परिसीमन : झारखंड झेलेगा झमेला
झारखंड में परिसीमन को लेकर एक नया झमेला और राजनीतिक बखेड़ा खड़ा हो गया है। सत्तारूढ़ झामुमो ने खुलेआम परिसीमन का विरोध करने का फैसला लिया है।
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मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने परिसीमन के खिलाफ विधानसभा के बजट सत्र के दौरान साफ-साफ कहा है कि इसके लिए झारखंड आर-पार की लड़ाई लड़ेगा। इसके लिए उनकी कुर्सी रहे या चली जाए। अपने समापन भाषण में केंद्र सरकार के खिलाफ खुली चुनौती पेश करते हुए कि परिसीमन के मुद्दे पर केंद्र से आर-पार की लड़ाई होगी। किसी भी कीमत पर झारखंड सरकार परिसीमन को स्वीकार नहीं करेगी। सरकार रहे या जाए, जो भी होगा, सरकार के लिए सबसे अहम होगा। परिसीमन का विरोध जारी रहेगा।
झारखंड पर नये परिसीमन के कई असर पड़ने की संभावना है। सबसे पहले, यह आदिवासी समुदाय की विधानसभा और लोक सभा में आरक्षित सीटों की संख्या को प्रभावित कर सकता है। झामुमो का दावा है कि परिसीमन के बाद आदिवासियों की सीटें कम हो जाएंगी। इसके अलावा, परिसीमन के बाद झारखंड में लोक सभा की सीटें बढ़कर 17 हो सकती हैं, लेकिन विधानसभा की सीटों की संख्या में कोई बदलाव नहीं होगा। हालांकि, आदिवासी सीटों की संख्या 28 से घटकर 22 हो जाएगी, जबकि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों की संख्या आठ से बढ़कर 10 हो जाएगी।
अब तक तय कार्यक्रम के अनुसार 2026 में देश भर में परिसीमन की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। इस परिसीमन से झारखंड के भी राजनीतिक स्थिति में बदलाव होने वाला है। अगर 2026 में परिसीमन प्रक्रिया की शुरु आत हो जाती है, तो 2029 के चुनावों में संसद और विधानसभाओं में सीटों की संख्या बढ़ जाएगी। माना जा रहा है कि 2029 के लोक सभा चुनाव में लगभग 78 सीटों का इजाफा होने की संभावना है। अब तक जो संकेत मिले हैं, उनके अनुसार झारखंड में लोक सभा सीटों की संख्या बढ़ कर 17 हो सकती है।
झामुमो के विरोध का आधार यह है कि वर्तमान में 14 सीटों में से पांच आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं, लेकिन 17 सीटें होने पर भी आरक्षित सीटों की संख्या नहीं बढ़ेगी, यानी आदिवासियों का प्रतिनिधित्व कम हो जाएगा। विधानसभा सीटों के बारे में कहा जा रहा है कि झारखंड में विधानसभा की सीटें नहीं बढ़ेंगी, लेकिन आदिवासी सीटों की संख्या 28 से घट कर 22 हो जाएंगी, जबकि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों की संख्या आठ से बढ़ कर 10 हो जाएंगी। पिछली बार 2007 में देश भर में विधानसभा और लोक सभा की सीटों का परिसीमन हुआ।
यह परिसीमन 2009 के लोक सभा चुनाव से देश भर में लागू हो गया। तब झारखंड में भी लागू होना था, लेकिन विरोध के कारण उसे झारखंड में लागू नहीं किया गया था। अब यह मुद्दा एक बार फिर गरम हो गया है। झामुमो ने 2026 में होनेवाले इस प्रस्तावित परिसीमन का विरोध करने की घोषणा कर दी है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस मुद्दे को लेकर तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना और केरल जैसे राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बात भी की है। देश में अंतिम बार परिसीमन 2009 के चुनावों में लागू हुआ था, लेकिन उस समय झारखंड में इसे लागू नहीं किया गया था।
यह मुद्दा पिछली लोक सभा में भी उठा था, जब रांची के भाजपा सांसद संजय सेठ ने झारखंड में विधानसभा सीटों की संख्या 120 किये जाने की मांग उठायी थी।
अब एक बार फिर यह मुद्दा गरमा गया है। जनगणना के बाद देश में लोक सभा और विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन होगा। उसका असर झारखंड पर भी पड़ेगा। इसकी हलचल अभी से दिखने लगी है। झामुमो ने आरोप लगाया है कि परिसीमन के जरिये केंद्र की भाजपा सरकार आरक्षित सीटों की संख्या घटा सकती है। नियमों के अनुसार प्रत्येक 15 साल पर परिसीमन करना है। पूरे देश में 2008 में परिसीमन हुआ था। उसी आधार पर 2009 का लोक सभा चुनाव हुआ, पर झारखंड में परिसीमन नहीं हुआ। 2008 में झारखंड के राजनीतिक दलों ने परिसीमन का इसलिए विरोध किया था, क्योंकि उन्हें डर था कि लोक सभा और विधानसभा में एसटी सीटें घट जाएंगी। परिसीमन के बाद लोक सभा की एक और विधानसभा की छह एसटी सीटें घटने की आशंका थी, जबकि विधानसभा में एससी की एक सीट बढ़कर 10 हो रही थीं। फिर वही परिदृश्य बनने की संभावना है। इसलिए झामुमो अभी से मुद्दा बनाने में जुट गया है।
दरअसल, झारखंड में परिसीमन का मुद्दा पूरी तरह सियासी रंग पकड़ चुका है। स्थापित प्रावधानों के अनुसार हर जनगणना के बाद परिसीमन आयोग का गठन किया जाता है और इसकी सिफारिशें लागू की जाती हैं। देश में अंतिम परिसीमन आयोग 2002 में बना और इसने 2005 में अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को दी। उस समय झारखंड में लोक सभा की दो सीटें बढ़ाने और विधानसभा की कुछ सीटों को विलोपित कर उनके स्थान पर नया क्षेत्र बनाने की सिफारिश की गई थी।
इस सिफारिश का सबसे महत्त्वपूर्ण अंश यह था कि इसमें अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या कम कर दी गई थी। तब झामुमो और कई अन्य आदिवासी संगठनों ने इन सिफारिशों का विरोध किया था। 2005-2006 में विधानसभा सीटों को नये सिरे से चिह्नित करने को लेकर राज्य सरकार ने भी परिसीमन कमिटी का गठन किया था। इसमें सामाजिक और आर्थिक ढांचे के साथ क्षेत्र के पिछड़ेपन आदि को मानक बनाते हुए परिसीमन किया जाना था, लेकिन झामुमो और अन्य आदिवासी संगठनों के विरोध के कारण तत्कालीन केंद्र सरकार ने रोक लगा दी थी।
अब झामुमो ने परिसीमन के विरोध की घोषणा की है, तो सियासी हलचल स्वाभाविक है। यह हकीकत है कि झारखंड में आबादी के हिसाब से लोक सभा और विधानसभा सीटों की संख्या कम है। यहां की सवा तीन करोड़ की आबादी के लिए 14 सांसद और 81 विधायक हैं। इसका मतलब यह है कि एक सांसद पर 20 लाख से अधिक और एक विधायक पर चार लाख से अधिक लोगों का ध्यान रखने की जिम्मेवारी है। देखना दिलचस्प होगा कि झारखंड में परिसीमन के मुद्दे पर सियासत क्या करवट लेती है और नरेन्द्र मोदी सरकार इस पर क्या निर्णय लेती है।
(लेख में विचार निजी है)
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