लोक सभा में प्रियंका के पहले भाषण ने जीता दिल
प्रियंका गांधी से लोगों को शुरू से ही बहुत उम्मीदें रही हैं। ऐसे लोगों की कमी नहीं जो मानते थे कि अगर प्रियंका राजनीति में उतरें तो अपनी दादी स्वर्गीय इंदिरा गांधी की तरह अपने सभी राजनीतिक विरोधियों की छुट्टी कर देंगी। वे उनमें इंदिरा गांधी की शक्ल देखते थे।
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वही आंखें वैसा ही नाक-नक्श; हू ब हू, लेकिन प्रियंका गांधी लंबे समय तक राजनीति में नहीं आई, आई भी तो अपने आप को सिर्फ अमेठी और रायबरेली तक समेटे रहीं।
अब वो दिन भी आया जब प्रियंका गांधी सक्रिय राजनीति में आई। उम्मीद की गई कि वे पार्टी को उत्तर प्रदेश में मजबूत बनाएंगी। उन्होंने कोशिश भी की। सबको पता है कि उत्तर प्रदेश में पार्टी का ढांचा चरमरा गया है। उसे मजबूत करने की जरूरत है। प्रियंका गांधी ने इस दिशा में पहल भी की। उत्तर प्रदेश में उन्होंने अपनी सक्रियता भी बढ़ाई। लोग उनसे जुड़े भी, लेकिन चुनावों में इसका असर बिल्कुल भी नहीं दिखा। बल्कि यूं कहें कि इसका उलटा हुआ। पिछले विधान सभा चुनावों में पार्टी करीब ढाई प्रतिशत वोटों पर सिमट गई। तब कहा जाने लगा कि प्रियंका को राजनीति में लाने में देर कर दी गई। बाद में तो यह भी चर्चा सुनी जाने लगी कि प्रियंका गांधी राज्य सभा के जरिये संसद में जाना चाहती हैं। हिमाचल में कांग्रेस की जब जीत हुई और सरकार बनी तो चर्चा चली कि प्रियंका वहां से राज्य सभा में जा सकती हैं।
बाद में ऐसी ही चर्चा राजस्थान और तेलंगाना से भी जाने में हुई, मगर यह सब कयासबाजी ही साबित हुई। लोक सभा चुनाव में स्मृति ईरानी लगातार ताल ठोंक रही थीं और अमेठी से राहुल गांधी को चुनाव लड़ने के लिए ललकार रही थीं। वे 2019 में राहुल को अमेठी से हरा चुकी थीं और उनके हौसले बुलंद थे। हालांकि जितने सर्वे हो रहे थे उन सबमें यही दिख रहा था कि राहुल गांधी स्मृति ईरानी पर भारी पड़ रहे हैं, फिर भी राहुल या कांग्रेस ने ये साफ नहीं किया कि वे अमेठी से चुनाव लड़ेंगे ही। आखिर में जब सोनिया ने साफ किया कि खराब स्वास्थ्य के कारण वे चुनाव नहीं लड़ेंगी तो एक बार फिर चर्चा चली कि राहुल अमेठी से और प्रियंका रायबरेली से चुनाव लड़ेंगी, लेकिन आखिर में राहुल गांधी रायबरेली और वायनाड से चुनाव लड़े। राहुल अमेठी और वायनाड दोनों जगहों से जीते। जब उन्होंने वायनाड छोड़ा तो प्रियंका वहां से चुनाव लड़ीं।
वहां से वो चार लाख से ज्यादा वोटों से जीततीं। अभी पिछले हफ्ते ही उन्होंने लोक सभा में अपना पहला भाषण दिया। भाषण अच्छा था। सबने उन्हें सम्मान दिया। पक्ष ने भी और विपक्ष ने भी। उनके भाषण के दौरान सत्ता पक्ष के सदस्यों ने भी कम ही टोकाटोकी की। उनका भाषण काफी संतुलित और तथ्यपरक था। वे पूरी तैयारी से सदन में आई थीं और लिखकर ले आई थीं और उसे पढ़ रही थीं। लोगों ने उनके भाषण की तारीफ की फिर भी लोगों का कहना है कि प्रियंका गांधी जब बिना स्क्रिप्ट के भाषण देती हैं तो वो ज्यादा अच्छा और असरदार होता है। अभी चल रहे संसद के मौजूदा सत्र में लोक सभा में तीन लोगों के भाषण की ज्यादा चर्चा हो रही है। प्रियंका गांधी, राहुल गांधी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी। प्रियंका गांधी ने करीब आधे घंटे भाषण दिया, राहुल गांधी ने करीब 26 मिनट जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घंटे भर से ज्यादा। सभी जानते हैं कि मोदी बहुत अच्छा भाषण देते हैं।
प्रियंका गांधी भी अच्छा बोलती हैं, लेकिन उनके भाषण की तुलना अभी तक मोदी के भाषण से नहीं हुई थी। राहुल कमजोर वक्ता हैं, ये सभी लोग मानते हैं, लेकिन इस बार संसद में हुए भाषणों में जो तथ्य आये हैं उसने मोदी जी की लोकप्रियता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। संसद टीवी पर उनके भाषण को एक खास समय में सिर्फ 26 हजार लोगों ने देखा, जबकि भाषण के मामले में कमजोर माने जाने वाले राहुल गांधी के भाषण को 86 हजार लोगों ने देखा। इस मामले में तो प्रियंका गांधी इन दोनों से ही बहुत आगे रहीं। उनके भाषण को नरेंद्र मोदी के भाषण से सात गुना ज्यादा लोगों ने देखा। उनके भाषण को एक लाख 89 हजार लोगों ने देखा।
ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री पर लोगों का भरोसा कम हो रहा है। उनकी लोकप्रियता में कमी आ रही है। यही वजह है कि उनका भाषण अच्छा होने के बावजूद उन्हें कम लोगों ने देखा, जबकि विपक्ष के नेता राहुल पर लोगों का विश्वास बढ़ रहा है। लोग मान रहे हैं क राहुल भले अच्छा भाषण न देते हों पर वे सच बोलते हैं, दिल से बोलते हैं और लोगों की दिल से भलाई चाहते हैं। इसीलिए उनका भाषण कमजोर होने के बावजूद मोदी से तीन गुना ज्यादा लोगों ने देखा। प्रियंका संसद में पहली बार बोल रही थीं। शायद इस वजह से भी उनका भाषण बहुत ज्यादा लोगों ने देखा। पर इतना तो तय है कि वे एक अच्छी वक्ता हैं। कांग्रेस को लोक सभा में अच्छे हिंदी वक्ता की कमी जो खल रही थी अब उसे पूरा करने के लिए वे आ गई हैं। प्रियंका भले दक्षिण भारत से जीतकर लोक सभा में पहुंची हैं पर इससे उत्तर भारत में कांग्रेस को नया बल मिल सकता है।
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