शूद्र
ब्राह्मण कोई जन्म से नहीं होता और जिन्होंने समझ लिया है कि वे जन्म से ब्राह्मण हैं, उनसे ज्यादा भ्रमित और कोई भी नहीं।
![]() आचार्य रजनीश ओशो |
उनकी स्थिति तो शूद्रों से भी गई बीती है। शूद्र को कम से कम यह तो ख्याल है कि मैं शूद्र हूं। महात्मा गांधी जैसे लोगों ने उसका भी ख्याल मिटाने की कोशिश की है। उसको भी कहा कि हरिजन है तू, शूद्र नहीं। जैसे ब्राह्मण की भ्रांति है कि जन्म से ब्राह्मण, ऐसे अब शूद्र को भी भ्रांति पैदा करवा दी है भले-भले लोगों ने, जिनको तुम महात्मा कहते हो कि तू हरिजन है। हरिजन ब्राह्मण का ही दूसरा नाम हुआ। जिसने हरि को जाना वह हरिजन, जिसने ब्रह्म को जाना वह ब्रह्म, वह ब्राह्मण।
हरिजन कह दिया, उसको एक भ्रांति चलती ही थी कि कुछ लोग जन्म से ब्राह्मण हैं, एक दूसरी भ्रांति पैदा करवा दी कि कुछ लोग जन्म से हरिजन हैं। अब हरिजन अकड़े हैं। क्योंकि उनको भी अहंकार जगा है ब्राह्मण होने का। ब्राह्मण भी ब्राह्मण नहीं है, हरिजन भी हरिजन नहीं हैं। मुझसे अगर तुम पूछो तो मैं कहूंगा हम सभी शूद्र की तरह पैदा होते हैं।
जन्म से तो हम सब शूद्र होते हैं न कोई ब्राह्मण होता न कोई वैश्य होता, न कोई क्षत्रिय होता, न कोई हरिजन होता। फिर जन्म के बाद हम क्या यात्रा करेंगे इस पर निर्भर करेगा। सौ में निन्यानबे लोग तो शूद्र ही रह जाएंगे। सौ में से एकाध ब्राह्मण हो पाएगा। एकाध भी हो जाए तो बहुत। और सबसे बड़ी जो बाधा है वह यह कि हम जन्म के साथ ही मान लेते हैं कि ब्राह्मण हैं। बस, वहीं चूक हो गई। जैसे बीमार आदमी मान ले कि मैं स्वस्थ हूं, तो क्यों इलाज करवाए? क्यों चिकित्सक के पास जाए? क्यों निदान करवाए? क्यों औषधि ले?
बीमार आदमी मान ले कि मैं स्वस्थ हूं, बात खत्म हो गई। ब्राह्मण तो बीमार था सदियों से, इधर महात्मा गांधी की कृपा से शूद्र भी बीमार हो गया है। यह जो हिंदुओं और हरिजनों के बीच जगह जगह संघर्ष हो रहा है, इसमें सिर्फ ब्राह्मणों का हाथ नहीं है, इसमें हरिजनों में पैदा हो गई अकड़ का भी हाथ है। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि जो हो रहा है वह ठीक हो रहा है। ब्राह्मण जो कर रहे हैं वह तो बिल्कुल गलत है, पाप है। मगर लोग अगर यह सोचते हों कि उसमें सिर्फ ब्राह्मणों का हाथ है, तो गलत बात है, उसमें हरिजन में जो अकड़ पैदा हो गई है हरिजन होने की, उसका भी बड़ा हाथ है।
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