दिल्ली चुनाव : चुनौतियों में केजरीवाल
दिल्ली विधानसभा चुनाव का ऐलान हो चुका है। यहां मतदान 5 फरवरी को होगा और नतीजे 8 फरवरी को आएंगे। वैसे चुनाव कार्यक्रम घोषित होने से काफी पहले ही चुनाव अभियान चरम पर पहुंच चुका था।
दिल्ली चुनाव : चुनौतियों में केजरीवाल |
2014 के बाद दिल्ली की राजनीति आप बनाम भाजपा के बीच दो ध्रुवीय हो गई है। इसके पूर्व भाजपा और कांग्रेस ही मुख्य पार्टयिां होती थीं। 2013 से कांग्रेस का पतन आरंभ हुआ और पिछले दो विधानसभा चुनाव से वह शून्य पर है। भाजपा भी 1998 से सत्ता से बाहर है। भाजपा सत्ता में आना चाहती है तो कांग्रेस भी दिल्ली की मुख्यधारा में वापसी की कोशिश में है।
प्रश्न है कि क्या इस बार पिछले दो विधानसभा चुनावों से अलग परिणाम आएगा? क्या सत्ता परिवर्तित होगी? क्या दिल्ली की राजनीति तीन ध्रुवीय होगी? पिछले चुनाव तक कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व की नीति किसी तरह भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सत्ता में आने से रोकना था। इसके लिए वह हर तरह का समझौता कर रही थी। लोक सभा चुनाव में आप के साथ सीटों पर समझौता भी हुआ। कांग्रेस ने रणनीति बदली और वाकई दिल्ली में बने रहने के लिए संघर्ष कर रही है। बावजूद कुछ समय पूर्व लगता था कि आप तीसरी बार एकपक्षीय जीत प्राप्त कर सकती है। चुनाव या किसी संघर्ष में प्रतिद्वंद्वी को पराजित करने का सबसे बड़ा सूत्र आक्रामक होना है यानी आक्रामक होकर प्रतिद्वंद्वी को उत्तर देने तक सीमित रख दीजिए।
केजरीवाल ने लगातार ऐसी घोषणाएं कीं जिससे भाजपा के सामने उत्तर देने का विकल्प दिखता था। भाजपा और कांग्रेस, दोनों केजरीवाल की घोषणाओं का तथ्यात्मक खंडन करती रहीं, उनकी विसनीयता को भी अतीत के आधार पर प्रश्नों के घेरे में लाती रहीं लेकिन ऐसा नहीं था कि एजेंडा भाजपा तय कर रही हो।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चुनाव मैदान में उतरने तथा उम्मीदवारों की सूची जारी होने के साथ स्थिति बदलती दिख रही है। केजरीवाल की सबसे बड़ी ताकत मुफ्त की घोषणाएं रही हैं। इस बार उनका सबसे बड़ा दांव मंदिरों के पुजारियों और गुरु द्वारों के ग्रंथियों को 18 हजार रुपया मासिक वेतन देने की घोषणा है। इसके पहले महिला सम्मान योजना 2100 रुपया तथा वरिष्ठ नागरिकों के लिए निजी एवं सार्वजनिक अस्पतालों में निशुल्क उपचार की संजीवनी योजना घोषित की। इस समय मुस्लिम मतदाताओं की राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस का समर्थन करने की प्रवृत्ति उभरी है। कांग्रेस की आक्रामकता देखकर आप को लग रहा है कि दिल्ली के 11-12 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता उसके पास गए तो समस्या बढ़ जाएगी। दूसरे, केजरीवाल को समझ आ गया है कि देश में हिन्दुत्व राजनीति का मुख्य निर्धारक विचारधारा के रूप में बना रहेगा। इसका ध्यान रखते हुए उन्होंने पुजारियों और ग्रंथियों के वेतन की घोषणा कर दी तथा भाजपा द्वारा प्रश्न उठाने के बाद कहा कि वह बताए कि इसके पक्ष में है या नहीं? वे पुजारियों और ग्रंथियों को वेतन देना चाहते हैं, या नहीं? यह ऐसा प्रश्न था जिसका स्पष्ट उत्तर देना किसी भी पार्टी के लिए कठिन है। केजरीवाल के बोलने, लोगों को लुभाने की चतुर शैली का उत्तर किसी पार्टी के लिए देना कठिन रहा है।
