क्यों मुश्किल बनती जा रही टोटल अनलॉक की चुनौती?
कोरोना संकट में लॉक-अनलॉक के बीच 4 महीने बीत चुके हैं। न लॉकडाउन में रह सके और न ही अनलॉक रह पा रहे हैं हम।
टोटल अनलॉक की चुनौती? |
अगर कोरोना की भाषा में कहें तो एक्टिव केस रुक नहीं रहे, इसलिए लॉकडाउन की स्थिति बारम्बार दस्तक दे रही है। इसी तरह रिकवरी का लगातार बढ़ता प्रतिशत उम्मीद जगा रहा है कि अनलॉक की स्थिति अपने स्थायित्व की ओर बढ़ेगी। वहीं, यह बात भी सच है कि जब तक एक्टिव केस हैं, तब तक रिकवरी की स्थिति है। और, जब तक दोनों हैं तब तक लॉक-अनलॉक की स्थिति भी रहने वाली है।
सबसे बेशकीमती सवाल है कि देश पूरी तरह से अनलॉक कब होगा? मतलब यह कि कोरोना से पहले वाली स्थिति में देश कब लौटेगा? मिलता-जुलता सवाल यह भी है कि भारत-चीन के बीच नियंत्रण रेखा पर बदली हुई परिस्थिति, जिस कारण 20 भारतीय जवानों की शहादत हुई, कब पहले वाले यानी 5 मई से पहले वाले स्वरूप में वापस होगी? सच्चाई यह है कि दोनों सवालों का जवाब देश को दिया जा चुका है। एक सवाल का जवाब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिया था यह कहकर कि हमें कोरोना के साथ जीना सीखना होगा। दूसरे सवाल का जवाब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह दे चुके हैं कि वे एलएसी पर चीन से हो रही बातचीत के नतीजे को लेकर कोई गारंटी नहीं दे सकते।
पूर्ण अनलॉक हिन्दुस्तान की कल्पना को लेकर निराश होने की भी जरूरत नहीं है। यही सवाल तो कुछ दिनों पहले यूरोप में पूछे जा रहे थे। आज कोरोना संक्रमित देशों के टॉप टेन में सिर्फ दो यूरोपीय देश हैं। वे पूर्ण अनलॉक की ओर बढ़ चुके हैं। फरवरी से जून तक 5 महीने में उन्हें ‘मोक्ष’ मिल गया। अमेरिकी और लैटिन अमेरिकी देश अभी घनघोर कोरोना संकट के दौर से गुजर रहे हैं और इसलिए उनके समक्ष भी वही सवाल है जो भारत की जनता के समक्ष है। भारत में आशा की किरण यह है कि राजधानी दिल्ली अनलॉक भी है और कोरोना के संकट से जूझती हुई इससे उबरने का प्रयास भी करती दिख रही है। जिन प्रांतों में पहले कोरोना ने कहर बरपाया, अब वहां अनलॉक की स्थिति मजबूत हो रही है। वहीं, कई नये प्रदेशों में कोरोना की धमक ने नये सिरे से लॉकडाउन की मांग पैदा की है।
अनलॉक होते प्रदेश
भारत को अगर उध्र्वाधर रूप में दो हिस्सों में देखें तो लॉकडाउन से अनलॉक की ओर बढ़ते प्रदेशों में पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र, केरल जैसे प्रदेश पहले आएंगे। फिर इसी हिस्से में नम्बर आएगा मध्य प्रदेश, गुजरात, हिमाचल जैसे प्रदेशों का। वहीं हिन्दुस्तान का बायां हिस्सा या कहें कि पूर्वी हिस्सा अभी मिश्रित प्रतिक्रिया दिखा रहा है। बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक जैसे प्रांतों में कोरोना संक्रमण तेज होता नजर आ रहा है। मतलब यह कि यहां दोबारा लॉकडाउन की स्थिति पैदा हो रही है। इसलिए इन प्रदेशों में अनलॉक की प्रक्रिया आगे बढ़ने में अभी वक्त लगेगा।
