है, क्योंकि जिसके भीतर सिवाय लोभ के कुछ नहीं है वह ना तो नम्र होता है और ना उसमें किसी अन्य व्यक्ति के प्रति दया भावना ही होती है।
मृत्यु जीवन का अटल सत्य है..लेकिन मनुष्य का लालच उसे इस सच को भी स्वीकारने नहीं देता..वह जानता है कि मृत्यु होनी तय है लेकिन वह मरना भी नहीं चाहता। उसे अमरता का लोभ रहता है, वह कुछ भी कर हमेशा जीवित रहने की कमना करने लगता है। ओशो के अनुसार संतान की चाहत भी मनुष्य के लोभ का ही परिणाम है। वह यह जानता है कि एक ना एक दिन उसका अंत तय है, ऐसे में वह अपनी संतान की चाहत करने लगता है, ताकि किसी ना किसी माध्यम से उसका अंश जीवित रह सके। लालच किसी भी चीज का हो सकता है।
हमें केवल इसकी गहराई में जाकर इसे समझना होगा। क्योंकि जो लोग लालच की भावना को समझ पाए हैं, उनके अनुसार यह हर कार्य की गहराई में है। वस्तु का, रिश्ते का, काम, वासना..मनुष्य की हर ख्वाहिश के पीछे लोभ छिपा है। लोभ मात्र एक शब्द नहीं बल्कि मानव मस्तिष्क में उपजने वाली एक ऐसी भावना है जो हर क्रिया के मूल में है। शब्द मानकर हम इसके प्रभाव को समझ नहीं पाते और अंत में उसकी भेंट चढ़ जाते हैं। लालच का संबंध मनुष्य के भीतर पनप रही उस हीन भावना से भी है, जिसके अनुसार वह स्वयं खोखला मानता है और स्वयं को भरने के लिए लालच का सहारा लेता है। ओशो के अनुसार अगर हम धन, पद, यश, ज्ञान आदि से स्वयं को भरने का प्रयास भी करेंगे तो भी स्वयं को पूर्ण नहीं कर पाएंगे क्योंकि जब तक हमारी सोच अधूरी और हीन रहेगी हम स्वय को अपने ही लालच की बलि चढ़ाते जाएंगे।
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