भाजपा का पुजारी प्रकोष्ठ दिल्ली में अत्यंत सक्रिय है, और उनके कारण पार्टी की ताकत भी बढ़ी है। केजरीवाल ने इसी पर चोट करने के रणनीति अपनाई और नहीं कहा जा सकता कि इसका असर नहीं हुआ। लालच किसी को भी डिगा सकता है। इमामों को 18 महीने से वेतन न मिलने का मामला भले ही कांग्रेस या दूसरे विरोधियों के लिए केजरीवाल को कठघरे में खड़ा करने का आधार हो, आप हिन्दुत्व समर्थकों के बीच संदेश देने की रणनीति अपना रही है कि हम घोषणा के बावजूद उनको वेतन दे नहीं रहे और केवल पुजारियों और ग्रंथियों को देंगे। सार्वजनिक रूप से न बोलते हुए भी जमीन पर ऐसा प्रचार देखा जा सकता है। भाजपा शायद इस रणनीति को आरंभ में नहीं समझ पाई। बावजूद आप और केजरीवाल के लिए यह चुनाव 2015 और 2020 से गुणात्मक रूप से काफी भिन्न और बड़ी चुनौतियों वाला है। भाजपा ने जैसे उम्मीदवार उतारे हैं, उनसे पिछले दो विधानसभा चुनावों के विपरीत लगता है कि वह जीतने के लिए लड़ रही है। केजरीवाल के विरु द्ध प्रवेश वर्मा तथा मुख्यमंत्री आतिशी के विरुद्ध रमेश बिधूड़ी को उतारना इसका प्रमाण है। कांग्रेस की ओर से संदीप दीक्षित केजरीवाल को चुनौती दे रहे हैं, और पार्टी ने अच्छे उम्मीदवार उतारे हैं यानी दोनों पार्टयिां केजरीवाल को किसी भी तरह पराजित करना चाहती हैं। उच्चतम न्यायालय ने जमानत में केजरीवाल के साथ शर्त लगाई हुई है कि वे मुख्यमंत्री रहें भी तो न सचिवालय जाएंगे, न कैबिनेट की बैठक बुलाएंगे और न फाइल पर हस्ताक्षर करेंगे।
कांग्रेस और भाजपा लोगों के समक्ष रख रही हैं कि केजरीवाल मुख्यमंत्री के रूप में काम ही नहीं कर सकते। प्रधानमंत्री मोदी ने आप सरकार को कट्टर बेईमानों की सरकार कहा तो इस बार दिखाने के लिए शराब नीति घोटाले से लेकर बिजली-पानी व्यवस्था, शिक्षा आदि में भ्रष्टाचार के आरोप और उनके प्रमाण हैं। शराब नीति में भ्रष्टाचार के आरोप में स्वयं केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और उनके साथी जेल जा चुके हैं, और जमानत पर बाहर हैं। आप का एक वर्ग महसूस कर रहा है कि ईमानदारी और शुचिता के वादे के विपरीत हमारे लोगों ने शराब नीति में भ्रष्टाचार किया है। दूसरे, आप सरकार के कार्यकाल में दिल्ली की सड़कें ध्वस्त हो चुकी हैं। दिल्ली के फुटओवर ब्रिज खतरे की ओर बढ़ रहे हैं, न किसी की 10 सालों में मरम्मत हुई और न पेंटिंग।
ज्यादातर परिवारों में कुछ महीने पानी का बिल नहीं आता और एक बार इतना आता है जितना शायद 6 महीने, एक वर्ष में नहीं देते होंगे। ये सारी स्थितियां झेलने के बाद लोगों के अंदर असंतोष तो है। भाजपा ने इन मुद्दों को उठाया तथा प्रधानमंत्री मोदी द्वारा दिल्ली के लोगों के लिए इस सरकार को आप-दा बताना अपील कर रहा है। भाजपा के लिए ‘आपदा सरकार नहीं सहेंगे बदल कर रहेंगे बदल कर रहेंगे’ एक नया नारा भी मिल गया। कांग्रेस की स्थिति जो भी हो वह जितना वोट काटेगी आप को ही क्षति पहुंचाएगी। स्वाभाविक ही आप के लिए चुनौतियां कठिन हैं। ये चुनौतियां अरविंद केजरीवाल और आप के सामने पहले नहीं थीं।
(लेख में विचार निजी हैं)
| Tweet |