दिल्ली ने दिखाया है कि अनलॉक से नुकसान कम फायदा ज्यादा है। अनलॉक के दौरान कोरोना संक्रमण की लड़ाई तेज और फोकस होकर करने की जरूरत पड़ती है। अगर एक बार इसमें सफलता मिलनी शुरू हो गई, तो लॉकडाउन अतीत हो जाता है ओर अनलॉक स्थायी रूप से वर्तमान में बदल जाता है। अनलॉक होने के जो खतरे हैं, वो हैं तेज गति से कोरोना का संक्रमण, बेड की कमी और अस्पतालों में जगह कम। पीपीई किट से लेकर डायग्नोस्टिक किट और वेंटीलेटर तक का इंतजाम रखना होगा। इसके अलावा, माइल्ड केस के इलाज की व्यवस्था मरीजों के घर में ही करनी होगी। अनलॉक के बाद कोरोना का एक झोंका तो आएगा, मगर तैयारियों की बदौलत इससे लड़ा जा सकता है। कम से कम दिल्ली ने देश को यह सिखाया है। आज दिल्ली में कुल केस सवा लाख से ज्यादा हैं, तो एक्टिव केस 15 हजार के करीब।
लॉकडाउन की सीमा
यूपी में वीकएंड पर लॉकडाउन और बिहार में पूर्ण लॉकडाउन जारी है। इसी तरह झारखंड के कई जिलों में लॉकडाउन है। सवाल यह है कि इस लॉकडाउन की सीमा क्या हो, कब तक रहे? लॉकडाउन का औचित्य स्वास्थ्य सुविधाओं के हिसाब से है। दो हफ्ते का लॉकडाउन रखकर अगर टेस्टिंग, ट्रेसिंग और ट्रीटमेंट फॉर्मूले को लागू कर सकते हैं, तो यह समय पर्याप्त है। अगर नहीं, तो लॉकडाउन-लॉकडाउन खेलते रहें और कोरोना संक्रमण का काल उतना ही लंबा खिंचता चला जाएगा। कहने का अर्थ यह है कि लॉकडाउन और कोरोना संकटकाल में समानुपातिक संबंध है। एक लंबा होगा, दूसरा भी लंबा खिंचेगा। वहीं अनलॉक और कोरोना संक्रमण में संबंध यह है कि अनलॉक होते ही संक्रमण तेज होगा, मगर स्थिति संभालने पर यही संक्रमण घटता चला जाएगा।
कोरोना की जद में आ रहे नये-नये इलाकों के हक में यह बात है कि अब कोरोना से लड़ने का एक अनुभव है देश के पास। बचाव के तरीके हैं। प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के उपाय भी खोजे जा चुके हैं। इसके अलावा, आपात स्थितियों से निपटने के लिए मेडिकल सुविधाएं भी हैं। बुजुर्ग आबादी को बचाने का एहतियात, पहले से बीमार लोगों पर ध्यान देने की आवश्यकता भी स्पष्ट है।
कोरोना का संकटकाल खत्म होने में बहुत समय नहीं लगेगा, यह भी तय है। वजह यह है कि दुनिया भर में कोरोना से लड़ाई के लिए जो वैक्सीन बनाने के प्रयास निरंतर चल रहे हैं, उनके नतीजे अब मिलने लगे हैं। जैसे-जैसे मानवीय ट्रायल के चरणों को पूरा करते हुए ये वैक्सीन बाजार में उपलब्ध होने लगेंगे, वैसे-वैसे कोरोना से लड़ने की हमारी क्षमता बढ़ती चली जाएगी। डॉक्टरों का अनुमान है कि अक्टूबर तक भारत खुद अपना वैक्सीन बना लेगा। जब तक यह सुखद स्थिति नहीं आती है तब तक कैसे अनलॉक की ओर बढ़ा जाए, यह महत्त्वपूर्ण सवाल है।
अनलॉक की स्थिति की ओर बढ़े बगैर अर्थव्यवस्था की फंसी हुई गाड़ी को कोरोना के दलदल से खींच निकालना मुश्किल है। भारत सरकार ने खाद्य सुरक्षा योजना के तहत 80 करोड़ लोगों को अनाज उपलब्ध कराने के लिए जो समय-सीमा तय कर रखी है, वह नवम्बर है। ऐसे में नवम्बर से पहले तक प्रत्येक प्रांतीय सरकारों के लिए अनलॉक की स्थिति को हासिल करना अहम लक्ष्य होना चाहिए। हिन्दुस्तान के स्तर पर अगर नवम्बर तक अनलॉक के लक्ष्य को हासिल कर लिया गया तो इससे सुखद स्थिति और कुछ नहीं होगी। यह कोई असंभव लक्ष्य नहीं है। पहली बात खुद भारत वैक्सीन बनाने के करीब है और दूसरी बात विदेश में भी वैक्सीन बनाने के दावे सामने आ रहे हैं। जो विकल्प पहले मिले, उसका इस्तेमाल अनलॉक होने के लिए किया जा सकता है।
अनलॉक को लेकर असहमति की स्थिति
