मूर्ख दिवस : जीवन को हल्के-फुल्के ढंग से लें

Last Updated 01 Apr 2025 12:53:52 PM IST

हर साल 1 अप्रैल को ‘मूर्ख दिवस’ मनाया जाता है। यह परंपरा कब और कैसे शुरू हुई, इसे लेकर अलग-अलग धारणाएं प्रचलित हैं, लेकिन आमतौर पर माना जाता है कि अप्रैल फूल का चलन 16वीं सदी में फ्रांस में शुरू हुआ।


मूर्ख दिवस : जीवन को हल्के-फुल्के ढंग से लें

कहा जाता है कि 1564 में फ्रांस के राजा चार्ल्स ने अपने देश में ग्रेगेरियन कैलेंडर लागू किया था, जिससे पहले नया साल 1 अप्रैल को मनाया जाता था। जब कैलेंडर बदला गया और 1 जनवरी को नववर्ष के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया, तब भी कई लोग पुरानी परंपरा से चिपके रहे और 1 अप्रैल को ही नये साल का उत्सव मनाते रहे। इस बदलाव को न अपनाने वालों का मजाक उड़ाया जाने लगा और उन्हें ‘अप्रैल फूल’ कहकर चिढ़ाया जाने लगा। धीरे-धीरे यह मजाक करने की परंपरा एक वार्षिक आयोजन में बदल गई, जिसे ‘मूर्ख दिवस’ के रूप में मनाया जाने लगा।

कुछ लोगों का मानना है कि अप्रैल फूल का संबंध बसंत के आगमन से भी है। प्रकृति इस मौसम में अनिश्चित रूप से बदलती है, कभी तेज धूप तो कभी अचानक बारिश। ऐसे में यह मौसम मानो खुद ही लोगों को मूर्ख बनाता है। कई विद्वान मानते हैं कि ‘मूर्ख दिवस’ की जड़ें पगान उत्सवों में भी छिपी हो सकती हैं, जहां मौसमी बदलावों के दौरान विभिन्न तरह के हास्यास्पद और अजीबोगरीब आयोजन किए जाते थे। यूरोप के कई देशों में ऐसे त्योहार प्रचलित थे, जहां लोग एक-दूसरे का मजाक उड़ाते और अजीब हरकतें करते थे।

इटली में एक प्राचीन परंपरा के अनुसार, 1 अप्रैल को एक विशेष मनोरंजन उत्सव मनाया जाता था। उस दिन स्त्री-पुरु ष सभी सामाजिक बंधनों से मुक्त होकर नाचते-गाते थे, जमकर शराब पीते थे और हुड़दंग मचाते थे। यह दिन पूरी तरह से मौज-मस्ती और उल्लास से भरा होता था। मध्यकालीन यूरोप में भी इस दिन को लेकर कई रोचक प्रथाएं देखी गई। स्कॉटलैंड में इसे ‘अप्रैल गोक’ कहा जाता था, जहां लोग एक-दूसरे को मूर्ख बनाने के लिए झूठी अफवाहें फैलाते थे और अजीबोगरीब हरकतें करते थे। यूनान में ‘अप्रैल फूल’ से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा प्रचलित है। कहा जाता है कि वहां एक व्यक्ति को अपनी बुद्धिमत्ता पर बहुत घमंड था और वह स्वयं को सबसे अधिक चतुर समझता था। उसके दोस्तों ने उसे सबक सिखाने के लिए यह अफवाह फैला दी कि एक निश्चित रात देवता पहाड़ की चोटी पर प्रकट होंगे और जो भी वहां होगा, उसे मनचाहा वरदान मिलेगा।

वह व्यक्ति उस अफवाह पर विश्वास कर बैठा और पूरी रात वहां इंतजार करता रहा, लेकिन जब कोई देवता नहीं आया तो वह निराश होकर लौटा। उसके दोस्त उसका मजाक उड़ाने लगे और कहा जाता है कि तभी से यूनान में अप्रैल फूल मनाने की परंपरा शुरू हो गई। अंग्रेजी परंपरा में भी अप्रैल फूल का जिक्र मिलता है। इंग्लैंड में इस दिन को लेकर कई अनूठी कहानियां प्रचलित हैं। कहा जाता है कि 18वीं शताब्दी में यह प्रथा तेजी से फैली और आम लोगों में लोकप्रिय हो गई। इस दिन लोग एक-दूसरे को झूठे संदेश भेजते और फर्जी खबरें फैलाते थे। धीरे-धीरे यह परंपरा अन्य देशों में भी फैल गई और हर जगह इसे अपने अनूठे अंदाज में मनाया जाने लगा। 19वीं और 20वीं शताब्दी में यह परंपरा और भी विकसित हो गई। उस दौरान समाचार पत्र, रेडियो और बाद में टेलीविजन ने भी इस परंपरा को बढ़ावा दिया। समय के साथ, अप्रैल फूल का जश्न दुनिया भर में अलग-अलग रूपों में मनाया जाने लगा। भारत में भी यह परंपरा धीरे-धीरे लोकप्रिय होती गई। पहले यह परंपरा सिर्फ अंग्रेजों और शहरी वर्ग तक सीमित थी, लेकिन अब छोटे शहरों और गांवों तक भी इसका प्रभाव दिखने लगा है। 

बॉलीवुड और टेलीविजन ने भी इसे खूब बढ़ावा दिया है। कई फिल्मों और धारावाहिकों में अप्रैल फूल से जुड़ी घटनाओं को हास्यपूर्ण ढंग से दिखाया गया है। डिजिटल युग में इस परंपरा ने एक नया रूप ले लिया है। सोशल मीडिया के आगमन के साथ, अप्रैल फूल अब केवल व्यक्तिगत स्तर पर मजाक तक सीमित नहीं रहा बल्कि यह ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर भी फैल गया है। लोग झूठी किंतु मजेदार खबरें फैलाकर अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को मूर्ख बनाने की कोशिश करते हैं। कई बार, बड़े-बड़े ब्रांड और कंपनियां भी इस अवसर का उपयोग अपने प्रचार के लिए करती हैं। यह दिन सिर्फ  हंसी-मजाक का नहीं, बल्कि यह जीवन को हल्के-फुल्के ढंग से लेने की सीख भी देता है। यह हमें याद दिलाता है कि कभी-कभी जीवन में मजाक करना और हंसना भी जरूरी होता है। यह परंपरा हमें बताती है कि हर परिस्थिति में मुस्कुराना चाहिए और रिश्तों में मधुरता बनाए रखनी चाहिए। आज के समय में, जब जीवन तनाव और भागदौड़ से भरा हुआ है, अप्रैल फूल जैसा त्योहार लोगों के चेहरे पर मुस्कान लाने का काम करता है। यह दिन हमें यह सिखाता है कि थोड़ी-सी हंसी भी जीवन में बहुत बड़ा बदलाव ला सकती है। ‘मूर्ख दिवस’ का एक उद्देश्य केवल हंसी-मजाक और मनोरंजन ही नहीं बल्कि यह लोगों को यह भी सिखाता है कि जीवन को हल्के-फुल्के ढंग से लेना चाहिए और हर परिस्थिति में मुस्कान बनाए रखनी चाहिए।

श्वेता गोयल


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