Pitru Paksha 2021: आज से पितृ पक्ष शुरू, श्रद्धा से पितरों का करें तर्पण
पूर्वजों को याद करके उनकी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध करने का समय पितृ पक्ष आज से शुरू हो रहा है।
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पितृपक्ष अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता ज्ञापित करने का विशिष्ट अवसर होता है। श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धापूर्ण व्यवहार और तर्पण का अर्थ है तृप्त करना।
श्राद्ध पक्ष में पितर, ब्राह्मण और परिजनों के अलावा पितरों के निमित्त गाय, श्वान और कौए के लिए ग्रास निकालने की परंपरा है। इन दिनों में किये जाने वाले तर्पण से पितर घर-परिवार को आशीर्वाद देते हैं। श्राद्ध दिनों को कनागत भी कहते हैं। इस दौरान शुभ कार्य या नये कपड़ों की खरीदारी नहीं की जाती।
शास्त्रों के अनुसार मनुष्य के लिए तीन ऋण कहे गये हैं। देव, ऋषि और पितृ ऋण। इनमें से पितृ ऋण को श्राद्ध करके उतारना आवश्यक होता है।
शुक्ल या कृष्ण किसी भी पक्ष की जिस तिथि को परलोकवास हुआ हो, पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है। पूर्णिमा पर देहांत होने से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने का विधान है। इसी दिन से महालया का प्रारम्भ भी माना जाता है। पितृपक्ष में श्राद्ध तो मुख्य तिथियों को ही होते हैं, किंतु तर्पण प्रतिदिन किया जाता है। देवताओं, ऋषियों को जल देने के पश्चात् पितरों को जल देकर तृप्त किया जाता है।
महालया (पितृविसर्जनी अमावस्या): अश्विन कृष्ण अमावस्या को पितृविसर्जनी अमावस्या अथवा महालया कहते हैं। जो गृहस्थ पितृपक्ष के पंद्रह दिनों तक श्राद्ध-तर्पण आदि नहीं करते हैं, जिन पितरों की तिथि याद नहीं हो, उनके निमित्त श्राद्ध-तर्पण, दान आदि इसी अमावस्या को किया जाता है। इस दिन सभी पितरों का विसर्जन होता है।
ब्राह्मणपुराण में लिखा है कि आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में यमराज यमपुरी से पितरों को मुक्त कर देते हैं और वे संतों और वंशजों से पिण्डदान लेने को धरती पर आ जाते हैं।
मार्कण्डेय पुराण में लिखा है कि मृतक की पुत्रवधू भी श्राद्ध कर सकती है। अगर किसी स्त्री के पुत्र न हो तो वह स्वयं भी अपने पति का श्राद्ध कर सकती है। अगर उपुर्यक्त में से कोई न हो तो बहन भी श्राद्ध कर सकती है। बहन के न होने पर बहन का पुत्र भी श्राद्ध कर सकता है। मृतक का अगर कोई वंशज न हो और न ही सपिण्ड न ही सोदक हों तो उस देश के राजा द्वारा दाह संस्कार एवं श्राद्ध करने का विधान पुराणों में दिया गया है।
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