पर्यावरण
पर्यावरण की चिंता हर किसी की चिंता नहीं बन पाई है। मैंने कहा था कि ‘मैं इकॉनमी और इकॉलजी यानी अर्थव्यवस्था और पर्यावरण के बीच विवाह करवा रहा हूं।’
![]() जग्गी वासुदेव |
ये दोनों एक-दूसरे के खिलाफ नहीं जा सकतीं। आपको साथ-साथ जाना होगा। मेरे ख्याल से यह बुनियादी संदेश है जो लोगों तक पहुंचना चाहिए कि हमें कारोबार को नष्ट करने की जरूरत नहीं है। मैं आपको एक छोटा सा उदाहरण देता हूं।
सत्ताइस सालों तक मैं अपने होम टाउन वापस नहीं गया। मतलब, मैं अपने परिवार से मिलने जाता था मगर वहां मैंने कोई कार्यक्रम नहीं किया क्योंकि मैं अपने शहर में थोड़ा गुमनाम रहना चाहता था, जो कि हो नहीं पाया..। करीब दस बारह साल पहले उन्होंने जोर दिया कि मुझे एक कार्यक्रम करना चाहिए इसलिए मैंने एक कार्यक्रम वहां किया। कार्यक्रम के अंत में मेरी अंग्रेजी टीचर आकर मुझसे मिलीं और मुझे गले लगा लिया, वह बोलीं, ‘अब मुझे समझ आया कि तुमने मुझे ‘रॉबर्ट फ्रॉस्ट’ क्यों नहीं पढ़ाने दिया।’ मैंने कहा, ‘मैम, मैं आपको रॉबर्ट फ्रॉस्ट क्यों नहीं पढ़ाने देता?
मुझे फ्रॉस्ट पसंद हैं, मैं उनके देश भी गया और मेरे पास उनकी अपनी आवाज में उनकी कविताओं का पाठ भी है।’ मैंने कहा, ‘मैं क्यों नहीं आपको पढ़ाने देता?’ वह बोलीं, ‘तुम्हें याद नहीं है?’ और उन्होंने मुझे याद दिलाया। हुआ यह था कि हम हमेशा इंग्लिश कवियों को ही पढ़ते रहे थे, और वह हमें अमेरिकी कविता से परिचित कराना चाहती थीं। उन्होंने यह कहते हुए रॉबर्ट फ्रॉस्ट का परिचय दिया कि वह एक महान कवि हैं। उन्होंने पहली कविता पढ़नी शुरू की, ‘वुड्स आर लवली, डार्क एंड डीप..’। मैंने कहा, ‘रुकिए।’ मैं ऐसे व्यक्ति की कविता नहीं सुनना चाहता था जो पेड़ को लकड़ी (वुड) कहता हो।
वह बोलीं, ‘नहीं, नहीं, रॉबर्ट फ्रॉस्ट एक महान..’। मैंने कहा, ‘मुझे परवाह नहीं कि वह कितने महान हैं! जो आदमी पेड़ को लकड़ी कहता हो, मैं उसकी कविता नहीं सुनना चाहता।’ यह ऐसा ही है जैसे एक बाघ आपकी ओर देखकर सोचे ‘ओह! यह तो नाश्ता है!’ अपने मन में हमें इसे बदलना होगा। पेड़ कोई मेज नहीं है, कोई कुर्सी नहीं है, फर्र्नीचर नहीं है, पेड़ एक असाधारण जीवन है और हमारे जीवन का आधार है। इसे हर किसी के लिए एक जीवंत अनुभव बनना होगा तभी उन्हें बचाया जा सकेगा।
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