दिल्ली चुनाव : मुस्लिम मतों का मिथक

Last Updated 11 Feb 2025 01:12:04 PM IST

भाजपा जब भी कोई चुनाव जीती है मुस्लिम मतों को लेकर विश्लेषण सामने आते हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत के साथ टीवी चैनलों से लेकर समाचार पत्रों, वेबसाइटों, यूट्यूब चैनलों पर ऐसी ध्वनियां निकल रही है कि मुसलमानों के एक बड़े वर्ग ने उसके पक्ष में मतदान किया।


दिल्ली चुनाव : मुस्लिम मतों का मिथक

क्या वाकई ऐसा हुआ है? इमामों का एक संगठन चलाने वाले मौलाना ने मतदान के बाद वीडियो जारी करते हुए कहा कि मैंने भाजपा को मत दिया है। वे टीवी चैनलों पर दिखते हैं इसलिए उनका चेहरा मोटा-मोटी पहचाना है और भाजपा एवं संघ के विरुद्ध उनकी कट्टरता भी सब सामने है। उन्होंने कहा कि मैंने वोट इसलिए दिया क्योंकि कहा जाता है कि मुसलमान एकजुट होकर भाजपा के विरु द्ध मतदान करते हैं। 

इस धारणा को तोड़ने के लिए मैंने वोट दिया। उन्होंने दूसरा कारण आप के द्वारा मुसलमानों के खिलाफ आचरण को बताया। दरअसल, दिल्ली में केजरीवाल द्वारा घोषित इमामों का वेतन चुनाव तक 18 महीना से नहीं मिला था। इनका संगठन उसके लिए धरना प्रदशर्न कर रहा था, जिसका संज्ञान तक केजरीवाल और उनके साथियों ने नहीं लिया। क्या उनके अलावा किसी अन्य बड़े मुस्लिम चेहरे ने सामने आकर परिणाम के पहले घोषित किया कि उन्होंने भाजपा को मत दिया है? भाजपा की जीत के बाद लोग टीवी कैमरों के सामने आए और कह दिया कि हम नरेन्द्र मोदी जी और योगी जी अच्छा शासन चला रहे हैं, इसलिए समर्थन दिया है।

दरअसल, मुस्लिम प्रभाव वाले मुस्तफाबाद और जंगपुरा सीट पर भाजपा की विजय के बाद से यह ध्वनि ज्यादा गुंजित हुई है। ये दोनों क्षेत्र मुस्लिम प्रभाव वाले हैं। अभी तक धारणा थी कि बगैर उनके समर्थन के कोई उम्मीदवार चुनाव जीत नहीं सकता। दिल्ली में 11-12 ऐसे क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाता निर्णायक माने जाते हैं। इसके अलावा भी 7-8 क्षेत्रों में मुसलमानों का प्रभाव है। इनमें चार सीटें भाजपा ने जीती हैं। किंतु इसके अलावा ये सारी सीटें एकपक्षीय आप को गई है। पहले मुस्तफाबाद को देखें। मुस्तफाबाद में भाजपा के मोहन सिंह बिष्ट ने आप के आदिल अहमद खान को 17 हजार 578 वोटों से हराया। 

यहां एआईएमआईएम के उम्मीदवार और 2020 दिल्ली दंगों के आरोपी ताहिर हुसैन को 33 हजार 474 वोट मिला और कांग्रेस के अली मेहंदी को केवल 11 हजार 763। ताहिर हुसैन ने जब कहा कि आपकी लड़ाई हमने लड़ी और आपके कारण जेल में हैं तो मुसलमानों के एक बड़े वर्ग की सहानुभूति मिली। ताहिर हुसैन को इतना वोट नहीं मिलता तो बिष्ट नहीं जीत पाते। आप सोचिए, कांग्रेस के उम्मीदवार को इतना कम मत मिला। जंगपुरा में तरविंदर सिंह मारवाह किसी तरह 675 मतों से पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को हरा पाए। मुस्लिम मतदाताओं ने तरविंदर के पक्ष में मतदान किया होता तो जीत का अंतर ज्यादा होता। उनकी और पारिवार कि पृष्ठभूमि कांग्रेस की है। इस कारण मुस्लिम वोट उनको मिलता रहा है। इस बार आंकड़े ऐसा नहीं बताते। कांग्रेस के मुस्लिम मत काटने का उनको लाभ मिला।