एक आशंका बनती है कि केंद्र और राज्य के बीच अनलॉक को लेकर असहमति बनने पर क्या हो। अखिल भारतीय स्तर पर ऐसी असहमति या मतभेद की गुंजाइश बहुत कम दिखती है। जब विपरीत इंजन वाली दिल्ली और केंद्र सरकार में तालमेल सामने आ चुका है, पंजाब और महाराष्ट्र जैसे प्रांतों के साथ केंद्र का तालमेल बना हुआ है और पश्चिम बंगाल के साथ तालमेल की आरंभिक अप्रिय स्थितियां खत्म हो चुकी हैं तो आगे ऐसा कोई विवाद सामने आएगा, ऐसा नहीं लगता। वैसे भी अनलॉक की स्थितियां केंद्र और राज्य के बीच संवैधानिक स्तर पर निर्धारित सीमा के अनुरूप सुस्पष्ट हैं। शराबबंदी और शराब की दुकानें खोलने से लेकर पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाने तक की स्थिति में भी जब केंद्र और राज्यों के बीच तालमेल में कमी नहीं दिखाई पड़ी, तो अन्य विषय पर ऐसी आशंकाएं पालना निर्मूल है।
कुछेक देशों में अनलॉक की स्थिति पर नजर डालते हैं। जर्मनी में अप्रैल के महीने में अनलॉक को अपनाया गया। संक्रमण ने रफ्तार पकड़ी। मगर यह रफ्तार नियंत्रित रही। पांच अप्रैल को 1 लाख संक्रमण था जो 5 मई को 1.67 लाख पहुंचा। यही 5 जून को 1.85 लाख और 5 जुलाई को 1.97 लाख पहुंचा। 23 जुलाई तक जर्मनी में आंकड़ा 2.04 लाख पर लगभग स्थिर होता दिख रहा है। दक्षिण कोरिया में भी अनलॉक के बाद कोरोना संक्रमण तेज हुआ, मगर थोड़े समय बाद स्थिर होता चला गया। इंग्लैंड में 23 मार्च से लॉकडाउन शुरू हुआ था। सीमित तरीके से अनलॉक होते हुए अब 4 जुलाई से लगभग अनलॉक की स्थिति में इंग्लैंड आ चुका है। 4 जुलाई से 23 जुलाई के बीच 2.85 लाख से आंकड़ा बढ़कर 2.95 लाख हुआ है। दैनिक मामले लगातार कम होते जा रहे हैं। अमेरिका जरूर ऐसा उदाहरण है जहां न लॉकडाउन कभी ठीक से लागू हुआ और न ही अनलॉक लागू हो पा रहा है। यहां भी नीतियां लगातार बदल रही हैं। मगर अमेरिका ने जोखिम मोल लेते हुए अनलॉक के रास्ते को चुना है। अनलॉक के बाद से अमेरिका में कोरोना संक्रमण तेजी से बढ़ा है और मौत के आंकड़े भी बढ़े हैं।
कोरोना संकट ने दुनिया की अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है। भारत भी इससे बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ है। विकास की दर ऋणात्मक स्तर पर है और अर्थशास्त्री अगले साल भी ऐसा ही रहने का अनुमान लगा रहे हैं। मगर जो बेरोजगारी मार्च-अप्रैल में 30 फीसदी के स्तर को पार कर गई थी, वह अब दोबारा 12-14 फीसदी के स्तर पर आ गई है। प्रवासी मजदूर वापसी करते दिख रहे हैं। ऐसे में 20 लाख करोड़ का कोरोना पैकेज असर दिखाएगा और छोटे-बड़े कारोबार बैंकों की मदद से खड़े हो सकेंगे, इसके पूरे आसार हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्त्वपूर्ण बात यह है कि खाद्य और अखाद्य वस्तुओं की मांग बनी हुई है। बाजार में नकदी को बनाए रखने की चुनौती ही अहम है।
अनलॉक के ऐलान के बावजूद एक खौफ आम लोगों में घर कर गया है। इस खौफ से निकलना होगा। यह काम जीवन को गति में लाकर ही किया जा सकता है। दफ्तर और घर में तालमेल बनाते हुए एक नई किस्म की जीवनशैली विकसित हो रही है। यही शैली धीरे-धीरे आकार लेगी। अब वर्क फ्रॉम होम कारोबार की मजबूरी नहीं जरूरत होगी। पेशेवर लोगों के लिए यह स्वभाव होगा। वहीं, किसानों और मजदूरों के बीच कार्य की प्रकृति में कोई बड़ा बदलाव आता नहीं दिख रहा है। उनके लिए दोबारा अपने काम पर स्वाभाविक रूप में लौटना इस बात पर निर्भर करने वाला है कि सरकार क्या माहौल बनाती है।
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