संभल में होली और जुमा पर रार : यूं ही नहीं है विवाद
संभल में होली और जुमे की नमाज देशव्यापी बहस और विवाद का विषय यूं ही नहीं बना हुआ है। हालांकि संभल के सीईओ अनुज चौधरी के वक्तव्य को आधार बनाकर कई पार्टियां, नेता और मीडिया का एक वर्ग आलोचना कर रहा है।
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सपा के वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव ने तो यहां तक कह दिया कि ऐसे लोग जब सरकार बदलेगी तो जेल में होंगे। सीओ को गुंडा और दादा तक की संज्ञा दे दी गई है।
मुस्लिम संगठनों सहित अनेक मुस्लिम नेताओं ने तो उनके खिलाफ ऐसा अभियान चला दिया है मानो वे संभल में शांति नहीं बल्कि अशांति के कारण बन चुके हों। क्या वाकई अनुज चौधरी ने ऐसा बयान दिया है जिससे उनके विरु द्ध इस तरह का माहौल होना चाहिए? सामान्य तौर पर देखें तो होली और जुमे की नमाज एक ही दिन हो रही है तो निश्चित रूप से प्रशासन का दायित्व दोनों को शांतिपूर्वक संपन्न कराने की है। कोई एकपक्षीय बयान देकर किसी समुदाय को नाराज करे तो उसके विरु द्ध आवाज उठनी चाहिए। किंतु क्या वाकई संभल का मामला ऐसा ही है? इससे जुड़े दोनों पक्षों को समझे बगैर हम कोई अंतिम निष्कर्ष नहीं दे सकते। निस्संदेह, भारत में 116 करोड़ से थोड़ा ज्यादा हिन्दू और 22 करोड़ से ज्यादा मुसलमान हैं तो दोनों को मिलजुल कर ही रहना है। यह दोनों समुदायों की जिम्मेवारी है कि वे एक दूसरे की भावनाओं, संवेदनाओं का ध्यान रखते हुए तथा अपने उत्सवों के महत्त्व के अनुसार ऐसा आचरण करें जिनसे समस्याएं पैदा नहीं हो।
इसी तरह पुलिस प्रशासन का दायित्व हर हाल में शांति व्यवस्था बनाए रखने का पूर्वोपाय करना है। अगर कहीं समस्या पैदा हुई तो पुलिस प्रशासन के लिए उत्तर देना कठिन होता है। अनुज चौधरी का बयान इसी के संदर्भ में था। सच है कि उनके बयान की दो पंक्ति को निकाल कर हंगामा पैदा कर दिया गया और यही बताता है कि कुछ लोग किस तरह देश में सांप्रदायिक तनाव, हिंसा पैदा करना चाहते हैं। यह वर्ग योगी आदित्यनाथ सरकार एवं नरेन्द्र मोदी सरकार के विरु द्ध माहौल बनाने के लिए झूठ का नैरेटिव चला रहा है। अनुज चौधरी के बयान को देखें तो उसमें यह पंक्ति है कि जुमे का नमाज वर्ष में 52 बार आता है जबकि होली एक बार। इसी में वे यह भी कह रहे हैं कि जिन्हें होली से समस्या हो वे उस दिन बाहर न निकलें।
अपने पूरे वक्तव्य में वे कह रहे हैं कि हिन्दू समाज मुसलमानों की भावनाओं का ध्यान रखे और मुस्लिम समाज हिन्दुओं की भावनाओं का। इसमें गड़बड़ी करने वालों को चेतावनी भी दे रहे हैं। वह कह रहे हैं कि जिस तरह ईद के दिन लोग सेवैया खाते हैं, एक-दूसरे से गले मिलते हैं ठीक उसी तरह होली का त्योहार भी है और इसको मुसलमान भी उसी रूप में लें, थोड़ा बड़ा हृदय दिखाएं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने टीवी कार्यक्रम में यह कहते हुए उनका समर्थन किया है कि वह पहलवान है, अर्जुन अवार्डी है और पहलवान की तरह स्पष्ट बोलता है। उन्होंने भी लगभग वही बातें बोली जो अनुज चौधरी ने कहा। इस तरह अनुज चौधरी का वक्तव्य योगी आदित्यनाथ सरकार के विचारों की ही अभिव्यक्ति है। यह सच है कि इसके पहले भी होली और जुमे का नमाज एक दिन हुआ है। किंतु यह कहने वाले भूल जा रहे हैं कि जिन शहरों या क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी है वहां कई बार यह शांतिपूर्ण संपन्न हुआ तो कई बार अशांति पैदा हुई, हिंसा हुए, दंगे भी हुए।
आप दंगों के इतिहास का अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि इनमें से बड़ी संख्या में हिन्दू उत्सवों या महत्त्वपूर्ण दिवसों के दिन या उनसे जुड़े हुए रहे। पिछले 3 वर्षो में हिन्दू धर्म से जुड़ी शोभा यात्राओं, महत्त्वपूर्ण तिथियों के दिन पत्थरबाजी, आगजनी, हमले और सांप्रदायिक हिंसा हुए हैं। क्या हम पिछले वर्ष 24 नवम्बर को संभल में हुई हिंसा भूल गए? आखिर न्यायालय के आदेश से सर्वेक्षण टीम वहां आई थी, कहीं हिन्दुओं की भीड़ नहीं थी, कोई नारा नहीं था, अचानक हजारों लोग ईट-पत्थर लेकर कहां से निकल पड़े? 24 नवम्बर, 2024 को हिंसा के बाद धीरे-धीरे पूरे संभल शहर में कब्जाए, जमीन में दबाई या विरक्त महत्त्वपूर्ण पूजा स्थल, कूप, बावरी निकल रहे हैं।
संभल धार्मिंक पुस्तकों में एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थल के रूप में विख्यात रहा है तथा कलयुग में भगवान कल्कि अवतार की भी भविष्यवाणी वही है। कल्पना करिए, उत्तर प्रदेश का एक छोटा शहर अगर हिन्दू धर्म स्थलों को निगल जाने, उन्हें विरक्त कर देने या धरती में दबा देने की भूमिका निभा रहा हो तो वहां की सांप्रदायिक स्थिति क्या रही होगी? भारत का दुर्भाग्य है कि यहां सेकुलरिज्म की गलत व्याख्या सोच और वोट बैंक की मानसिकता में सांप्रदायिक व्यवहारों का विरोध करने की जगह इन्हें दुरु स्त करने के लिए खड़े होने वाले को खलनायक बनाया जा रहा है। जामा मस्जिद के पास एवं अन्य जगह पुलिस थाने या पोस्ट बनाने तक का विरोध करने वाले कौन लोग थे?
कल्पना करिए, अगर प्रदेश और केंद्र में भाजपा सरकार नहीं होती तो जितनी बड़ी संख्या में कब्जे किए गए या विरक्त मंदिर, मिट्टी में दबाए गए कूप और बावरी मिले हैं वह संभव होता? मनुष्य के अंदर दिव्यता और विशिष्ट आध्यात्मिक शक्ति व अंत:प्रेरणा पैदा करने वाले वे पवित्र स्थान ऐसे ही भुला दिए जाते। आश्चर्य इस पर होनी चाहिए कि कब्जा किए गए, कराए गए उन पवित्र स्थलों या निर्माण को न्यायपूर्ण तरीके से खाली करने की कार्रवाई देश में नेताओं, बुद्धिजीवियों व मीडिया के एक बड़े वर्ग की आलोचना का शिकार हो रहा है। यह इकोसिस्टम इतना बड़ा है कि इसका सामना करना कठिन होता है तथा यही वर्ग देश में नैरेटिव भी बनाता है।
इसी वर्ग ने केंद्र व प्रदेश सरकार तथा उसके नेतृत्व में स्थानीय पुलिस प्रशासन द्वारा कानूनी शक्ति का उपयोग करते हुए हिन्दू समाज को न्याय दिलाने तथा कानून-व्यवस्था बनाए रखने की नीतियों और कदमों के विरुद्ध वातावरण बनाने में लगा है। ऐसा नहीं होता तो अनुज चौधरी के वक्तव्य की सभी पक्षों द्वारा प्रशंसा होती तथा उसके अनुरूप व्यवहार की अपील की जाती। वहां के हिन्दुओं से पूछिए कि क्या वे पिछले 50 वर्षो में होली जैसे त्योहार को भी खुलकर मना पाए हैं? संभल पुलिस प्रशासन न्याय और कानून की दृष्टि से अपनी शक्तियों का सदुपयोग कर रहा है। यही कारण है कि बाहर दुष्प्रचार व विरोध करते हुए भी इनमें से कोई न्यायालय तक जाने का साहस नहीं करता।
(लेख में विचार निजी है)
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