ईमानदारी से विश्लेषण किया जाए तो साफ दिखाई देगा कि 2020 के दंगों में मुस्लिम नेताओं की भूमिका देखने के बाद गैर मुसलमानों के बीच थोड़ी एकजुटता हुई। दूसरे, पिछले लोक सभा चुनाव एवं महाराष्ट्र व हरियाणा विधानसभा चुनाव में राजनीतिक, मजहबी मुस्लिम नेताओं, शीर्ष मुस्लिम व्यक्तियों के द्वारा वोट को इस्लाम और दीन का विषय बनाने तथा भाजपा के विरुद्ध मतदान करने के फतवे आदि के कारण एकजुटता का सुदृढ़ीकरण हुआ है। केजरीवाल इसे भांपते हुए ही हिन्दुत्व पर मुखर हुए तथा पुजारियों और ग्रंथियों तक को 18 हजार रुपये वेतन देने की घोषणा की। जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने वंदे मातरम और भारत माता की जय का नारा लगाया तथा भाजपा की ही तरह भारत को विश्व गुरु  एवं महाशक्ति बनाने के लिए भाजपा को हराने का हवन कर दिया। इस कारण हिन्दुत्व के मुद्दे पर वैसी क्षति नहीं हुई जैसी इंडिया गठबंधन के अन्य दलों को हो रही है। दिल्ली में सबसे बड़ी दो जीत आप को मिली और वह मुस्लिम प्रभाव वाले क्षेत्र में ही। आप प्रत्याशी आले मुहम्मद इकबाल को मटियामहल से 42 हजार 724 वोट के अंतर से सबसे बड़ी जीत हासिल हुई। सीलमपुर से आप के चौधरी जुबैर अहमद 42 हजार 477 मतों से जीते जो दूसरी बड़ी जीत है। 

इससे पता चलता है कि मुस्लिम वोटो का रु ख क्या रहा? मटियामहल से आले मुहम्मद ने भाजपा की दीप्ति इंदौर को हराया। आले को 58 हजार 120 और दिप्ती को केवल 15 हजार 396 मत मिला। यहां कांग्रेस के असीम अहमद को केवल 10 हजार 295 मत मिला। सीलमपुर में चौधरी जुबैर को 79 हजार 09 और भाजपा के अनिल शर्मा को 36 हजार 532 मत मिले और कांग्रेस के अब्दुल रहमान 16 हजार 551 तक सिमट गए। चांदनी चौक के 10 विधानसभा सीटों में चार मुस्लिम बहुल हैं। चारों में एक भी भाजपा नहीं जीत सकी। बल्लीमारान में भाजपा के पाषर्द कमल बागड़ी को केवल 27 हजार 181 और दिल्ली कांग्रेस के प्रमुख मुस्लिम चेहरे और जाने-माने नेता हारून यूसुफ भी 13 हजार 569 मत पा सके जबकि आप के इमरान हुसैन को 57 हजार 04 मत मिला। सदर बाजार में आप के सोमदत्त को 56 हजार 177 वोट मिला और उन्होंने भाजपा के मनोज कुमार जिंदल को 6307 वोट से हराया। यह भी मुस्लिम प्रभाव वाले क्षेत्र है, लेकिन यहां हिन्दुओं और गैर मुसलमानों की भी बड़ी आबादी है। इस कारण मनोज जिंदल ने 49 हजार 870 मत पाया और कांग्रेस के अनिल भारद्वाज को 10 हजार 057 ही मिला।

इस तरह मतों के आंकड़ों का विश्लेषण करेंगे तो कहीं नहीं दिखेगा कि मुस्लिम मत भाजपा की ओर गया। भाजपा के सदस्य तथा एक दो प्रतिशत कहीं मतदान कर दें तो अलग बात है, अन्यथा मुस्लिम मतों की प्रवृत्ति भाजपा को हराने की ही रही। दरअसल, अलग-अलग मुस्लिम संगठनों, इमामों , मौलवियों, मुल्लाओं, मुस्लिम बुद्धिजीवियों, एक्टिविस्टों आदि प्रमुख चेहरों ने हिन्दुत्व विचारधारा के साथ भाजपा की इस्लाम विरोधी, दीन विरोधी छवि बना दिया है। इस कारण उनका वोट मिलना तत्काल मुश्किल है। भविष्य के बारे में फिलहाल कुछ कहना कठिन है।
(लेख में विचार निजी है)

अवधेश कुमार


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment